भाजपा की विभाजनकारी राजनीति के कारण मणिपुर जल रहा है: सिविल सोसाइटी समूह

देश भर के 550 से अधिक सिविल सोसायटी समूहों और व्यक्तियों ने एक संयुक्त बयान में कहा है कि भाजपा अपने राजनीतिक लाभ के लिए समुदायों के बीच सदियों पुराने जातीय तनाव को बढ़ा रही है. बयान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मणिपुर में पिछले डेढ़ महीने से जारी जातीय हिंसा पर अपनी चुप्पी तोड़ने का आग्रह किया गया है.

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मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह, हिंसा का एक दृश्य और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: फेसबुक/एएनआई/पीटीआई)

देश भर के 550 से अधिक सिविल सोसायटी समूहों और व्यक्तियों ने एक संयुक्त बयान में कहा है कि भाजपा अपने राजनीतिक लाभ के लिए समुदायों के बीच सदियों पुराने जातीय तनाव को बढ़ा रही है. बयान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मणिपुर में पिछले डेढ़ महीने से जारी जातीय हिंसा पर अपनी चुप्पी तोड़ने का आग्रह किया गया है.

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह, हिंसा का एक दृश्य और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: फेसबुक/एएनआई/पीटीआई)

नई दिल्ली: भारत भर के 550 से अधिक सिविल सोसायटी समूहों और व्यक्तियों ने एक साथ आकर मणिपुर में जातीय हिंसा की निंदा की है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले पर अपनी ‘गहरी चुप्पी’ तोड़ने का आग्रह किया है.

बयान में लिखा है, ‘भाजपा और केंद्र व राज्य में इसकी सरकारों की विभाजनकारी राजनीति के कारण मणिपुर का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज जल रहा है. हिंसा पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को प्रभावित कर रही है. 300 से अधिक शरणार्थी शिविरों में 50,000 से अधिक लोग हैं और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं.’

इसमें कहा गया है, ‘भाजपा एक बार फिर अपने स्वयं के राजनीतिक लाभ के लिए समुदायों के बीच सदियों पुराने जातीय तनाव को बढ़ा रही है. स्पष्ट रूप से भाजपा की भूमिका राज्य में अपनी पैठ जमाने के लिए बल और नियंत्रण का इस्तेमाल करने में निहित है. दोनों समुदायों के सहयोगी होने का ढोंग करते हुए वह केवल उनके बीच ऐतिहासिक तनाव की खाई को चौड़ा कर रही है और अभी तक समाधान की दिशा में संवाद को सुविधाजनक बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया है.’

हस्ताक्षरकर्ताओं में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, झारखंड जनाधिकार महासभा, सहेली महिला संसाधन केंद्र, हजरत ए जिंदगी मामूली, बगाइचा (BAGAICHA), यूनिटी इन कंपेशन, नेशनल एलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट और नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडिया वुमेन और कई सेवानिवृत्त सिविल सेवक, अधिकार कार्यकर्ता और अकादमिक शामिल हैं.

बयान में कहा गया है, ‘केंद्र और राज्य दोनों सरकारें लोकतांत्रिक संवाद, संघवाद और मानवाधिकारों की सुरक्षा की अवधारणाओं को नष्ट करने के लिए संवैधानिक प्रावधानों को हथियार बना रही हैं. वर्तमान में कुकी के खिलाफ सबसे बुरे तरीके से हिंसा सशस्त्र मेईतेई बहुसंख्यक समूहों, जैसे अरंबाई तेंगगोल और मेईतेई लीपुन द्वारा की गई है. इनमें से, पहला संगठन एक पुरुत्थान समूह है, जो सनमही परंपराओं में वापसी के लिए मेईतेई को आकर्षित कर रहा है; जबकि दूसरा स्पष्ट तौर पर एक हिंदुत्ववादी संगठन है. मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह इन समूहों के साथ निकटता से जुड़े हुए हैं.’

इसके अनुसार, ‘दोनों गुट कुकी समुदाय को ‘अवैध बाहरी’ और ‘नार्को अतंकवादी’ के रूप में बदनाम करते हैं. मेइतेई लीपुन के प्रमुख ने एक साक्षात्कार में सार्वजनिक रूप से यह कहने में संकोच नहीं किया कि मेईतेई द्वारा विवादित क्षेत्रों में कुकी का ‘सफाया’ किया जाएगा. उन्होंने कुकी समुदाय को मणिपुर में ‘अवैध’, ‘बाहरी’, ‘परिवार का हिस्सा नहीं’, ‘मणिपुर के स्वदेशी नहीं’ और ‘किरायेदार’ करार दिया.’

