भाजपा का सहयोगी दल अरुणाचल प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने का विरोध करेगा

भाजपा की सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) की अरुणाचल प्रदेश इकाई ने राज्य की विविध बहुजातीय और बहु-आदिवासी संरचना के साथ-साथ इसकी मजबूत प्रथागत और पारंपरिक पहचान का हवाला देते हुए समान नागरिक संहिता के विरोध में एक प्रस्ताव पारित किया है.

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(फोटो साभार: फेसबुक)

भाजपा की सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) की अरुणाचल प्रदेश इकाई ने राज्य की विविध बहुजातीय और बहु-आदिवासी संरचना के साथ-साथ इसकी मजबूत प्रथागत और पारंपरिक पहचान का हवाला देते हुए समान नागरिक संहिता के विरोध में एक प्रस्ताव पारित किया है.

(फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: अरुणाचल प्रदेश में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के तत्काल कार्यान्वयन का विरोध करने का फैसला किया है.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, एनपीपी के राज्य महासचिव पाकंगा बागे ने कहा कि यह निर्णय शनिवार (8 जुलाई को) को अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में लिया गया.

एनपीपी के राज्य कार्यकारी अध्यक्ष लिखा साया ने संवाददाताओं से कहा, ‘हालांकि एनपीपी विकासात्मक मुद्दों पर भाजपा के साथ गठबंधन में है, लेकिन क्षेत्रीय पार्टी अपनी विचारधारा का पालन करती है.’

बागे ने कहा कि पार्टी ने राज्य की विविध बहुजातीय और बहु-आदिवासी संरचना के साथ-साथ इसकी मजबूत प्रथागत और पारंपरिक पहचान का हवाला देते हुए यूसीसी के विरोध में बैठक में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया है.

एनपीपी यूसीसी का विरोध क्यों कर रही है, इसका कारण बताते हुए बागे ने कहा कि चूंकि अरुणाचल प्रदेश के अपने अनूठे कानून हैं, इसलिए एनपीपी ने सर्वसम्मति से कुछ संशोधनों के साथ प्रथागत कानूनों के साथ जाने का प्रस्ताव अपनाया है.

उन्होंने कहा, ‘राज्य और केंद्र सरकारों को मौजूदा प्रथागत कानूनों को आदिवासी प्रथाओं के साथ संरेखित करने के लिए आवश्यक संशोधनों के साथ संहिताबद्ध करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.’

मालूम हो कि समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि सभी लोग, चाहे वे किसी भी क्षेत्र या धर्म के हों, नागरिक कानूनों के एक समूह के तहत बंधे होंगे.

समान नागरिक संहिता को सभी नागरिकों, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, के लिए विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक समान समूह के रूप में संदर्भित किया जाता है. वर्तमान में विभिन्न धर्मों के अलग-अलग व्यक्तिगत कानून (Personal Law) हैं.

विधि आयोग ने 14 जून को राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मुद्दे पर सार्वजनिक और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों सहित हितधारकों से विचार मांगकर एक नई परामर्श प्रक्रिया शुरू की थी.

बागे ने कहा कि बैठक में अपनाया गया दूसरा प्रस्ताव पुरानी पेंशन योजना को फिर से शुरू करके नई पेंशन योजना (एनपीएस) को रद्द करने की मांग करना है.

क्षेत्रीय पार्टी के राज्य कार्यकारी अध्यक्ष लिखा साया ने कहा कि इसकी कार्यकारिणी बैठक में अपनाए गए प्रस्ताव, 2024 में राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए आधार तैयार करेंगे.

साया ने कहा, ‘एनपीपी एक धर्म-निरपेक्ष पार्टी है और किसी भी व्यक्ति या धार्मिक समूह के खिलाफ कोई पूर्वाग्रह नहीं रखती है. इसका एकमात्र उद्देश्य राज्य में प्रत्येक नागरिक का समग्र विकास और कल्याण सुनिश्चित करना है.’

60 सदस्यीय अरुणाचल प्रदेश विधानसभा में एनपीपी के चार विधायक हैं.

बता दें कि यूसीसी का कार्यान्वयन दशकों से भाजपा के एजेंडे में रहा है, लेकिन बीते जून महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मध्य प्रदेश में एक रैली के दौरान इसकी जोरदार वकालत करने के बाद इसे लेकर नए सिरे से राजनीतिक विमर्श शुरू हो गया है.

यूसीसी को लेकर प्रधानमंत्री की पुरजोर वकालत के बाद मेघालय, मिजोरम और नगालैंड में विभिन्न संगठनों ने इसके खिलाफ विरोधी तेवर अपना लिए हैं. छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ने इसे आदिवासियों की पहचान और पारंपरिक प्रथाओं लिए खतरा बताया है.

विपक्षी दलों ने मोदी के बयान की आलोचना करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री कई मोर्चों पर उनकी सरकार की विफलता से ध्यान भटकाने के लिए विभाजनकारी राजनीति का सहारा ले रहे हैं. मुस्लिम संगठनों ने भी प्रधानमंत्री की यूसीसी पर टिप्पणी को गैर-जरूरी बताया था.

बीते 5 जुलाई को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने भारत के विधि आयोग को पत्र लिखकर यूसीसी के प्रति अपना विरोध दोहराया और कहा है कि ‘बहुसंख्यकवादी नैतिकता’ को अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता और अधिकारों पर हावी नहीं होना चाहिए.

इसके अलावा उत्तर-पूर्व के राज्य मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने भारत के विधि आयोग को पत्र लिखकर कहा था कि यूसीसी सामान्य रूप से जातीय अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से मिजो समुदाय के हितों के खिलाफ है. वहीं, मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा भी कह चुके हैं कि यूसीसी अपने मौजूदा स्वरूप में भारत की भावना के खिलाफ है.

बीते फरवरी महीने में मिजोरम विधानसभा ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के किसी भी प्रयास का विरोध करते हुए एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया था.

मालूम हो कि समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख मुद्दों में से एक रहा है. वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में शुमार था. उत्तराखंड के अलावा मध्य प्रदेशअसमकर्नाटक और गुजरात की भाजपा सरकारों ने इसे लागू करने की बात कही थी.

उत्तराखंड और गुजरात जैसे भाजपा शासित कुछ राज्यों ने इसे लागू करने की दिशा में कदम उठाया है. नवंबर-दिसंबर 2022 में संपन्न गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी समान नागरिक संहिता को लागू करना भाजपा के प्रमुख मुद्दों में शामिल था.