मणिपुर: सर्वदलीय बैठक से पीएम की अनुपस्थिति पर विपक्ष ने सवाल उठाए, सीएम को हटाने की मांग

मणिपुर की स्थिति को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा 24 जून को एक सर्वदलीय बैठक बुलाई है. विपक्ष ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस बैठक से अनुपस्थिति इस विषय पर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की गंभीरता की कमी को दर्शाती है, जबकि मणिपुर में छह सप्ताह से अधिक समय से भड़की जातीय हिंसा जारी है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बैकग्राउंड में मणिपुर में हिंसा का दृश्य.

मणिपुर की स्थिति को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा 24 जून को एक सर्वदलीय बैठक बुलाई है. विपक्ष ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस बैठक से अनुपस्थिति इस विषय पर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की गंभीरता की कमी को दर्शाती है, जबकि मणिपुर में छह सप्ताह से अधिक समय से भड़की जातीय हिंसा जारी है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बैकग्राउंड में मणिपुर में हिंसा का दृश्य.

नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी ने मणिपुर पर गृह मंत्री की सर्वदलीय बैठक को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह कवायद ‘बहुत देर से’ शुरू हुई है.

कांग्रेस ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बैठक से अनुपस्थिति इस विषय पर भाजपा सरकार की गंभीरता की कमी को भी दर्शाती है, जबकि उत्तर-पूर्व के राज्य मणिपुर में छह सप्ताह से अधिक समय से हिंसा भड़की हुई है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक शनिवार (24 जून) को होनी है.

कांग्रेस ने कहा कि इस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी की अनुपस्थिति उनकी ‘कायरता और अपनी विफलताओं का सामना करने की अनिच्छा’ को दर्शाती है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक ट्वीट में लिखा, ‘50 दिनों से जल रहा है मणिपुर, मगर प्रधानमंत्री मौन रहे. सर्वदलीय बैठक तब बुलाई, जब प्रधानमंत्री खुद देश में नहीं हैं! साफ है, प्रधानमंत्री के लिए ये बैठक महत्वपूर्ण नहीं है.’

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, ‘प्रधानमंत्री चुप रहे. इतना ही नहीं, उन्होंने मणिपुर के विधायकों, राजनीतिक दलों और अपनी ही पार्टी के सहयोगियों से मिलने से इनकार कर दिया. जब प्रधानमंत्री ही नहीं होंगे तो सर्वदलीय बैठक करने का क्या फायदा? जब मणिपुर को शांति और सुलह की जरूरत है तो दिल्ली में बैठक करने का क्या फायदा? प्रधानमंत्री द्वारा कर्तव्य में लापरवाही समझ से परे है. यह अजीब है.’

उन्होंने कहा, ‘पिछले 51 दिनों में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मणिपुर के लोगों का दर्द, संकट और पीड़ा जारी है और प्रधानमंत्री लगातार चुप्पी साधे हुए हैं! मणिपुर में 50 दिनों से हिंसा हो रही है, लेकिन प्रधानमंत्री ने अभी तक एक शब्द भी नहीं बोला है. न ही उन्होंने कोई शांति की अपील की है.’

कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने कहा, ‘मणिपुर में मौत और विनाश के 50 दिनों के बाद गृह मंत्री का सर्वदलीय बैठक का आह्वान बहुत देर से किया गया है. सरकार सोनिया गांधी जी के मणिपुर के लोगों को संबोधन के बाद ही जागी.’

उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘इतनी गंभीर बैठक से प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति उनकी कायरता और अपनी विफलताओं का सामना करने की अनिच्छा को दर्शाती है. यहां तक कि जब कई प्रतिनिधिमंडलों ने उनसे मुलाकात की मांग की, तब भी उनके पास उनके लिए समय नहीं था.’

उन्होंने कहा, ‘गृह मंत्री (अमित शाह) ने स्वयं इस स्थिति में सामने आए हैं, लेकिन कोई प्रगति नहीं की है, बल्कि उनकी यात्रा के बाद से चीजें और खराब हो गई हैं. क्या हम उनके नेतृत्व में वास्तविक शांति की उम्मीद कर सकते हैं? इसके अलावा, पक्षपातपूर्ण राज्य सरकार का बने रहना और राष्ट्रपति शासन लागू न करना एक उपहास है.’

वेणुगोपाल के अनुसार, ‘शांति के लिए कोई भी प्रयास मणिपुर में होना चाहिए, जहां युद्धरत समुदायों को चर्चा की मेज पर लाया जाता है और एक राजनीतिक समाधान निकाला जाए. अगर यह प्रयास दिल्ली में बैठकर किया जाएगा तो इसमें गंभीरता की कमी होगी.’

