ज़ी के मालिक सुभाष चंद्रा, पुनीत गोयनका ने फ़र्ज़ी ऋण वसूली दिखाने के लिए धन की हेराफेरी की: सेबी

सेबी ने आरोप लगाया है कि ज़ी समूह की सूचीबद्ध कंपनियों से ग़ैर-सूचीबद्ध कंपनियों में धन की हेराफेरी की गई जो अंततः सूचीबद्ध कंपनियों के पास ही पहुंच गया. इसके साथ ही सेबी ने सुभाष चंद्रा और उनके बेटे पुनीत गोयनका को कंपनी में किसी भी निदेशक या प्रमुख प्रबंधकीय पद पर रहने से प्रतिबंधित कर दिया है.

ज़ी के संस्थापक सुभाष चंद्रा और उनके बेटे पुनीत गोयनका. (फोटो: कंपनी वेबसाइट और विकिमीडिया कॉमंस)

सेबी ने आरोप लगाया है कि ज़ी समूह की सूचीबद्ध कंपनियों से ग़ैर-सूचीबद्ध कंपनियों में धन की हेराफेरी की गई जो अंततः सूचीबद्ध कंपनियों के पास ही पहुंच गया. इसके साथ ही सेबी ने सुभाष चंद्रा और उनके बेटे पुनीत गोयनका को कंपनी में किसी भी निदेशक या प्रमुख प्रबंधकीय पद पर रहने से प्रतिबंधित कर दिया है.

ज़ी के संस्थापक सुभाष चंद्रा और उनके बेटे पुनीत गोयनका. (फोटो: कंपनी वेबसाइट और विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: ज़ी समूह के संस्थापक सुभाष चंद्रा और उनके बेटे पुनीत गोयनका ने ‘अपने’ के फायदे के लिए ऋण की झूठी वसूली दिखाते हुए धन की हेराफेरी के उद्देश्य से कंपनियों के एक जाल का इस्तेमाल किया. भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने यह आरोप लगाया है.

रिपोर्ट के अनुसार, इस बीच, सेबी ने 12 जून को चंद्रा और गोयनका को कंपनी में किसी भी निदेशक या प्रमुख प्रबंधकीय पद पर रहने से प्रतिबंधित कर दिया.

यह सब एस्सेल ग्रुप मोबिलिटी के 200 करोड़ रुपये के बकाया ऋण के लिए चंद्रा द्वारा यस बैंक को जारी किए गए एक लेटर ऑफ कंफर्ट (एलओसी) के साथ शुरू हुआ.

सेबी की जांच से पता चला है कि चंद्रा ने जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (जेडईईएल) के बोर्ड की मंजूरी लिए बिना यह एलओसी दिया था. सेबी के आदेश में कहा गया है कि यह सेबी के नियमों के खिलाफ था और इसलिए उसने 17 जून 2021 को कंपनी को एक परामर्श पत्र जारी किया था.

Sebi Order Zee by Taniya Roy

लेटर ऑफ कंफर्ट

एलओसी 4 सितंबर 2018 को जारी किया गया था. इसने यस बैंक को जेडईईएल के 200 करोड़ रुपये के सावधि जमा (Fixed Deposit) को समायोजित करने की अनुमति दी थी, ताकि यस बैंक के प्रति सात कंपनियों के दायित्वों को पूरा किया जा सके.

इन संस्थाओं, या ‘सहयोगी संस्थाओं’, में पैन इंडिया इंफ्राप्रोजेक्ट्स, एस्सेल ग्रीन मोबिलिटी, एस्सेल कॉरपोरेट रिसोर्सेज, एस्सेल यूटिलिटीज डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी, एस्सेल बिजनेस एक्सीलेंस सर्विसेज, पैन इंडिया नेटवर्क इन्फ्रावेस्ट और लिविंग एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज शामिल हैं.

सीधे शब्दों में कहें, तो एलओसी ने यस बैंक के पास उपलब्ध जेडईईएल की 200 करोड़ रुपये की सावधि जमा राशि को सात ‘सहयोगी कंपनियों’ के ऋणों के निपटान के लिए उपयोग करने की अनुमति दे दी.

हालांकि, समस्या केवल एलओसी जारी करने की नहीं थी. इस बात पर भी चिंता जताई गई थी कि जी की सूचीबद्ध संस्थाओं के बहीखाते में पैसा कैसे आया.

लेटर ऑफ कंफर्ट एक लिखित दस्तावेज होता है जो आश्वासन प्रदान करता है कि एक दायित्व अंतत: पूरा किया जाएगा. यह आमतौर पर किसी तीसरे पक्ष द्वारा जारी किया जाता है.