बयान के मुताबिक, ‘इससे पहले मुख्यमंत्री ने खुद एक कुकी मानवाधिकार कार्यकर्ता को ‘म्यांमारी’ कहा था; जो इस प्रोपेगेंडा को स्वीकृति देता है कि मेईतेई समुदाय को म्यांमार में पनपी अशांति के चलते भाग रहे शरणार्थियों से जनसांख्यिकीय खतरे का सामना करना पड़ रहा है. चूंकि ये शरणार्थी उन जनजातीय समूहों से हैं, जो मणिपुर में भी रहते हैं, मेईतेई बहुसंख्यक गुटों को जनजातीय लोगों की संख्या खुद से से अधिक हो जाने का डर है.’

बयान में लिखा है, ‘अल्पसंख्यक समुदाय को ‘अवैध’ बताने वाली यह भाषा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह द्वारा असम एनआरसी अभ्यास के दौरान इस्तेमाल की गई थी. अब यही भाषा पूर्वोत्तर के एक अन्य राज्य में भी फैल गई है, जहां भाजपा नफरत, हिंसा और विदेशियों से नफरत की आग को हवा दे रही.’

विद्वानों ने कहा, ‘हम इस हिंसा पर तत्काल रोक लगाने की मांग करते हैं, जो बड़े पैमाने पर जीवन, आजीविका और संपत्तियों को नुकसान पहुंचा रही है और लोगों के बीच आतंक फैला रही है.’

उन्होंने बयान में कहा है, ‘अप्रैल 2023 के मणिपुर हाईकोर्ट के मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की राज्य सरकार को सलाह देने वाले आदेश के बाद मई माह में हिंसा भड़क गई थी, जिससे गृह युद्ध जैसे हालात बन गए, क्योंकि दोनों ही समुदाय हथियारों से लैस थे. इसके चलते कानून व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई. तब से हमने सुरक्षा बलों, पुलिस और सशस्त्र समूहों द्वारा नागरिकों के खिलाफ अभूतपूर्व क्रूरता और व्यापक अत्याचार देखा है.’

बयान में कहा गया है, ‘कुकी सशस्त्र समूहों ने 2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए वोट मांगे थे और मणिपुर विधानसभा में कुकी समुदाय के 10 में से 7 विधायक भाजपा के हैं. कुकी गुटों का प्रोपेगेंडा भी भाजपा से प्रेरणा लेता है और उन मिसालों का हवाला देते हुए, जहां कुकी नेताओं ने भारतीय राज्य के हितों के साथ सहयोग किया है, वे मेईतेई को भारत विरोधी बताते हैं. खबरों से पता चलता है कि जारी हिंसा में मारे गए लोगों में से अधिकांश कुकी समुदाय से हैं. कथित तौर पर 200 से अधिक कुकी चर्चों को स्कूलों, अन्न भंडारों और घरों के साथ जला दिया गया है.’

बयान में कहा गया है कि फर्जी खबरों के चलते महिलाएं सबसे अधिक प्रभावित हुई हैं. बहुसंख्यक मेईतेई समूहों द्वारा ऐसी फर्जी खबरें कि कुकियों द्वारा मेईतेई महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया, कुकी-जो महिलाओं की कथित लिंचिंग और बलात्कार का कारण बन गई हैं.

बयान में मांग की गई है कि प्रधानमंत्री को हिंसा पर अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए और मणिपुर के वर्तमान हालात की जिम्मेदारी लेनी चाहिए. अदालत की निगरानी में एक आयोग गठित करना चाहिए. महिलाओं के साथ हुई यौन हिंसा के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित किए जाएं. जिन्हें भागने पर मजबूर किया गया, उनके लिए सरकार द्वारा राहत के प्रावधान किए जाएं और उनके अपने गांवों में सुरक्षित लौटने की गारंटी दी जाए, उनके जीवन और मकान वापस बनाए जाएं.

बयान में सभी प्रकार के हिंसा प्रभावितों के लिए मुआवजे की भी मांग की गई है.

इस रिपोर्ट और पूरे बयान को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.