पुणे स्थित भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान में फिल्म डिप्लोमा पाठ्यक्रम में न्यूनतम उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाने के चलते एक छात्र को संस्थान द्वारा फेल कर दिया गया था. साथ ही राजस्थान के दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले छात्र का कहना है कि इलाज का मेडिकल दस्तावेज़ देने के बाद भी उन्हें निष्कसित कर दिया गया.
मुंबई: महाराष्ट्र के पुणे स्थित भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) में एक 27 वर्षीय छात्र चार अन्य छात्रों के साथ भूख हड़ताल पर है. 20 मई को उनका यह आंदोलन छठे दिन में प्रवेश कर गया.
आयुष वर्मा नामक छात्र को अपने दो वर्षीय फिल्म डिप्लोमा पाठ्यक्रम के पहले वर्ष में न्यूनतम उपस्थिति दर्ज नहीं करने के चलते हाल ही में संस्थान द्वारा अनुत्तीर्ण कर दिया गया था.
इतना ही नहीं राजस्थान के दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले आयुष को अपने मनोरोग (Psychiatric) के इलाज के मेडिकल दस्तावेज उपलब्ध कराए जाने के बाद भी निष्कसित कर दिया गया.
शुक्रवार (19 मई) को भूख हड़ताल ने नाटकीय मोड़ तब ले लिया, जब उपवास कर रहे छात्रों में से एक अश्विन एके गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा.
हड़ताल पर बैठे छात्रों में से एक अयान मृणाल ने कहा, ‘उन्हें गंभीर रूप से पानी की कमी हो गई थी. उनके वाइटल्ज तेजी से नीचे गिर गए तो उन्हें अस्पताल ले जाया गया.’
छात्र पिछले छह दिनों से भूख हड़ताल पर हैं, लेकिन उन्होंने अपना विरोध जताना 10 अप्रैल को शुरू किया था. यह प्रशासन द्वारा पर्याप्त उपस्थिति न होने पर आयुष और मृणाल समेत पांच छात्रों को निष्कासित करने का निर्णय लेने के तुरंत बाद शुरू किया गया था. जहां प्रशासन ने अन्य छात्रों द्वारा प्रदान किए गए कारणों को स्वीकार कर लिया, आयुष के मामले पर विचार नहीं किया गया.
आयुष ने द वायर से बात करते हुए कहा कि जिस क्षण संस्थान ने उनसे मेडिकल प्रमाण मांगा कि वह कक्षाओं में क्यों शामिल नहीं हो सके, उन्होंने उन्हें प्रदान कर दिया था.
आयुष का कहना है कि वह पहले संस्थान के सामने अपने मानसिक स्वास्थ्य हालात का खुलासा नहीं करना चाहते थे. उन्होंने कहा, ‘लेकिन जब मुझे एहसास हुआ कि मेरी पढ़ाई जारी रखने का कोई रास्ता नहीं है, तो मैंने आवश्यक चिकित्सा उपचार प्रमाण प्रदान किए.’ उनका कहना है कि हालांकि इन प्रमाणों को संस्थान द्वारा ‘पर्याप्त’ नहीं माना गया.
रजिस्ट्रार ने आयुष की जानकारी या सहमति के बिना मनोचिकित्सक को लिखकर यह साबित करने के लिए कहा था कि उनकी हालत वास्तव में इतनी खराब थी कि वह कॉलेज में उपस्थित न हो सकें.
कॉलेज के रिकॉर्ड से पता चलता है कि कोर्स पास करने के लिए आवश्यक 16 क्रेडिट के मुकाबले आयुष केवल 10 क्रेडिट या 30 फीसदी उपस्थिति दर्ज करा सके. आयुष कहते हैं, ‘लेकिन मेडिकल लीव सर्टिफिकेट, जो मैंने सात दिनों के लिए प्रस्तुत किया था, के साथ ही मेरी उपस्थिति स्वत: बढ़ गई और जरूरी उपस्थिति पूरी हो गई.’
वह आगे कहते हैं कि उन्होंने दो वैकल्पिक पाठ्यक्रमों में भी भाग लिया था और इसके साथ उनके क्रेडिट 18 तक बढ़ गए होंगे. हालांकि, संस्थान ने उनके मामले में इस पर विचार नहीं करने का फैसला किया.
आयुष, जो इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि से आते हैं, कहते हैं कि वह इसकी बहुत कोशिश करते हैं कि अपने प्रति संस्थान के व्यवहार को अपनी जाति से जोड़कर न देखें. वह कहते हैं, ‘लेकिन यह कठिन है.’
वे आगे कहते हैं, ‘जिस तरह उन्होंने मेरे मामले में अन्य छात्रों के मुकाबले अलग रुख अपनाया, उसे देखिए. उन्होंने न केवल मेरी गरिमा को कम करने की कोशिश की, बल्कि यह भी दिखाया कि मैं इस प्रमुख संस्थान में पढ़ने के काबिल नहीं हूं.’
द वायर से बात करते समय उनकी हालत कमजोर थी और वह दस्त एवं पानी की कमी की शिकायत कर रहे थे.
प्रदर्शनकारी छात्रों ने आरोप लगाया कि संस्थान ने पांच छात्रों को निष्कासित करने के लिए ‘आपातकालीन अकादमिक परिषद की बैठक’ बुलाई थी.
मृणाल कहते हैं, ‘लेकिन अब जब हम भूख हड़ताल पर हैं और जोर दे रहे हैं कि एक और ‘आपातकालीन अकादमिक परिषद’ की बैठक बुलाई जाए, ताकि कक्षाएं बिना किसी और देरी के चल सकें और आयुष को बहाल किया जा सके, तो संस्थान हमारी मांग की अनदेखी कर रहा है. एफटीआईआई ने 30 मई को अगली अकादमिक परिषद की बैठक बुलाई है.’
द वायर ने संस्थान के रजिस्ट्रार सैय्यद रबीहाशमी से संपर्क किया, जिन्होंने दावा किया कि आयुष वर्मा ने समय पर दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए थे. सैय्यद ने छात्र के इन आरोपों का भी खंडन किया कि संस्थान छात्रों के साथ बात करने और उनकी मांगों पर गौर करने तैयार नहीं है.
रजिस्ट्रार ने दावा किया, ‘यह सच नहीं है. हमने समय-समय पर छात्रों से मुलाकात की है और इतना ही नहीं अकादमिक परिषद में छात्र संघ के प्रतिनिधि भी होते हैं.’
उन्होंने कहा कि 30 मई को अकादमिक परिषद अन्य मुद्दों के साथ आयुष के मामले को भी देखेगी.
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