चिन-कुकी-मिज़ो-ज़ोमी-हमार समुदायों से आने वाले मणिपुर के 10 विधायकों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को दिए गए एक ज्ञापन में कहा है कि हिंसा के बाद उनके लोगों ने भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में ‘विश्वास खो दिया है’. इन विधायकों में भाजपा के सात विधायक शामिल है. कांग्रेस ने हिंसा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाए हैं.
नई दिल्ली: कांग्रेस ने मणिपुर में हिंसा भड़कने के 15 दिन बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘चुप्पी’ पर गुरुवार (18 मई) को सवाल उठाया और इंटरनेट पर प्रतिबंध के कारण आम लोगों को हो रही परेशानियों की ओर इशारा किया.
इसके अलावा हिंसा के बाद चिन-कुकी-मिज़ो-ज़ोमी-हमार समुदायों से ताल्लुक रखने वाले कम से कम 10 विधायकों ने एक बाद फिर अलग प्रशासन की मांग दोहरायी है.
द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट किए गए एक बयान में कांग्रेस संचार प्रमुख जयराम रमेश ने कहा कि गृहमंत्री अमित शाह या किसी अन्य कैबिनेट मंत्री ने हिंसा प्रभावित पूर्वोत्तर राज्य का दौरा नहीं किया है.
रमेश ने कहा, ‘मणिपुर में भड़की हिंसा और इंटरनेट पर प्रतिबंध को 15 दिन हो गए. कल (17 मई) इंटरनेट पर प्रतिबंध 5 दिनों के लिए और बढ़ा दिया गया. बैंकिंग, ई-कॉमर्स, ई-बिल का भुगतान, ई-टिकट, व्यवसाय, घर से काम, शिक्षा और कई अन्य आवश्यक सेवाएं ठप पड़ी हैं. इस बीच, शांति की अपील करते हुए प्रधानमंत्री द्वारा एक शब्द भी नहीं कहा गया है. केंद्रीय गृहमंत्री या अन्य किसी कैबिनेट मंत्री ने राज्य का एक भी दौरा नहीं किया है.’
15 days since the horrific violence erupted in Manipur and internet was banned.
Yesterday, the ban was extended for another 5 days.
Banking, e-commerce, payments of e-bills, e-tickets, businesses, work from home, education, and many other essential services have come to a…
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) May 18, 2023
इस बीच, बुधवार (17 मई) को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्य का दौरा कर रिपोर्ट सौंपने के लिए पर्यवेक्षकों की एक टीम का गठन किया. ऐसा उन्होंने मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री इबोबी सिंह के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल द्वारा मांग किए जाने के बाद किया.
बुधवार को खड़गे ने ट्वीट किया, ‘मणिपुर में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है और बेहद चिंताजनक है. केंद्र सरकार को राज्य में स्थिति सामान्य बनाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए. शांति सुनिश्चित करने में हर समुदाय की हिस्सेदारी होती है. आइए हम सभी को विश्वास में लें.’
The situation in Manipur remains tense and is deeply distressing.
The Union Government should do everything possible to see normalcy returns to the state. Every community has a stake in ensuring peace.
Let us take everyone in confidence.
2/2
— Mallikarjun Kharge (@kharge) May 17, 2023
मालूम हो कि राज्य में बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के मुद्दे पर पनपा तनाव 3 मई को तब हिंसा में तब्दील हो गया, जब इसके विरोध में राज्य भर में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाले गए थे. हिंसा के दौरान आदिवासियों पर मेईतेई समूहों द्वारा हमले और आदिवासियों द्वारा उन पर हमले की खबरें आ रही थीं.
यह मुद्दा एक बार फिर तब ज्वलंत हो गया था, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.
ऐसा माना जाता है कि इस आदेश से मणिपुर के गैर-मेईतेई निवासी जो पहले से ही अनुसूचित जनजातियों की सूची में हैं, के बीच काफी चिंता पैदा हो कर दी थी, जिसके परिणामस्वरूप बीते 3 मई को निकाले गए एक विरोध मार्च के दौरान जातीय हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें कम से कम 60 लोग मारे गए, सैकड़ों घायल हुए और हजारों लोग विस्थापित हुए थे.
बीते 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेईतेई समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश के खिलाफ ‘कड़ी टिप्पणी’ की थी. शीर्ष अदालत ने इस आदेश को तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत बताया था.
इससे पहले बीते 8 मई को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में हुई हिंसा को एक ‘मानवीय समस्या’ बताया था. अदालत ने कहा था कि किसी समुदाय को अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में नामित करने की शक्ति हाईकोर्ट के पास नहीं, बल्कि राष्ट्रपति के पास होती है.
मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.
विधायकों ने फिर दोहराई अलग प्रशासन की मांग
इधर, द टेलीग्राफ ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि मणिपुर के 10 विधायक, जो चिन-कुकी-मिज़ो-ज़ोमी-हमार समुदायों से ताल्लुक रखते हैं, ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को दिए गए एक ज्ञापन में दावा किया है कि उनके लोगों ने भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में ‘विश्वास खो दिया है’ और 3 मई को भड़की हिंसा के बाद ‘घाटी में फिर से बसने’ के बारे में वे अब और नहीं सोच सकते हैं.
