मणिपुर में बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के मुद्दे पर पनपा तनाव बीते 3 मई को जातीय हिंसा में तब्दील हो गया था. मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई को एसटी में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफ़ारिश सौंपे.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते बुधवार (17 मई) को मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों (एसटी) की सूची में मेईतेई समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश के खिलाफ ‘कड़ी टिप्पणी’ की.
ऐसा माना जाता है कि इस आदेश से मणिपुर के गैर-मेतेतेई निवासी जो पहले से ही अनुसूचित जनजातियों की सूची में हैं, के बीच काफी चिंता पैदा हो कर दी थी, जिसके परिणामस्वरूप बीते 3 मई को निकाले गए एक विरोध मार्च के दौरान जातीय हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें कम से कम 60 लोग मारे गए, सैकड़ों घायल हुए और हजारों लोग विस्थापित हुए थे.
समाचार वेबसाइट लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि भारत के मुख्य न्यायाधीश सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने आदेश पर रोक लगाने की ओर अपना झुकाव व्यक्त किया था, लेकिन उसने अंततः ऐसा नहीं किया. जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला भी पीठ का हिस्सा थे.
सीजेआई चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, ‘मुझे लगता है कि हमें हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगानी होगी. हमने जस्टिस मुरलीधरन को खुद को सही करने का समय दिया है, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. मेरा मतलब है कि यह बहुत स्पष्ट है कि यदि हाईकोर्ट संविधान न्यायाधीशों की पीठों का पालन नहीं करता है तो क्या करना है.’
समाचार वेबसाइट बार और बेंच ने अपनी एक रिपोर्ट में सीजेआई की टिप्पणी को थोड़ा अलग तरह से पेश किया. यह संस्करण अधिक महत्वपूर्ण के रूप में सामने आता है:
रिपोर्ट के अनुसार, सीजेआई ने कहा, ‘हमें मणिपुर हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगानी होगी. यह तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह से गलत है. हमने जस्टिस मुरलीधरन को उनकी गलती सुधारने के लिए समय दिया और उन्होंने ऐसा नहीं किया. हमें अब इसके खिलाफ कड़ा रुख अपनाना होगा. यह स्पष्ट है कि अगर हाईकोर्ट के न्यायाधीश संविधान पीठ के निर्णयों का पालन नहीं करते हैं तो हम क्या करें. यह बहुत स्पष्ट है.’
बीते मार्च महीने के आखिर में राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेईतेई समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश देने वाला यह आदेश मणिपुर हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एमवी मुरलीधरन ने दिया था.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि सरकार ने जमीनी स्थिति को देखते हुए विस्तार के लिए कहा था, स्टे के लिए नहीं. इसके बाद उन्होंने कहा, हाईकोर्ट ने मणिपुर सरकार को एक साल का विस्तार दिया था.
पिछली सुनवाई में भी सीजेआई चंद्रचूड़ ने हाईकोर्ट के फैसले की आलोचना करते हुए टिप्पणी की थी कि यह फैसला संविधान पीठ के उन फैसलों के खिलाफ है, जो कहते हैं कि अनुसूचित जनजातियों की सूची को बदलने के लिए न्यायिक आदेश पारित नहीं किए जा सकते हैं.
जब सीजेआई ने याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट की एक खंडपीठ के समक्ष पेश होने के लिए कहा तो मणिपुर ट्राइबल फोरम दिल्ली के वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि कुकी समुदाय (एसटी समुदाय) के वकील हाईकोर्ट के समक्ष उपस्थित नहीं हो सकते, क्योंकि उनका गांव एक किलोमीटर दूर है और ‘यह बहुत खतरनाक है’.
तब सीजेआई चंद्रचूड़ ने उन्हें वर्चुअली पेश होने को कहा.
गोंजाल्विस के इस दावे पर कि अभी तक कुछ समुदायों के खिलाफ हमलों की योजना बनाई जा रही थी, सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार से ऐसी आशंकाओं पर उचित कार्रवाई करने का आग्रह किया.
बीते 8 मई को मामले की पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में हुई हिंसा को एक ‘मानवीय समस्या’ बताया था. अदालत ने कहा था कि किसी समुदाय को अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में नामित करने की शक्ति हाईकोर्ट के पास नहीं, बल्कि राष्ट्रपति के पास होती है.
सीजेआई चंद्रचूड़ ने मामले में केंद्र और राज्य सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा था, ‘आपको हाईकोर्ट को संविधान पीठ के फैसलों के बारे में बताना चाहिए था, जिसमें कहा गया था कि हाईकोर्ट के पास शक्ति नहीं है. किसी समुदाय को अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति में नामित करने की शक्ति राष्ट्रपति के पास होती है.’
सीजेआई ने वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े से यह बात कही थी, जिन्होंने मामले में मूल याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया था, जिसके कारण मणिपुर हाईकोर्ट ने 27 मार्च को आदेश (मेईतेई को एसटी में शामिल करने की सिफारिश) दिया था.
मालूम हो कि राज्य में बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के मुद्दे पर पनपा तनाव 3 मई को तब हिंसा में तब्दील हो गया, जब इसके विरोध में राज्य भर में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाले गए थे. हिंसा के दौरान आदिवासियों पर मेईतेई समूहों द्वारा हमले और आदिवासियों द्वारा उन पर हमले की खबरें आ रही थीं.
यह मुद्दा एक बार फिर तब ज्वलंत हो गया, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.
मणिपुर विधानसभा की पहाड़ी क्षेत्र समिति (एचएसी) के अध्यक्ष और भाजपा विधायक डिंगांगलुंग गंगमेई द्वारा शीर्ष अदालत में दायर याचिका में आरोप लगाया गया था कि हाईकोर्ट के आदेश के कारण मणिपुर में झड़पें हुईं.
सुप्रीम कोर्ट में गंगमेई और मणिपुर ट्राइबल फोरम का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस कर रहे हैं.
इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें