क़ानून मंत्रालय से बाहर किए जाने के बाद विपक्ष ने रिजिजू को ‘असफल क़ानून मंत्री’ क़रार दिया

केंद्र की मोदी सरकार ने एक महत्वपूर्ण फेरबदल करते हुए किरेन रिजिजू से क़ानून मंत्रालय का ज़िम्मा ले लिया है. रिजिजू को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय दिया गया है. उनकी जगह अर्जुन राम मेघवाल लेंगे, जिन्हें क़ानून और न्याय मंत्रालय का राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया है.

किरेन रिजिजू. (फोटो साभार: ट्विटर/@KirenRijiju)

केंद्र की मोदी सरकार ने एक महत्वपूर्ण फेरबदल करते हुए किरेन रिजिजू से क़ानून मंत्रालय का ज़िम्मा ले लिया है. रिजिजू को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय दिया गया है. उनकी जगह अर्जुन राम मेघवाल लेंगे, जिन्हें क़ानून और न्याय मंत्रालय का राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया है.

किरेन रिजिजू. (फोटो साभार: ट्विटर/@KirenRijiju)

नई दिल्ली: केंद्रीय कानून मंत्री के पद से हटाए जाने के बाद कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के विभिन्न नेताओं किरेन रिजिजू पर कटाक्ष किया है. रि​जिजू को बीते बृहस्पतिवार (18 मई) को कानून मंत्रालय से ​पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में ट्रांसफर कर दिया गया.

केंद्र की मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में इस फेरबदल के विपक्षी नेताओं ने रिजिजू को एक ‘विफल कानून मंत्री’ करार दिया है.

द प्रिंट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, मोदी मंत्रिमंडल में अचानक किए गए बदलाव के बाद रिजिजू का स्थान अर्जुन राम मेघवाल [राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)] ने ले लिया. बीते बृहस्पतिवार को राष्ट्रपति भवन से एक संक्षिप्त विज्ञप्ति में कहा गया है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह पर केंद्रीय मंत्रिपरिषद में मंत्रियों के बीच विभागों का पुनर्आवंटन किया है.

इसमें कहा गया, ‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का पोर्टफोलियो किरेन रिजिजू को सौंपा जाए.’

कानून मंत्रालय से हटाए जाने के बाद रि​जिजू ने एक ​ट्वीट में कहा, ‘विधि और न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में नई जिम्मेदारी मिलने पर मेरे सहयोगी अर्जुन राम मेघवाल जी को शुभकामनाएं! मुझे पूर्ण विश्वास है कि माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के मार्गदर्शन में वह आम नागरिकों को बेहतर न्याय दिलाने की दिशा में समर्पित रूप से काम करेंगे.’

कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने नियमित रूप से न्यायिक नियुक्तियों की कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ मुखर रहे रिजिजू को एक ‘असफल कानून मंत्री’ बताया, जबकि अनुभवी वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि कानूनों के पीछे के विज्ञान को समझना आसान नहीं था.

लोकसभा में कांग्रेस के सचेतक टैगोर ने एक ट्वीट में कहा, ‘असफल कानून मंत्री हटाए गए. पृथ्वी विज्ञान में वह क्या कर सकते हैं? आशा है कि अर्जुन राम मेघवाल कानून मंत्री के रूप में एक गरिमापूर्ण तरीके से काम करेंगे.’

पूर्व कानून मंत्री सिब्बल ने कहा, ‘कानून नहीं, अब पृथ्वी विज्ञान मंत्री हैं. कानूनों के पीछे के विज्ञान को समझना आसान नहीं है. अब (वह) विज्ञान के नियमों से जूझने की कोशिश करेंगे. गुड लक मेरे दोस्त!’

कांग्रेस के एक अन्य नेता अभिषेक सिंघवी ने कहा, ‘दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली पार्टी को पूर्णकालिक कानून मंत्री तक नहीं मिल पा रहा है.’

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद सिंघवी ने एक ट्वीट में कहा, ‘यह न केवल सत्ता पक्ष में प्रतिभा की कमी को दर्शाता है, बल्कि सरकार की अक्षमता को भी दिखाता है.’

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) नेता और राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने रिजिजू को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में ट्रांसफर किए जाने के संभावित कारणों पर विचार किया और आश्चर्य किया कि क्या महाराष्ट्र पर सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला एक कारण था.

चतुर्वेदी ने एक ट्वीट में पूछा, ‘क्या यह महाराष्ट्र के फैसले की शर्मिंदगी के कारण है? या मोदानी (मोदी+अडानी)-सेबी जांच?’

बसपा के दानिश अली ने ट्वीट किया, ‘लोकसभा में 7 फरवरी 2023 को मैंने किरेन रिजिजू द्वारा न्यायपालिका की अनुचित और खतरनाक आलोचना पर कड़ी आपत्ति जताई थी, लेकिन सरकार ने समय पर कार्रवाई नहीं की. उन्हें आज हटा दिया गया है. काफी देर हो चुकी है और वह पहले ही संस्था को अपूरणीय क्षति पहुंचा चुके हैं.’

