श्रीलंका में भारतीय दवाएं जांच के दायरे में, मरीजों पर देखे गए हानिकारक प्रभाव

बीते 16 जून को श्रीलंका के स्थानीय मीडिया ने बताया कि अस्पताल में इलाजरत एक मरीज़ की मौत भारत निर्मित एनेस्थेटिक दवा दिए जाने के बाद हुई. इससे पहले अप्रैल में भी भारतीय एनेस्थेटिक दवा दिए जाने के बाद एक गर्भवती महिला की मौत का मामला सामने आया था.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

बीते 16 जून को श्रीलंका के स्थानीय मीडिया ने बताया कि अस्पताल में इलाजरत एक मरीज़ की मौत भारत निर्मित एनेस्थेटिक दवा दिए जाने के बाद हुई. इससे पहले अप्रैल में भी भारतीय एनेस्थेटिक दवा दिए जाने के बाद एक गर्भवती महिला की मौत का मामला सामने आया था.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

नई दिल्ली: कथित तौर पर मरीजों को भारतीय दवाएं दिए जाने के बाद उनमें मेडिकल जटिलताएं और मृत्यु संबंधी मामले सामने आने के बाद श्रीलंका में आयातित भारतीय दवाएं विवाद के केंद्र में हैं.

द हिंदू के मुताबिक, 16 जून को स्थानीय मीडिया ने कैंडी जिले के पेरादेनिया टीचिंग अस्पताल में इलाज करा रहे एक मरीज की मौत की सूचना दी. बताया जा रहा है कि उनकी मौत भारत निर्मित एनेस्थेटिक दवा (बेहोशी की दवा) बुपिवाकाइन दिए जाने के बाद हुई थी.

इस खबर ने लोगों के बीच चिंता पैदा कर दी क्योंकि यह घटना अस्पताल में भारतीय एनेस्थेटिक दवा दिए जाने के बाद हुई एक गर्भवती महिला की मौत के दो महीने से भी कम समय की भीतर सामने आई है. अप्रैल की उस घटना के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने उक्त दवा के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी.

इन घटनाओं से पहले भी ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल श्रीलंका ने गैर-पंजीकृत आपूर्तिकर्ताओं से दवाओं की खरीद के कैबिनेट और स्वास्थ्य अधिकारियों के फैसले को चुनौती देते हुए श्रीलंकाई सुप्रीम कोर्ट में एक मौलिक अधिकार याचिका दायर की थी. याचिका में आवश्यक दवाओं के तेजी से आयात की अनुमति देने के लिए पंजीकरण की छूट प्रदान करने में राष्ट्रीय दवा नियामक की भूमिका पर सवाल उठाया गया था. गुजरात की सवोराइट फार्मास्युटिकल्स (प्राइवेट) लिमिटेड और चेन्नई की कौशिक थेरेप्यूटिक्स को प्रतिवादी के रूप में नामित किया गया था.

भारतीय दवाएं मई 2023 में भी सुर्खियों में रही थीं जब श्रीलंका के मध्य प्रांत में नुवारा एलिया के सामान्य अस्पताल के डॉक्टरों ने 10 रोगियों के संबंध में यह शिकायत की कि उन्हें देखने में दिक्कतें आ रही हैं. इन रोगियों को आंखों की सर्जरी के बाद भारतीय दवाएं दी गई थीं. डॉक्टरों ने आंखों की दवा में कीटाणुओं की उपस्थिति का हवाला दिया था. स्वास्थ्य अधिकारियों ने एक जांच शुरू की और दवा के उपयोग को रोकने के लिए इसे वापस ले लिया.

घटनाओं की श्रृंखला ने स्थानीय मीडिया सहित श्रीलंका के भीतर भारतीय दवाओं को कड़ी जांच के दायरे में ला दिया है. इस बीच. गांबिया और उज्बेकिस्तान के मामलों की भी बात की जा रही है, जहां बीते साल भारत निर्मित कफ सीरप को दर्जनों बच्चों की मौत से जोड़ा गया था.

बता दें कि बीते दिनों अमेरिका में भी भारत निर्मित आई-ड्रॉप को एक दुर्लभ स्ट्रेन फैलने का कारण बताया गया था. इससे पहले अमेरिका में ही आई-ड्रॉप से एक मौत और मरीजों की आंखों की रोशनी जाने की बात सामने आई थी.

श्रीलंका के लिए वर्षों से भारत चिकित्सा आपूर्ति का शीर्ष स्रोत रहा है.  2022 में हुए करीब कुल 450 मिलियन डॉलर के इसके फार्मास्युटिकल आयात में लगभग आधे की आपूर्ति भारत ने की थी.

लेकिन, पिछले हफ्ते श्रीलंका के अस्पताल में हुई मौत ने आयातित दवाओं की गुणवत्ता के साथ-साथ श्रीलंका के राष्ट्रीय दवा नियामक की जिम्मेदारी को फिर से सुर्खियों में ला दिया.

वहीं, इस संबंध में श्रीलंका के स्वास्थ्य मंत्री केहलिया रामबुकवेला ने कहा है कि अधिकारी जांच कर रहे हैं, जल्द ही रिपोर्ट आने की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि श्रीलंका सात साल से उसी भारतीय आपूर्तिकर्ता से आंखों की दवा का भी आयात कर रहा है.

साथ ही, उन्होंने द हिंदू से कहा, ‘फिलहाल के लिए बाजार से दवा वापस ली जा चुकी है, हम मामले पर नजर बनाए हुए हैं और भारतीय निर्माताओं से मुआवजा भी मांगा है.’