कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित करते हुए कहा कि 3 मई को मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद आपको केंद्रीय गृह मंत्री को वहां भेजने में लगभग एक महीना लग गया. गृह मंत्री के वहां से लौटने के 8 दिन बाद भी हिंसा जारी है. बतौर प्रधानमंत्री आप कम से कम शांति की अपील कर सकते थे.
नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा है कि उन्होंने मणिपुर के लोगों के साथ ‘विश्वासघात’ किया है और उनकी ‘लगातार चुप्पी’ से उत्तर पूर्व के इस राज्य में लोगों की जानें गई हैं.
बीते शनिवार (10 जून) को खड़गे ने ट्विटर पर केंद्र सरकार और राज्य में शांति लाने में कथित विफलता पर निशाना साधा. मणिपुर में पिछले एक महीने से जारी जातीय हिंसा में लगभग 100 लोगों की जान जा चुकी है.
उन्होंने लिखा, ‘नरेंद्र मोदी जी सबसे पहले 3 मई 2023 को मणिपुर में हिंसा भड़की थी, इसके बाद आपको केंद्रीय गृह मंत्री को वहां भेजने में लगभग एक महीना लग गया. गृह मंत्री के जाने के 8 दिन बाद भी मणिपुर में हिंसा जारी है.
.@narendramodi ji,
3rd May 2023 – Violence first broke out in Manipur.
It took almost a month for you to send the Union Home Minister to the state.
8 days after Home Minister's departure, violence continues in Manipur.
For a proponent of the so-called '𝐀𝐜𝐭 𝐄𝐚𝐬𝐭'… pic.twitter.com/FfMTAxR60c
— Mallikarjun Kharge (@kharge) June 10, 2023
उन्होंने आगे कहा, उत्तर पूर्व भारत के लिए तथाकथित ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के एक प्रस्तावक का मणिपुर की हिंसा पर चुप्पी साधे रखना, वहां के लोगों के घावों पर नमक छिड़क रही है. प्रधानमंत्री के रूप में आप कम से कम शांति की अपील कर सकते थे. आपने मणिपुर को धोखा दिया है!’
कांग्रेस अध्यक्ष ने मणिपुर की वर्तमान स्थिति के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ‘विभाजनकारी राजनीति’ को जिम्मेदार ठहराया.
इस ट्वीट के साथ खड़गे ने मणिपुर के कांगपोकपी जिले के एक कुकी गांव में बीते 9 जून को तड़के ‘अज्ञात हमलावरों’ की गोलीबारी में 67 वर्षीय एक महिला समेत 3 लोगों की मौत की खबर का स्क्रीनशॉट भी साझा किया था.
आरोप है कि ‘सेना और पुलिस की वर्दी में भेष बदलकर आए मेईतेई उग्रवादियों’ ने कांगकपोकपी और इंफाल पश्चिम जिले की सीमा पर स्थित खोकेन गांव पर हमला कर इन हत्याओं को अंजाम दिया.
इस बीच केंद्र सरकार ने बीते शनिवार को हिंसा प्रभावित मणिपुर में विभिन्न जातीय समूहों के बीच शांति स्थापित करने के लिए एक शांति समिति का गठन किया.
राज्य की राज्यपाल अनुसुइया उइके के नेतृत्व वाली इस समिति में मुख्यमंत्री, कुछ राज्य मंत्री, सांसद, विधायक और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता शामिल होंगे.
बीते 9 जून को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने मणिपुर सरकार द्वारा अधिसूचित जातीय हिंसा के छह मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया है. एक उप-महानिरीक्षक (डीआईजी) के नेतृत्व वाली एसआईटी में 10 अधिकारी शामिल होंगे. सीबीआई ने 9 जून को ही जांच अपने हाथ में ली थी.
एसआईटी में 10 अधिकारी शामिल होंगे, जो छह एफआईआर की जांच करेंगे, जिन्हें अब सीबीआई द्वारा फिर से दर्ज किया गया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले हफ्ते हिंसा प्रभावित राज्य के अपने दौरे के दौरान सीबीआई जांच की घोषणा की थी.
मालूम हो कि मणिपुर में बीते 3 मई को भड़की जातीय हिंसा लगभग एक महीने से जारी है. बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की एसटी दर्जे की मांग के कारण राज्य में तनाव शुरू हुआ था, जिसे पहाड़ी जनजातियां अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के रूप में देखती हैं. इस हिंसा के बाद आदिवासी नेता अब अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं.
हिंसा में 100 से अधिक लोग मारे गए हैं और 35,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.
यह मुद्दा एक बार फिर तब ज्वलंत हो गया था, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.
ऐसा माना जाता है कि इस आदेश से मणिपुर के गैर-मेईतेई निवासी जो पहले से ही अनुसूचित जनजातियों की सूची में हैं, के बीच काफी चिंता पैदा हो कर दी थी, जिसके परिणामस्वरूप बीते 3 मई को आदिवासी संगठनों द्वारा निकाले गए निकाले गए एक विरोध मार्च के दौरान जातीय हिंसा भड़क उठी.
बीते 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेईतेई समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश के खिलाफ ‘कड़ी टिप्पणी’ की थी. शीर्ष अदालत ने इस आदेश को तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत बताया था.
मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.