उन्होंने कहा, ‘पूरे देश को केंद्र सरकार से गंभीर हस्तक्षेप की उम्मीद है, जो अब तक गायब नजर आ रही है.’

माकपा ने भी कहा कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को हटाना एक आवश्यक पहला कदम है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, माकपा की ओर से कहा, ‘राज्य सरकार जर्जर स्थिति में है और प्रशासन की कोई स्पष्ट रेखा स्थापित नहीं होने के कारण, पहला आवश्यक कदम राजनीतिक है, वह है बीरेन सिंह सरकार को हटाना. इस तरह के कदम के बिना, उत्तर पूर्व में सत्तारूढ़ दल की संकीर्ण और सांप्रदायिक राजनीति द्वारा खड़ी की गई समस्या का कोई समाधान नहीं निकल सकता है.’

उल्लेखनीय है कि बीते 3 मई से कुकी और मेईतेई समुदायों के बीच भड़की जातीय हिंसा में अब तक 100 से अधिक लोग मारे गए हैं. लगभग 50,000 लोग विस्थापित हुए हैं और पुलिस शस्त्रागार से 4,000 से अधिक हथियार लूटे या छीन लिए गए हैं.

गौरतलब है कि मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेईतेई समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें हुई थीं.

मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मेईतई समुदाय की है और ये मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासियों- नगा और कुकी की आबादी 40 प्रतिशत है और ये पर्वतीय जिलों में रहते हैं.

कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल मणिपुर की स्थित को लेकर प्रधानमंत्री की चुप्पी पर लगातार सवाल उठा रहे हैं. कुछ दिन पहले ही मणिपुर को लेकर कांग्रेस सहित कुल 10 राजनीतिक दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है, जिसमें जातीय हिंसा को हल करने के लिए उनके तत्काल हस्तक्षेप की मांग की गई है.

इसी महीने केंद्र द्वारा मणिपुर में शांति प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए राज्यपाल की अध्यक्षता में एक शांति समिति की घोषणा करने के बाद कांग्रेस ने सरकार से कहा कि वह सामान्य स्थिति बहाल करने में मदद करने के लिए हिंसा प्रभावित राज्य का दौरा करने के लिए एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजे.

कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मणिपुर की स्थिति पर अपनी ‘चुप्पी’ तोड़ने की भी अपील की और उनसे राज्य का दौरा करने का आग्रह किया.

ताजा हिंसा में दो जवान घायल

इस बीच अधिकारियों ने जानकारी दी कि बीते गुरुवार (22 जून) सुबह करीब 5 बजे मणिपुर के इंफाल पश्चिम जिले के उत्तरी बोलजांग में अज्ञात बंदूकधारियों ने दो सैनिकों पर गोलीबारी की, जिसमें दोनों घायल हो गए. अधिकारियों ने बताया कि प्रारंभिक तलाशी के दौरान जवानों ने एक इंसास लाइट मशीन गन बरामद की.

द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारियों ने बताया कि स्थिति को नियंत्रण में कर लिया गया है और बंदूकधारियों को पकड़ने के लिए तलाशी अभियान जारी है. उनके अनुसार, ‘सैनिकों को मामूली चोटें आई हैं. सेना की अतिरिक्त टुकड़ियां तैनात की गई हैं और तलाशी अभियान जारी है.’

मणिपुर में इंटरनेट पर प्रतिबंध के 50 दिन पूरे

इस बीच इंटरनेट अधिकार और अनुसंधान संगठन इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने एक बयान जारी कर मणिपुर में जारी इंटरनेट शटडाउन पर चिंता व्यक्त की है.

मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद से इंटरनेट पर प्रतिबंध का आज (बृहस्पतिवार/22 जून) 50वां दिन है. जातीय संघर्ष बढ़ने के बाद राज्य में पहली बार 3 मई को इंटरनेट बंद कर दिया गया था और तब से कई सरकारी आदेशों के माध्यम से प्रतिबंध को बढ़ाया गया है.

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट सेवाओं के अनिश्चितकालीन निलंबन पर रोक लगा दी है.

संगठन की ओर से जारी बयान में मणिपुर में अन्य ‘मौलिक अधिकारों के उल्लंघन’ का भी उल्लेख करता है, जिसमें राज्य के मुख्य सचिव का यह कहना भी शामिल है कि ‘फर्जी समाचार, झूठ, अफवाहें या गलत सूचना’ फैलाने वाले व्यक्तियों पर राजद्रोह का आरोप लगाया जाएगा. यह इस तथ्य के बावजूद है कि सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून पर रोक लगा दी है.’