2022 में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट द्वारा विद्रोह के बाद महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार गिरने के कारण राजनीतिक संकट से संबंधित कई याचिकाओं की सुनवाई करते हुए बीते 11 मई को एक सर्वसम्मत फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि कुछ विधायकों के बीच असंतोष राज्यपाल के लिए फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाने के लिए पर्याप्त नहीं है.

अपने फैसले में इसने कहा कि तत्कालीन राज्यपाल का पार्टी के भीतरी विवादों को हल करने के लिए फ्लोर टेस्ट कराने का निर्णय गलत और स्पीकर द्वारा बागी एकनाथ शिंदे गुट से पार्टी सचेतक नियुक्त करना अवैध था.

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि राज्यपाल राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते हैं और फ्लोर टेस्ट पार्टी के आंतरिक विवादों को तय करने का एक उपकरण नहीं है.

अदालत ने यह भी जोड़ा कि वह उद्धव ठाकरे सरकार को बहाल नहीं कर सकता, क्योंकि ठाकरे ने शिंदे गुट के अलग होने के बाद फ्लोर टेस्ट का सामना किए बिना ही इस्तीफ़ा दे दिया था.

रिजिजू को 7 जुलाई 2021 को कानून मंत्री नामित किया गया था. रिजिजू से पहले केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से भी इसी मंत्रालय की जिम्मेदारी वापस ली गई थी.

कानून मंत्री के बतौर किरेन रिजिजू कॉलेजियम व्यवस्था और जजों की नियुक्ति को लेकर न्यायपालिका पर हमलावर रहे, जिसके चलते मोदी सरकार पर न्यायपालिका को अपने कब्जे में लेने का प्रयास करने के आरोप लगते रहे.

उल्लेखनीय है कि जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली बीते कुछ समय से केंद्र और न्यायपालिका के बीच गतिरोध का विषय बनी हुई है, जहां कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू कई बार विभिन्न प्रकार की टिप्पणियां कर चुके हैं.

दिसंबर 2022 में संपन्न हुए संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान रिजिजू सुप्रीम कोर्ट से जमानत अर्जियां और ‘दुर्भावनापूर्ण’ जनहित याचिकाएं न सुनने को कह चुके हैं, इसके बाद उन्होंने अदालत की छुट्टियों पर टिप्पणी करने के साथ कोर्ट में लंबित मामलों को जजों की नियुक्ति से जोड़ते हुए कॉलेजियम के स्थान पर नई प्रणाली लाने की बात दोहराई थी.

इससे पहले भी रिजिजू कुछ समय से न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम प्रणाली को लेकर आलोचनात्मक बयान देते रहे हैं.

नवंबर 2022 में किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम व्यवस्था को ‘अपारदर्शी और एलियन’ बताया था. उनकी टिप्पणी को लेकर शीर्ष अदालत ने नाराजगी भी जाहिर की थी.

सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की विभिन्न सिफारिशों पर सरकार के ‘बैठे रहने’ संबंधी आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए रिजिजू ने कहा था कि ऐसा कभी नहीं कहा जाना चाहिए कि सरकार फाइलों पर बैठी हुई है.

नवंबर 2022 में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि सरकार का कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नाम रोके रखना अस्वीकार्य है. कॉलेजियम प्रणाली के बचाव में इसके बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था परफेक्ट नहीं है.

इसके बाद दिसंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली इस देश का कानून है और इसके खिलाफ टिप्पणी करना ठीक नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसके द्वारा घोषित कोई भी कानून सभी हितधारकों के लिए ‘बाध्यकारी’ है और कॉलेजियम प्रणाली का पालन होना चाहिए.

वहीं, इसी साल जनवरी महीने में रिजिजू ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखते हुए कहा था कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को हाईकोर्ट के कॉलेजियम में जगह दी जानी चाहिए. विपक्ष ने इस मांग की व्यापक तौर पर निंदा की थी.

बीते 22 जनवरी को ही रिजिजू ने दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आरएस सोढ़ी के एक साक्षात्कार का वीडियो साझा करते हुए उनके विचारों का समर्थन किया था. सोढ़ी ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति का फैसला कर संविधान का ‘अपहरण’ (Hijack) किया है.

सोढ़ी ने यह भी कहा था कि कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है. इसे लेकर कानून मंत्री का कहना था, ‘वास्तव में अधिकांश लोगों के इसी तरह के समझदारीपूर्ण विचार हैं. केवल कुछ लोग हैं, जो संविधान के प्रावधानों और जनादेश की अवहेलना करते हैं और उन्हें लगता है कि वे भारत के संविधान से ऊपर हैं.’

बीते मार्च महीने में किरेन रिजिजू ने कहा था कि ‘तीन या चार’ रिटायर जज ‘भारत-विरोधी’ गिरोह का हिस्सा हैं. साथ ही कहा था कि जिसने भी देश के खिलाफ काम किया है, उसे कीमत चुकानी होगी.

रिजिजू ने कहा था कि कुछ सेवानिवृत्त ‘एक्टिविस्ट’ जज हैं जो ऐसी कोशिश कर रहे हैं कि भारतीय न्यायपालिका विपक्ष की भूमिका निभाए.

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