ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भारत के विधि आयोग को पत्र लिखकर समान नागरिक संहिता के प्रति अपना विरोध दोहराया है. पत्र में कहा गया है कि बहुसंख्यकवादी नैतिकता को एक संहिता के नाम पर व्यक्तिगत क़ानून, धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों का हनन नहीं करना चाहिए.
नई दिल्ली: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने बीते बुधवार को भारत के विधि आयोग को पत्र लिखकर समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के प्रति अपना विरोध दोहराया और कहा कि ‘बहुसंख्यकवादी नैतिकता’ को अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता और अधिकारों पर हावी नहीं होना चाहिए.
एआईएमपीएलबी ने विधि आयोग को 100 पन्नों के ज्ञापन में लिखा, ‘बहुसंख्यकवादी नैतिकता को एक संहिता के नाम पर व्यक्तिगत कानून, धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों का हनन नहीं करना चाहिए, जो एक पहेली बनी हुई है.’
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह विधि आयोग द्वारा 14 जून को यूसीसी पर जनता से राय मांगने के जवाब में था, जिसमें कहा गया था कि वह इस मामले की जांच कर रहा है.
एआईएमपीएलबी की एक बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा के बाद यह पत्र विधि आयोग को भेजा गया था. संगठन के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘ज्ञापन में हमने जवाब दिया है कि यूसीसी के पक्ष में कुछ लोगों और राजनीतिक दलों द्वारा दिए जा रहे औचित्य कैसे बेकार हैं.’
अपनी प्रतिक्रिया में एआईएमपीएलबी ने तर्क दिया कि संविधान स्वयं एक समान नहीं है, क्योंकि यह कुछ समूहों के लिए विशेष अधिकार सुरक्षित करता है.
आयोग को लिखे पत्र में कहा गया है, ‘हमारे राष्ट्र का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज, भारत का संविधान स्वयं विवेकपूर्ण और देश को एकजुट रखने के इरादे से एक समान प्रकृति का नहीं है. भिन्न व्यवहार, समायोजन, समायोजन हमारे संविधान का स्वभाव है. राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों को अलग-अलग व्यवहार दिया गया है. विभिन्न समुदायों को अलग-अलग अधिकारों का हकदार बनाया गया है. विभिन्न धर्मों को अलग-अलग सुविधाएं दी गई हैं.’
प्रतिक्रिया में यह भी तर्क दिया गया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ ‘सीधे पवित्र कुरान और सुन्नत (इस्लामिक कानून) से लिया गया है और यह पहलू उनकी पहचान से जुड़ा हुआ है’.
इसमें कहा गया है, ‘भारत में मुसलमान इस पहचान को खोने के लिए सहमत नहीं होंगे, जिसकी हमारे देश के संवैधानिक ढांचे में जगह है. राष्ट्रीय अखंडता, सुरक्षा और भाईचारा सबसे अच्छी तरह से संरक्षित और बनाए रखा जाता है, अगर हम अल्पसंख्यकों और आदिवासी समुदायों को अपने स्वयं के व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित होने की अनुमति देकर अपने देश की विविधता को बनाए रखते हैं.’
मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बीते जून महीने में समान नागरिक संहिता की पुरजोर वकालत के बाद मेघालय, मिजोरम और नगालैंड में विभिन्न संगठनों ने इसके खिलाफ विरोधी तेवर अपना लिए हैं.
विपक्षी दलों ने मोदी के बयान की आलोचना करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री कई मोर्चों पर उनकी सरकार की विफलता से ध्यान भटकाने के लिए विभाजनकारी राजनीति का सहारा ले रहे हैं. मुस्लिम संगठनों ने भी प्रधानमंत्री की यूसीसी पर टिप्पणी को गैर-जरूरी बताया था.
उत्तर-पूर्व के राज्य मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने भारत के विधि आयोग को पत्र लिखकर कहा है कि यूसीसी सामान्य रूप से जातीय अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से मिजो समुदाय के हितों के खिलाफ है. वहीं, मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा भी कह चुके हैं कि यूसीसी अपने मौजूदा स्वरूप में भारत की भावना के खिलाफ है.
गौरतलब है कि यूसीसी का विरोध मेघालय, मिजोरम और नगालैंड में सबसे मजबूत रहा है, जहां 2011 की जनगणना के अनुसार, ईसाइयों की संख्या क्रमश: 74.59 फीसदी, 86.97 फीसदी और 87.93 फीसदी है. अन्य पूर्वोत्तर राज्यों ने प्रतिक्रिया देने से पहले मसौदे का अध्ययन करने की बात कही है.
मालूम हो कि समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख मुद्दों में से एक रहा है. वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में शुमार था. उत्तराखंड के अलावा मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक और गुजरात की भाजपा सरकारों ने इसे लागू करने की बात कही थी.
उत्तराखंड और गुजरात जैसे भाजपा शासित कुछ राज्यों ने इसे लागू करने की दिशा में कदम उठाया है. नवंबर-दिसंबर 2022 में संपन्न गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी समान नागरिक संहिता को लागू करना भाजपा के प्रमुख मुद्दों में शामिल था.