मणिपुर हिंसा पर कैथोलिक समूह ने कहा, चर्च चुप या जनविरोधी सरकार का समर्थन नहीं कर सकता

कैथोलिक सदस्यों के एक मंच ‘फोरम ऑफ रिलिजियस फॉर जस्टिस एंड पीस’ ने कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया के अध्यक्ष को लिखे पत्र में कहा है कि वह मणिपुर में हालिया हिंसा से हैरान और व्यथित है. फोरम ने नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद ईसाइयों के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा के प्रति चर्च की ठंडी प्रतिक्रिया और कुछ बिशपों द्वारा भाजपा सरकार की सराहना को लेकर भी निराशा प्रकट की.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर/@RevPremadas)

कैथोलिक सदस्यों के एक मंच ‘फोरम ऑफ रिलिजियस फॉर जस्टिस एंड पीस’ ने कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया के अध्यक्ष को लिखे पत्र में कहा है कि वह मणिपुर में हालिया हिंसा से हैरान और व्यथित है. फोरम ने नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद ईसाइयों के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा के प्रति चर्च की ठंडी प्रतिक्रिया और कुछ बिशपों द्वारा भाजपा सरकार की सराहना को लेकर भी निराशा प्रकट की.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर/@RevPremadas)

नई दिल्ली: कैथोलिक सदस्यों के एक मंच ने कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) के अध्यक्ष को एक खुला पत्र लिखा है, जिसमें मणिपुर में हाल ही में जातीय हिंसा के दौरान ईसाइयों और ईसाई संस्थानों के खिलाफ हिंसा के कथित कृत्यों और उस पर चर्च की मौन प्रतिक्रिया पर टिप्पणी की है.

फोरम ऑफ रिलिजियस फॉर जस्टिस एंड पीस ने लिखा कि वे ‘मणिपुर में हालिया हिंसा से हैरान और व्यथित हैं.’

इस हिंसा में 70 से अधिक लोगों की मौत हुई है और 200 से अधिक घायल हुए हैं. विस्थापितों की संख्या 30,000 से अधिक है.

यूनियन ऑफ कैथोलिक एशियन न्यूज पर लिखे जॉन दयाल के एक लेख के हवाले से फोरम ने लिखा है कि जातीय संघर्ष को ‘ईसाई विरोधी’ संघर्ष में तब्दील होने दिया गया. दयाल ने लिखा था कि कैथोलिक समेत क्षेत्र के सभी समुदायों के ईसाई पीड़ित हुए हैं.

फोरम ने दयाल द्वारा इस हिंसा की तुलना 2008 के कंधमाल दंगों से करने पर सहमति जताई.

इसके बाद फोरम ने ‘नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से ईसाइयों के खिलाफ बढ़ती हिंसा के प्रति आधिकारिक चर्च की ठंडी प्रतिक्रिया और कुछ बिशपों द्वारा केंद्र में भाजपा सरकार की सराहना’ को लेकर भी निराशा प्रकट की.

फोरम ने उल्लेख किया कि कार्डिनल जॉर्ज एलेनचेरी कथित तौर पर यह बयान दे चुके हैं कि ‘मोदी शासन में ईसाई सुरक्षित हैं.’

यह घोषणा तब हुई है जब आर्कबिशप पीटर मचाडो और दो ईसाई संगठनों ने ईसाइयों पर हमलों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है. पत्र फरवरी में जंतर मंतर पर हुए एक प्रदर्शन के बावजूद भी चर्चों की प्रतिक्रिया न आने की भी आलोचना करता है.

इसमें कहा गया है, ‘दो महीने के भीतर ही दो आर्कबिशप ने 9 अप्रैल 2023 को ईस्टर के अवसर पर नई दिल्ली के सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल चर्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्नेहपूर्वक स्वागत किया. कार्डिनल एलेनचेरी समेत विभिन्न चर्चों के प्रमुख ने हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी की केरल यात्रा के दौरान उनके साथ बैठक की थी. दोनों ही अवसरों पर बिशप ईसाइयों के खिलाफ बढ़ती हिंसा और उनके चर्चों एवं संस्थानों पर हमलों के मुद्दे को उठाने में विफल रहे.’

