मणिपुर में शुरुआती हिंसा के समय 1,000 हथियार और 10,000 से अधिक गोलियां आदि लूटे गए थे. बीते हफ्ते जब दोबारा हिंसा हुई, तो इससे तीन गुना अधिक लूट देखी गई. ख़बरों के अनुसार, पुलिस और राज्य के शस्त्रागार से अब तक ‘लूटे गए’ हथियारों की कुल संख्या 4,000 से अधिक है.
नई दिल्ली: हिंसा से प्रभावित मणिपुर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे के बीच नागरिकों द्वारा तीन हज़ार हथियार (जिसमें हैंड ग्रेनेड और गोलियां, कारतूस आदि शामिल हैं) ‘लूटे जाने’ की खबर सामने आई है.
इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया है कि पुलिस और राज्य के शस्त्रागार से अब तक ‘लूटे गए’ हथियारों की कुल संख्या 4,000 से अधिक है.
सूत्रों के अनुसार, 3 मई से शुरू हुई हिंसा के समय लोगों द्वारा 1,000 हथियार और 10,000 से अधिक गोलियां आदि लूटे गए थे. पिछले हफ्ते जब हिंसा दोबारा हुई, तो इससे तीन गुना अधिक लूट देखी गई.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, मणिपुर सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि आकलन से पता चला है कि हिंसा शुरू होने के बाद से मोर्टार सहित कम से कम 5,00,000 गोलियां और 3,500 बंदूकें लूटी गई हैं.
बताया गया है कि इन हथियारों की बरामदगी काफी मुश्किल रही है. अब तक, पुलिस लगभग 650 हथियार बरामद करने में सफल रही है, वहीं 3,300 से अधिक नागरिकों के पास अब भी हथियार होने की सूचना है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, राज्य में सामान्य स्थिति बहाल करने के प्रयासों के बीच नागरिकों के पास हथियार होना एक बड़ी बाधा है. सुरक्षा प्रतिष्ठानों ने हथियारों को बरामद करने को स्थिति नियंत्रण में लाने का पहला कदम बताया है.
इससे पहले गृह मंत्री अमित शाह ने नागरिकों से गुरुवार (1 जून) तक हुए हथियार वापस करने की अपील की थी. उन्होंने कहा था कि ऐसा न करने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
बताया गया है कि शुक्रवार सुबह तक सिर्फ 144 हथियार सरेंडर किए गए. इससे पहले पुलिस ने करीब 500 हथियार बरामद किए थे.
मणिपुर सरकार के सलाहकार कुलदीप सिंह ने 3 मई से अब तक 4,000 से अधिक हथियार लूटे जाने की पुष्टि करते हुए कहा, ‘कुछ ग्रेनेड और गोलियों आदि के साथ 144 हथियार सरेंडर किए गए हैं. हमें उम्मीद है कि और लोग आगे आएंगे. हम जल्द ही अपना तलाशी अभियान शुरू करेंगे.’
अब तक की हिंसा में 98 लोगों की मौत, 36 हज़ार के करीब रिलीफ कैंपों में: राज्य सरकार
इस बीच, हिंसा के एक महीने बाद मरने वालों की संख्या 98 तक पहुंच गई है. हालांकि, छिटपुट गोलीबारी की घटनाएं भी कुछ हिस्सों में जारी हैं. अधिकांश जिलों में कर्फ्यू में ढील दी गई है. वहीं, शुक्रवार को दो स्थानों पर सशस्त्र बदमाशों और सशस्त्र नागरिकों के बीच गोलीबारी की भी सूचन सामने आई है.
मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा जारी एक बयान में घायलों की संख्या 310 बताई गई है, वहीं, आगजनी के मामलों की संख्या 4,1014. दर्ज की गई है.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, कुलदीप सिंह ने बताया, ‘अब तक हिंसा से संबंधित कुल 3,734 एफआईआर दर्ज की गई हैं और इसमें शामिल होने के आरोप में 65 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. आगजनी के दर्ज मामलों की कुल संख्या 4014 तक पहुंच गई है और कम से कम 36,450 विस्थापित लोग राज्य भर में 274 राहत शिविरों में हैं.’
मालूम हो कि मणिपुर में बीते 3 मई को भड़की जातीय हिंसा लगभग एक महीने से जारी है. बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की एसटी दर्जे की मांग के कारण राज्य में तनाव शुरू हुआ था, जिसे पहाड़ी जनजातियां अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के रूप में देखती हैं. इस हिंसा के बाद आदिवासी नेता अब अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं.
यह मुद्दा फिर उभरा, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.
मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.
एसटी का दर्जा मिलने से मेईतेई सार्वजनिक नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के हकदार होंगे और उन्हें वन भूमि तक पहुंच प्राप्त होगी. लेकिन राज्य के मौजूदा आदिवासी समुदायों को डर है कि इससे उनके लिए उपलब्ध आरक्षण कम हो जाएगा और सदियों से वे जिन जमीनों पर रहते आए हैं, वे खतरे में पड़ जाएंगी.
ऐसा माना जाता है कि हाईकोर्ट के आदेश से मणिपुर के गैर-मेईतेई निवासी, जो पहले से ही अनुसूचित जनजातियों की सूची में हैं, चिंतित हो गए, जिसके परिणामस्वरूप 3 मई को आदिवासी संगठनों द्वारा निकाले गए निकाले गए एक विरोध मार्च के दौरान जातीय हिंसा भड़क उठी.
बीते 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेईतेई समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश के खिलाफ ‘कड़ी टिप्पणी’ की थी. शीर्ष अदालत ने इस आदेश को तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत बताया था.
इससे पहले बीते 8 मई को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में हुई हिंसा को एक ‘मानवीय समस्या’ बताया था. अदालत ने कहा था कि किसी समुदाय को अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में नामित करने की शक्ति हाईकोर्ट के पास नहीं, बल्कि राष्ट्रपति के पास होती है.