राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे बताता है कि गुजरात के बच्चों में कुपोषण का स्तर चिंताजनक है

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, शहरी आबादी वाले चार प्रमुख जिलों अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा और राजकोट में 2015-16 से 2020-21 तक की अवधि के दौरान कुछ आदिवासी ज़िलों की तुलना में बच्चों में बौनापन, कमज़ोरी, गंभीर कुपोषण और कम वज़न के मामलों में तेज़ वृद्धि देखी गई.

(प्रतीकात्मक तस्वीर: राखी घोष)

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, शहरी आबादी वाले चार प्रमुख जिलों अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा और राजकोट में 2015-16 से 2020-21 तक की अवधि के दौरान कुछ आदिवासी ज़िलों की तुलना में बच्चों में बौनापन, कमज़ोरी, गंभीर कुपोषण और कम वज़न के मामलों में तेज़ वृद्धि देखी गई.

(प्रतीकात्मक तस्वीर: राखी घोष)

नई दिल्ली: गुजरात पर 2022 में जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) के निष्कर्षों से पता चला कि राज्य में पांच साल से कम उम्र के 9.7 प्रतिशत से अधिक बच्चे कम वजन के थे.

सरकार ने पोषण अभियान, मातृत्व सहयोग योजना, एकीकृत बाल विकास सेवाएं, मिड-डे मील योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, राष्ट्रीय पोषण मिशन, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और राष्ट्रीय पोषण जैसी योजनाओं के साथ सरकार ने देश भर में कुपोषण से निपटने के लिए पहल की थी.

पिछले साल ही राज्य सरकार ने विधानसभा को सूचित किया था कि गुजरात के 30 जिलों में 1,25,707 बच्चे कुपोषित हैं और स्थिति में सुधार के लिए कदम उठाए जाएंगे, लेकिन जैसा कि गुजरात के कुपोषण के आंकड़ों से पता चलता है, जमीन पर बदलाव अब भी दिखाई नहीं दे रहे हैं.

इसके अतिरिक्त प्रमुख राज्यों में गुजरात बौनेपन (उम्र की तुलना में कम लंबाई) के मामले में चौथे स्थान पर और कमजोरी (शरीर लगातार कमजोर होता जाना) में दूसरे स्थान पर है.

नेक्स्टिअस डॉट कॉम (Nextias.com) की रिपोर्ट के अनुसार, असम, दादरा और नगर हवेली, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बौने बच्चों की संख्या राष्ट्रीय औसत 35.5 प्रतिशत से अधिक है.

अध्ययन के अनुसार, शहरी आबादी वाले चार प्रमुख जिलों – अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा और राजकोट – में 2015-16 से 2020-21 तक की अवधि के दौरान कुछ आदिवासी जिलों की तुलना में बच्चों में बौनापन, कमजोरी, गंभीर कुपोषण और कम वजन के मामलों में तेज वृद्धि देखी गई. एनएफएचएस सर्वे के दो दौरों के बीच परिवर्तनों का विश्लेषण करके इसकी जांच की गई.

यह सामने आया कि पूरे गुजरात में पांच वर्षों के दौरान बच्चों में एनीमिया का प्रसार 17 प्रतिशत और युवा लड़कियों में 12 फीसदी तक बढ़ गया.

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ गांधीनगर (आईआईपीएच-जी) के प्रोफेसर सोमेन साहा ने कहा कि इस मुद्दे के समाधान के लिए सुझाव देना ही उद्देश्य है.

उन्होंने कहा, ‘हमने कई उपाय प्रस्तावित किए हैं, जिनमें एनीमिया और कुपोषण को सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों के रूप में घोषित करना, गैर-आयरन की कमी वाले एनीमिया पर ध्यान केंद्रित करना, व्यापक डेटा और विश्लेषण के आधार पर एक पोषण इं​टेलिजेंस इकाई की स्थापना करना, उच्च प्राथमिकता वाले तालुकाओं की पहचान करना, उप-जिला कार्य योजनाएं विकसित करना शामिल है.’

गुजरात के लिए पोषण संकेतक, इसके निर्धारक और अनुशंसाएं: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 का एक तुलनात्मक अध्ययन शीर्षक वाला यह शोध क्यूरियस जर्नल (Cureus Journal) में प्रकाशित हुआ था.

यह शोध भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान (आईआईपीएच) गांधीनगर के जिमीत सोनी, फैसल शेख, सोमेन साहा और दीपक सक्सेना ने वर्धा के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के मयूर वंजारी के साथ मिलकर किया था.

विश्लेषण में प्रसव के बाद की देखभाल और प्रारंभिक बचपन की देखभाल में सुधार जैसे पहलुओं को भी रेखांकित किया गया है.

यह रिपोर्ट मूल रूप में वाइब्स ऑफ इंडिया समाचार वेबसाइट पर प्रकाशित हुई है.

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