उदाहरण के लिए, एक होल्डिंग कंपनी अपनी सहायक कंपनी की ओर से लेटर ऑफ कंफर्ट दे सकती है या सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के लिए लेटर ऑफ कंफर्ट जारी कर सकती है. लेटर ऑफ कंफर्ट बैंकों, एनबीएफसी और लेखा परीक्षकों द्वारा भी जारी किया जा सकता है.

एलओसी जारी होने के बाद इस मीडिया दिग्गज के दो स्वतंत्र निदेशकों, सुनील कुमार और निहारिका वोहरा ने 2019 में इस्तीफा दे दिया.

फाइनेंशियल एक्सप्रेस के अनुसार, वोहरा ने अपने इस्तीफे में लिखा कि 17 अक्टूबर 2019 की बैठक में बोर्ड को संबंधित बैंक से प्राप्त एक पत्र के माध्यम से यह बात सामने आई कि एक सहायक कंपनी को बिना बोर्ड की मंजूरी के गारंटी दी गई थी.

कंपनी ने जवाब में कहा कि एलओसी चंद्रा द्वारा व्यक्तिगत तौर पर जारी की गई थी, नतीजतन जिसका समूह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

महत्वपूर्ण बात यह है कि सेबी की जांच दिखाती है कि 70 फीसदी पैसे, या 143 करोड़ रुपये की हेराफेरी की गई थी. इसलिए, बाजार नियामक का मानना है कि बाकी पैसा भी इसी तरह से गबन किया गया होगा

धन की प्राप्ति

सेबी की जांच के अनुसार, जेडईईएल ने दावा किया है कि सहयोगी संस्थाओं ने जेडईईएल को 200 करोड़ रुपये चुकाए. कंपनी ने दावा किया कि 26 सितंबर 2019 और 10 अक्टूबर 2019 के बीच पूरी राशि वापस कर दी गई थी.

हालांकि, अपनी जांच के दौरान सेबी ने पाया कि लौटाया गया पैसा जेडईईएल का ही था.

नियामक ने विभिन्न बैंकों से जेडईईएल और अन्य संस्थाओं के बैंक विवरण मांगे थे, जिसमें संस्थाओं का एक जाल दिखाया गया था, जिनका उपयोग यह दिखाने के लिए किया गया था कि ऋण की वसूली की गई है.

सेबी के आदेश में कहा गया है, ‘उक्त बैंक विवरणों के विश्लेषण से पता चलता है कि हालांकि जेडईईएल ने प्रवर्तकों की उपरोक्त सात सहयोगी संस्थाओं से 200 करोड़ रुपये प्राप्त करने का दावा किया था, लेकिन उक्त फंड का एक बड़ा हिस्सा या तो स्वयं जेडईईएल या एस्सेल समूह की सूचीबद्ध कंपनियों से जारी हुआ था, जो कई चरणों से गुजरने के बाद सहयोगी संस्थाओं के खातों में पहुंचा, जहां से यह अंततः जेडईईएल के खाते में पहुंचा.’

इसमें कहा गया है कि यह सहयोगी संस्थाएं प्रवर्तक के नियंत्रण या स्वामित्व वाली थीं.

उदाहरण के लिए, जेडईईएल ने 30 सितंबर 2019 को एस्सेल कॉरपोरेट रिसोर्सेज से 22.30 करोड़ रुपये प्राप्त करने का दावा किया. लेकिन यह पैसा डिश टीवी इंडिया की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी डिश इंफ्रा सर्विसेज से आया था, जो एस्सेल समूह के तहत एक सूचीबद्ध कंपनी है.

(स्रोत: सेबी आदेश)

इसी तरह, जेडईईएल ने 27 सितंबर 2019 को एस्सेल ग्रीन मोबिलिटी लिमिटेड से 17.10 करोड़ रुपये प्राप्त करने का दावा किया. लेकिन पैसा जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज, लिविंग एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज, पैन इंडिया इंफ्राप्रोजेक्ट्स समेत कई एवं अन्य समेत कई संस्थाओं के जरिये भेजा गया था.

सेबी ने यह एक फ्लोचार्ट की मदद से समझाया है, जिससे पता चलता है कि पैसा 26 सितंबर 2019 को जेडईईएल के बैंक खाते से ही निकला था.

 

(स्रोत: सेबी आदेश)

सेबी ने आरोप लगाया, ‘धन का उपरोक्त प्रवाह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि जेडईईएल द्वारा धन की कोई वास्तविक प्राप्ति नहीं हुई थी और ये केवल धन की प्राप्ति दिखाने के लिए प्रविष्टियां थीं.’

नियामक ने कई अन्य उदाहरण दिए हैं कि कैसे सूचीबद्ध कंपनियों से गैर-सूचीबद्ध कंपनियों में धन की हेराफेरी की गई जो अंततः सूचीबद्ध कंपनियों की बहीखातों में आ गया.

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