मणिपुर: भाजपा सहित 10 कुकी-ज़ोमी विधायकों ने केंद्र सरकार से ‘अलग प्रशासन’ बनाने का आग्रह किया

अलग प्रशासन बनाने की मांग करने वाले 10 विधायकों में से 7 विधायक सत्तारूढ़ भाजपा के हैं, दो पार्टी के सहयोगी कुकी पीपुल्स अलायंस (केपीए) और एक निर्दलीय विधायक हैं. इस विधायकों ने एक बयान में ‘मणिपुर में 3 मई को शुरू हुई हिंसा’ को स्पष्ट रूप से ‘मौजूदा सरकार द्वारा समर्थित’ कहा है.

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मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और मणिपुर विधानसभा. (फोटो साभार: फेसबुक/www.assembly.mn.gov.in/)

 

नई दिल्ली: एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के दो मंत्रियों सहित राज्य के कुकी-ज़ोमी समुदाय से संबंधित 10 विधायकों ने एक प्रेस बयान जारी कर केंद्र सरकार से भारतीय संविधान के तहत एक ‘अलग प्रशासन’ बनाने और अपने समुदाय के लोगों को ‘मणिपुर राज्य के साथ शांतिपूर्वक पड़ोसियों के रूप में रहने देने’ का आग्रह किया है.

11 मई को जारी प्रेस बयान पर हस्ताक्षर करने वाले 10 विधायकों में से सात विधायक सत्तारूढ़ भाजपा के हैं, दो पार्टी के सहयोगी कुकी पीपुल्स अलायंस (केपीए) और एक निर्दलीय विधायक हैं.

इनमें हाओखोलेट किपगेन (सैतु से स्वतंत्र विधायक), किम्नेओ हाओकिप हैंशिंग (सैकुल से केपीए विधायक), एलएम खौटे (चुराचांदपुर से भाजपा विधायक), चिनलुंगथांग (सिंगंगट से केपीए विधायक); नेमचा किपगेन (कांगपोकपी से भाजपा विधायक), नगुरसंग्लुर सनाटे (तिपाईमुख से भाजपा विधायक), लिटपाओ हाओकिप (टेंग्नौपाल से भाजपा विधायक), लेटज़मांग हाओकिप (हेंगलेप से भाजपा विधायक), पाओलीनलाल हाओकिप (सैकोट से भाजपा विधायक) और वुंगजागिन वाल्टे (थांटन से भाजपा विधायक) शामिल हैं.

4 मई को मुख्यमंत्री के साथ बैठक के बाद घर लौटते समय राजधानी इंफाल में भीड़ द्वारा थांटन से भाजपा विधायक वाल्टे को गंभीर रूप से घायल कर दिया गया था. आगे के इलाज के लिए उन्हें नई दिल्ली ले जाया गया था.

यह मांग बीते 3 मई से उत्तर पूर्व के मणिपुर राज्य में कुकी-ज़ो और मेईतेई समुदाय के बीच हुए कई दिन के जातीय संघर्ष में कम से कम 60 लोगों के जान गंवाने और कम से कम 200 के घायल होने के कुछ दिनों बाद आई है. इस दौरान सैकड़ों संपत्तियों को नुकसान पहुंचा है और हजारों लोग विस्थापित हुए हैं.

मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि हिंसा के दौरान धार्मिक स्थलों समेत 1700 घर जला दिए गए हैं.

यह पत्र आदिवासी विधायकों के मुख्यमंत्री में विश्वास खोने का संकेत है. यह पिछले कुछ समय से एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व के खिलाफ न केवल उनकी पार्टी के आदिवासी विधायक, बल्कि घाटी इलाकों के विधायकों ने भी अविश्वास जताया है.

11 मई के प्रेस में जारी बयान में स्पष्ट रूप से ‘मणिपुर में 3 मई को शुरू हुई हिंसा’ को ‘मौजूदा सरकार द्वारा समर्थित’ कहा गया है.

बयान में कहा गया है, ‘अपने लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के रूप में हम आज अपने लोगों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और मणिपुर राज्य से अलग होने की उनकी राजनीतिक आकांक्षा का समर्थन करते हैं.’

इसमें आगे कहा गया, ‘जैसा कि मणिपुर राज्य हमारी रक्षा करने में बुरी तरह से विफल रहा है, हम भारत के संविधान के तहत एक अलग प्रशासन की मांग करते हैं और राज्य के साथ पड़ोसियों के रूप में शांति से रहेंगे.’

यह पूछे जाने पर कि ‘अलग प्रशासन’ कैसा होगा, भाजपा विधायक लिटपाओ हाओकिप ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘यह भारत सरकार पर निर्भर है’ कि यह एक अलग राज्य या केंद्र शासित प्रदेश होगा.’

विधायकों में से एक ने कहा कि अगले चरण की योजना के तहत वे 16 मई को मिजोरम में समुदाय के नेताओं और निर्वाचन क्षेत्रों के नागरिक समाज संगठन के नेताओं के साथ बैठक कर रहे हैं, ताकि उन्हें इस मांग के समर्थन में शामिल किया जा सके.

मोदी सरकार साल 2016 के मध्य से कुकी सशस्त्र समूहों के साथ शांति वार्ता कर रही है. इन समूहों ने काफी हद तक असम के बोडो क्षेत्रों की तरह एक स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद पर अपनी उम्मीदें लगाई हुई हैं.

इन समूहों के एक वर्ग की ‘अलग कुकी राज्य’ की लंबे समय से चली आ रही मांग को दरकिनार कर दिया है. ऐसा लगता है कि 3 मई की झड़पों ने उस मांग को पुनर्जीवित कर दिया है.

पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 60 में से 32 सीटें जीती थीं, जिसने पार्टी को उत्तर पूर्व के इस राज्य में पहली बार अपनी सरकार बनाने में मदद की और भारत सरकार के आशीर्वाद से एन. बीरेन सिंह दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे.

11 मई के बयान के बाद, अगर पहाड़ी क्षेत्र के भाजपा के आठ विधायक पार्टी छोड़ने का फैसला करते हैं और केपीए भी अपना समर्थन वापस ले लेता है, तो एन. बीरेन सिंह सरकार मुश्किल में पड़ जाएगी.

कुकी-ज़ोमी विधायकों का बयान विपक्षी कांग्रेस द्वारा मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की मांग करने के बाद आया है, जिसमें कहा गया है कि भाजपा शासित सरकार राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने में ‘विफल’ रही है.

मालूम हो कि मणिपुर का बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय खुद को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग कर रहा है, जिसका आदिवासी समुदाय विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे उनके संवैधानिक सुरक्षा उपाय और अधिकार प्रभावित होंगे.

मेईतेई समुदाय की इस मांग पर पर पनपा तनाव 3 मई को तब हिंसा में तब्दील हो गया, जब इसके विरोध में राज्य भर में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाले गए थे. तब से शुरू हुई हिंसा में आदिवासियों पर मेईतेई समूहों द्वारा हमले और आदिवासियों द्वारा उन पर हमले की खबरें आ रही थीं.

यह मुद्दा इस वजह से भी ज्वलंत हो गया था, क्योंकि मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.

मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.

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