दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ कॉलेजों ने अपने शताब्दी समारोह की लाइव स्ट्रीमिंग में भाग लेने के लिए छात्रों के लिए निर्देशों की एक सूची जारी की है. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य अतिथि होंगे. कुछ छात्र संगठनों ने इन निर्देशों को निंदनीय बताया है.
नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ कॉलेजों ने अपने शताब्दी समारोह की लाइव स्ट्रीमिंग में भाग लेने के लिए छात्रों के लिए निर्देशों की एक सूची जारी की है, काले कपड़े नहीं पहनना, अनिवार्य उपस्थिति और सुबह 10 से 12 बजे के बीच कक्षाओं का निलंबन शामिल है. इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य अतिथि होंगे.
हिंदू कॉलेज ने बीते गुरुवार (29 जून) को एक नोटिस जारी कर कहा कि कार्यक्रम में छात्रों की उपस्थिति अनिवार्य है. इसमें कहा गया है कि उन्हें ‘लाइव स्ट्रीमिंग कार्यक्रम में भाग लेने के लिए पांच उपस्थिति दिवस’ दिए जाएंगे. नोटिस में कहा गया, ‘इसे कॉलेज में जमा किया जाएगा.’
हंसराज कॉलेज ने भी इसी तरह का नोटिस जारी करते हुए कहा कि ‘छात्रों को सभागार में होने वाले लाइव स्ट्रीमिंग में भाग लेना होगा.’
राजधानी कॉलेज ने सभी उपस्थित लोगों की तस्वीरें कॉलेज के साथ-साथ विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड करने की योजना बनाई है.
डॉ. भीमराव अंबेडकर कॉलेज और जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज ने भी छात्रों और शिक्षकों के लिए कार्यक्रम में भाग लेना अनिवार्य कर दिया है.
शताब्दी समारोह का समापन समारोह शुक्रवार (30 जून) को आयोजित होने वाला है.
दिल्ली विश्वविद्यालय में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने एक बयान में कहा, ‘किसी भी कॉलेज के लिए इस तरह के तानाशाही निर्देश जारी करना बिल्कुल निंदनीय है.’
एसएफआई ने एक बयान में कहा, ‘यदि कार्यक्रम की लाइव स्क्रीनिंग के लिए सभी छात्रों की उपस्थिति अनिवार्य करना बहुत परेशान करने वाला नहीं था, लेकिन व्यवस्थापक ने छात्रों से कोई भी काली पोशाक न पहनने के लिए भी कहा है! यह बेतुकी बात है कि कॉलेज और विश्वविद्यालय प्रशासन हमारे शैक्षिक क्षेत्रों में सभी प्रकार के असंतोष को रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.’
बयान में कहा गया है, ‘इसके अलावा कार्यक्रम में शामिल होने पर पांच दिन उपस्थिति जोड़ने वाला लालच दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों द्वारा अपने छात्रों को अच्छी, सार्थक शिक्षा प्रदान करने के प्रति अपनाए गए ‘गंभीर’ दृष्टिकोण के बारे में बताता है.’
इससे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय ने 29 जून को ईद-उल-अजहा की छुट्टी के दिन को कार्य दिवस घोषित कर दिया था, ताकि सभी विश्वविद्यालय कर्मचारी इस ‘शताब्दी समारोह के समापन समारोह से पहले सभी व्यवस्थाएं पूरी कर’ सकें.
डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट की सचिव आभा देव हबीब ने द वायर को बताया कि इस तरह के ‘आदेश’ संस्थानों को प्रचार का माध्यम बनाते हैं.
उन्होंने कहा, ‘विश्वविद्यालय के लिए छात्रों को प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रेरित करना एक बात है, लेकिन इस तरह का फरमान जारी करना दूसरी बात है. डीयू का उदाहरण बताता है कि कैसे हमारे विश्वविद्यालय धीरे-धीरे आधुनिक शिक्षा संस्थान होने की अपनी प्रतिष्ठा खो रहे हैं.’
डीयू की एसएफआई इकाई ने भी मणिपुर संकट और पहलवानों के विरोध पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी की निंदा करते हुए पूरे आयोजन की आलोचना की.
एसएफआई के बयान के अनुसार, ‘एक सरकार जो असहमत छात्रों के खिलाफ सबसे क्रूर कदम उठाती है, शिक्षकों को आत्महत्या के कगार पर धकेलती है, शिक्षा में एनईपी-एफवाईयूपी जैसी अवैज्ञानिक, सांप्रदायिक, भ्रष्ट और गलत नीतियों का लगातार प्रचार करती है, उसे दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे संस्थान का जश्न में शामिल होने के लिए कहा जाता है. जिस विश्वविद्यालय को अब तक अपनी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और समावेशी संस्कृति के लिए जाना जाता है.’
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