फोरम लिखता है कि ईसाई ‘संकट के इस दौर में चर्च के नेताओं के अस्पष्ट, भ्रामक और यहां तक ​​कि विरोधाभासी बयानों के कारण अत्यधिक भ्रमित हैं.’

तीखे शब्दों में फोरम लिखता है कि कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, जिन्हें पत्र में संबोधित किया गया है, ‘मणिपुर में शांति के लिए प्रार्थना करने की अपील से संतुष्ट हैं.’

इसके विपरीत, तेलुगू कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस के प्रमुख कार्डिनल पूला एंथोनी और बेंगलुरु के आर्कबिशप पीटर मचाडो में मणिपुर में ईसाई आदिवासियों को निशाना बनाते हुए बड़े पैमाने पर हुई हिंसा की निंदा करने और केंद्र व राज्य सरकार को लोगों के जीवन और संपत्तियों की रक्षा करने और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने की उनकी जिम्मेदारी याद कराने का साहस और संवेदना थी.

फोरम ने कहा कि मुसलमानों ने भी हिंसा का सामना किया है और देश ‘फासीवाद की विनाशकारी स्थिति’ में फंस गया है.

लेखकों का कहना है कि इस महत्वपूर्ण मोड़ पर ‘चर्च चुप नहीं रह सकता है या जनविरोधी सरकार का समर्थन करता हुआ प्रतीत नहीं हो सकता है.’

उन्होंने कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया से अखिल भारतीय संगोष्ठी बुलाने और आज की चुनौतियों का सामना करने के लिए रणनीतियों को प्रोत्साहित करने का आह्वान किया.

मालूम हो कि मणिपुर का बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय खुद को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग कर रहा है, जिसका आदिवासी समुदाय विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे उनके संवैधानिक सुरक्षा उपाय और अधिकार प्रभावित होंगे.

मेईतेई समुदाय की मांग के विरोध में बीते 3 मई ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) द्वारा आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के दौरान चुराचांदपुर जिले के तोरबुंग क्षेत्र में पहली बार हिंसा भड़की थी.

इस दौरान चर्चों पर हमले की घटनाएं सामने आई थीं. जिस पर देश भर के ईसाई संगठनों ने कहा था कि हम राज्य में ईसाइयों को निशाना बनाने और उनके उत्पीड़न में बढ़ोतरी को लेकर चिंतित हैं. हम सभी पक्षों से संयम बरतने और मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में काम करने का आह्वान करते हैं.

यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) के अनुसार वर्ष 2022 के पहले सात महीनों में ईसाइयों के खिलाफ 302 हमले हुए थे. फोरम ने यह डेटा उसके पास उसकी हेल्पलाइन पर आए मदद मांगने वाले फोन कॉल के आधार पर जुटाया है.

द वायर ने भी इस संबंध में वर्ष 2021 में एक फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट के हवाले से बताया था कि 2021 के शुरुआती 9 महीनों में ईसाइयों के साथ हिंसा के 300 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे.

बता दें कि ईसाइयों पर हमलों के लेकर बेंगलुरु के आर्कबिशप पीटर मचाडो, नेशनल सॉलीडैरिटी फोरम और इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया की ओर से सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें ईसाइयों के खिलाफ अत्याचारों की स्वतंत्र जांच की मांग की गई.

इसमें याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि जनवरी से दिसंबर 2021 के बीच ईसाई समुदाय के खिलाफ 505 से अधिक हमले हुए और 2022 में इस संख्या में वृद्धि हुई है.

मामले पर सुनवाई के दौरान बीते वर्ष एक सितंबर को याचिकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने बताया था, ‘पिछले एक साल में ईसाई समुदाय के लोगों के खिलाफ हुई हिंसा की 700 से अधिक घटनाएं दर्ज हुई हैं.’

गौरतलब है कि बीते वर्ष केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि ईसाइयों पर हमलों के खिलाफ कार्रवाई का आग्रह करने वाली जनहित याचिका विभिन्न समाचार संगठनों की ‘स्वयंसेवी रिपोर्ट’ पर आधारित है, इसलिए इस पर सुनवाई नहीं होना चाहिए.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.