इन 10 विधायक, जिनमें से सात सत्तारूढ़ भाजपा से हैं, जिनमें दो मंत्री हैं, इसके अलावा कुकी पीपुल्स अलायंस के दो और एक निर्दलीय विधायक शामिल हैं, ने बीते 15 मई को दिल्ली में शाह से मुलाकात की थी, ताकि उन्हें मौजूदा अशांति से अवगत कराया जा सके और उनके लोगों के लिए ‘अलग प्रशासन’ की मांग की जा सके.
विधायकों ने पहाड़ियों में एक अलग प्रशासन की अपनी मांग को दोहराया कहा है, ‘मेईतेई समुदाय हमसे नफरत करते हैं, हमारा सम्मान नहीं करते हैं. आवश्यकता अब हमारे लोगों द्वारा बसाई गई पहाड़ियों के अलग प्रशासन की स्थापना के माध्यम से अलगाव को औपचारिक रूप देने की है. हम अब और साथ नहीं रह सकते.’
उन्होंने यह भी कहा कि हिंसा भड़कने के बाद से किसी भी केंद्रीय मंत्री ने राज्य का दौरा नहीं किया है.
द टेलीग्राफ के मुताबिक, मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 37 विधायक हैं और उसे 18 विधायकों का समर्थन प्राप्त है. 10 विधायक अब तक अलग प्रशासन पर अडिग हैं, भाजपा के एक विधायक ने स्पष्ट करते हुए कहा कि वे अपनी पार्टी के खिलाफ नहीं हैं.
गृह मंत्री से दोनों समुदायों के प्रशासन को अलग करने के लिए एक उपयुक्त तंत्र पर गंभीरता से विचार करने का आग्रह करते हुए विधायकों ने कुकी-चिन-मिज़ो-ज़ोमी-हमार अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय द्वारा अशांति को ‘संस्थागत जातीय सफाई’ के रूप में वर्णित किया. जो ज्यादातर राज्य के 10 पहाड़ी जिलों में रह रहे हैं. मणिपुर में 16 जिले हैं, जिनमें से छह घाटी क्षेत्र में स्थित हैं.
इससे पहले बीते 11 मई को एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली मणिपुर की भाजपा सरकार के दो मंत्रियों सहित राज्य के कुकी-ज़ोमी समुदाय से संबंधित 10 विधायकों ने एक प्रेस बयान जारी कर केंद्र सरकार से भारतीय संविधान के तहत एक ‘अलग प्रशासन’ बनाने और अपने समुदाय के लोगों को ‘मणिपुर राज्य के साथ शांतिपूर्वक पड़ोसियों के रूप में रहने देने’ का आग्रह किया था.
हालांकि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने बीते 15 मई को अपनी ही पार्टी के 7 सहित 10 विधायकों द्वारा राज्य के कुकी बहुल जिलों के लिए एक अलग प्रशासन की मांग को खारिज करते हुए कहा था कि ‘मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा की जाएगी’.
लूटे गए हथियार बने चिंता का विषय
इस बीच, 3 मई से मणिपुर में भड़की नस्लीय हिंसा के दौरान मुख्य रूप से मेईतेई समूहों द्वारा लूटे गए हथियारों ने सुरक्षा बलों के लिए गंभीर चिंता खड़ी कर दी है. इंडियन एक्सप्रेस की एक के मुताबिक, उन्हें डर है कि हथियार पीएलए जैसे उग्रवादी गुटों के हत्थे चढ़ सकते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘मणिपुर में हिंसा के पहले कुछ दिनों के दौरान मणिपुर पुलिस प्रशिक्षण कॉलेज, दो पुलिस थानों और इंफाल में एक आईआरबी बटालियन शिविर से 1,000 से अधिक हथियार और 10,000 राउंड लूटे गए थे.’
सूत्रों ने अखबार को बताया कि कुकी लोगों ने चुराचांदपुर में पुलिस थानों पर हमला किया और लूटपाट की थी.
ये हथियार अगर जल्द बरामद नहीं हुए तो तबाही मचाने की क्षमता रखते हैं.
इस बीच, घाटी की सिविल सोसायटी समूहों की संयुक्त इकाई कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटेग्रिटी (सीओसीओएमआई) ने उनके पास आ रहे उन अज्ञात फोन कॉल के बारे में पुलिस को सूचित किया है, जिनमें उनसे कहा जा रहा है कि वह हथियारों की बरामदगी को रोकने के लिए सरकार पर दबाव बनाए.
हिंसा के बाद मणिपुर सरकार को सलाह दे रहे सीआरपीएफ के पूर्व डीजी कुलदीप सिंह ने कहा कि अब तक 456 हथियार और 6,670 गोला-बारूद बरामद किए गए हैं. उन्होंने कहा कि बरामद हथियारों में मेईतेई और कुकी समूहों द्वारा लूटे गए हथियार शामिल हैं.
बुधवार (17 मई) को सुप्रीम कोर्ट में मणिपुर ट्राइबल फोरम दिल्ली का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने पीठ को बताया था कि कुकी समुदाय को अपने खिलाफ और हिंसा होने की आशंका है. सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार से ऐसी आशंकाओं पर उचित कार्रवाई करने का आग्रह किया था.
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