बीते 28 अप्रैल को केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने मणिपुर और मिज़ोरम की सरकारों से अवैध प्रवासियों के बायोग्राफिक और बायोमेट्रिक विवरण जुटाने के लिए कहा था, जिसकी समयसीमा 30 सितंबर निर्धारित की गई थी. मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने बीते दिनों एक साक्षात्कार में राज्य में जारी हिंसा के लिए म्यांमार के अवैध प्रवासियों को ज़िम्मेदार ठहराया था.
नई दिल्ली: मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने से कुछ दिन पहले केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने मणिपुर और मिजोरम की सरकारों से ‘अवैध प्रवासियों के बायोग्राफिक (निजी जीवन संबंधी) और बायोमेट्रिक विवरण’ जुटाने के लिए कहा था.
इस बायोमेट्रिक विवरण में आंख के रेटिना व आइरिस और उंगलियों के निशान (फिंगरप्रिंट्स) भी शामिल हैं.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्रालय ने बीते 22 जून के पत्र में भी राज्यों को 30 सितंबर तक यह अभ्यास पूरा करने की याद दिलाई थी.
बहरहाल, बीते 28 अप्रैल को भल्ला ने म्यांमार के साथ सीमा साझा करने वाले दोनों राज्यों में अवैध प्रवासियों से संबंधित जानकारी एकत्र करने पर एक बैठक की अध्यक्षता की थी.
This has already been published in the paper recently, GOI has undertaken the task to identify illegal migrants across Manipur and Mizoram by capturing biometric data which is to be completed by 30th September. State government had already started this earlier this year due to… pic.twitter.com/ir0Jh765ed
— Rajkumar Imo Singh (@imosingh) July 10, 2023
ज्ञात हो कि मणिपुर में मेईतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा 3 मई को भड़क उठी थी, जिसमें 140 से अधिक लोग मारे गए हैं और 54,000 से अधिक लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी 2021 में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद पड़ोसी देश के 40,000 से अधिक शरणार्थियों ने मिजोरम में शरण ली है और कहा जाता है कि लगभग 4,000 शरणार्थी मणिपुर में प्रवेश कर चुके हैं.
कुकी-चिन-ज़ो जातीय समूह से संबंधित शरणार्थी जिनमें लाई, तिदिम-ज़ोमी, लुसी और हुआलंगो जनजातियां शामिल हैं, मिज़ोरम और मणिपुर के समुदायों से निकट संबंध रखते हैं.
भारत और म्यांमार 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं और दोनों तरफ के लोगों के बीच पारिवारिक संबंध हैं. मिजोरम सरकार ने शरणार्थियों के लिए राहत शिविरों की भी व्यवस्था की थी.
मणिपुर सरकार को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि मणिपुर और मिजोरम राज्यों में अवैध प्रवासियों के बायोमेट्रिक डेटा को जुटाने का अभियान सितंबर 2023 के अंत तक पूरा किया जाना है.
साथ ही उसमें लिखा है, ‘दोनों राज्य सरकारों से अनुरोध है कि वे जल्दी योजना तैयार करें और अवैध प्रवासियों की बायोमेट्रिक जानकारी जुटाना शुरू करें.’
इंफाल पश्चिम के सागोलबंद से भाजपा विधायक राजकुमार इमो सिंह ने बीते सोमवार को गृह मंत्रालय का पत्र ट्विटर पर साझा किया. उन्होंने कहा कि मणिपुर सरकार ने इस साल की शुरुआत में ही अभियान शुरू कर दिया था, जिसके चलते लगभग 2,500 ‘अवैध प्रवासियों’ की पहचान की गई थी.
तीन बार के विधायक और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के दामाद राजकुमार इमो सिंह ने ट्विटर पर लिखा, ‘एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) के मानकीकृत प्रारूप के अनुसार सभी जिलों को पुलिस स्टेशन स्तर तक इसकी व्यवस्था करनी होगी. ऐसा लगता है कि यह एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) की दिशा में एक कदम है.’
This has already been published in the paper recently, GOI has undertaken the task to identify illegal migrants across Manipur and Mizoram by capturing biometric data which is to be completed by 30th September. State government had already started this earlier this year due to… pic.twitter.com/ir0Jh765ed
— Rajkumar Imo Singh (@imosingh) July 10, 2023
मंत्रालय के पत्र में कहा गया है कि उसने पहले भी विदेशी नागरिकों के अधिक समय तक रुकने और अवैध प्रवासन पर विस्तृत निर्देश और दिशानिर्देश जारी किए थे. 30 मार्च, 2021 को जारी दिशानिर्देश अनुपालन के लिए 21 अक्टूबर, 2022 को सभी राज्य सरकारों को फिर से भेजे गए थे.
नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश के मुख्य सचिवों को 2021 के पत्र में उनसे ‘म्यांमार से भारत में अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करने’ के लिए कहा गया था.
पत्र में कहा गया था कि राज्य सरकारों के पास किसी भी विदेशी को शरणार्थी का दर्जा देने की शक्ति नहीं है और भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है.
बता दें कि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने बीते 30 जून को एक टेलीविजन साक्षात्कार में राज्य में जारी हिंसा के लिए म्यांमार के अवैध प्रवासियों को जिम्मेदार ठहराया था.
वहीं, चुराचांदपुर के पुलिस अधीक्षक कार्तिक मल्लादी द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, म्यांमार के कम से कम 10 लोगों का पहाड़ी इलाके में चुराचांदपुर जिले के जिला अस्पताल में विस्फोटकों और गोलियों से घायल होने के कारण इलाज किया जा रहा था.
जातीय हिंसा भड़कने से पहले बीते 20 अप्रैल से कम से कम तीन लोगों को भर्ती कराया गया और 15-17 जून के बीच गोली से घायल पांच अन्य लोगों को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी घायल म्यांमार के तमू के रहने वाले हैं.
बता दें कि कुछ समय पहले मानवाधिकार आयोग ने म्यांमार के शरणार्थियों के संबंध में जानकारी दी थी कि उन्हें सजा पूरी होने के बाद भी मणिपुर की जेलों में रखा गया है.
आयोग ने एक आदेश में कहा था कि हिरासत अवधि समाप्त होने के बाद भी राज्य की जेलों में रखे गए म्यांमार के शरणार्थियों को तत्काल रिहा किया जाए और राज्य सरकार उन्हें उनके देश निर्वासित करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री के समक्ष यह मामला उठाए.