आरएसएस विचारक एस. गुरुमूर्ति ने हाईकोर्ट जज के ख़िलाफ़ ट्वीट को लेकर माफ़ी मांगी

एक तमिल समाचार पत्रिका के संपादक और आरएसएस विचारक स्वामीनाथन गुरुमूर्ति ने साल 2018 में तब दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यरत जस्टिस एस. मुरलीधर के ख़िलाफ़ ट्वीट किया था. इसे लेकर दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा गुरुमूर्ति के ख़िलाफ़ अवमानना का मामला दायर किया गया था.

एस. गुरुमूर्ति. (फोटो: पीटीआई)

एक तमिल समाचार पत्रिका के संपादक और आरएसएस विचारक स्वामीनाथन गुरुमूर्ति ने साल 2018 में तब दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यरत जस्टिस एस. मुरलीधर के ख़िलाफ़ ट्वीट किया था. इसे लेकर दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा गुरुमूर्ति के ख़िलाफ़ अवमानना का मामला दायर किया गया था.

एस. गुरुमूर्ति. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बताया कि ओडिशा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एस. मुरलीधर के खिलाफ साल 2018 में एक ट्वीट करने के मामले में चेन्नई की एक तमिल समाचार पत्रिका के ‘तुगलक’ के संपादक और आरएसएस विचारक स्वामीनाथन गुरुमूर्ति ने ‘खेद’ जाहिर किया है.

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस गौरांग कंठ की पीठ ने कहा कि अदालत ने उनकी माफी स्वीकार कर ली है और 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (डीएचसीबीए) द्वारा दायर अवमानना मामले में गुरुमूर्ति को बरी कर दिया है.

पीठ ने गौर किया कि वे स्वेच्छा से अदालत के समक्ष पेश हुए थे और अफ़सोस जाहिर किया था. पीठ ने कहा, …तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद हम उक्त घटना के लिए एस. गुरुमूर्ति की माफी स्वीकार करते हैं और वर्तमान अवमानना याचिका में उन्हें जारी किए गए कारण बताओ नोटिस को खारिज करना उचित समझते हैं. इस तरह, उन्हें आरोपमुक्त किया जाता है.’

द हिंदू के अनुसार, डीएचसीबीए की याचिका में जस्टिस मुरलीधर की अगुवाई वाली पीठ द्वारा आईएनएक्स मीडिया केस में कांग्रेस नेता पी.चिदंबरम के बेटे कार्ति को अंतरिम सुरक्षा देने के फैसले की आलोचना करने वाले ट्वीट के लिए गुरुमूर्ति को सजा देने की मांग की गई थी. जस्टिस मुरलीधर उस समय दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यरत थे.

सुनवाई के दौरान डीएचसीबीए के वकील ने कहा कि गुरुमूर्ति की माफी और उनके खेद को स्वीकार किया जाना चाहिए. इस दौरान अदालत ने कहा, ‘कभी-कभी इलाज बीमारी से भी बदतर होता है. एक माननीय न्यायाधीश का नाम सभी विवादों में अनावश्यक रूप से घसीटा गया, हर बार ऐसा होता है.;

जस्टिस मृदुल ने मौखिक टिप्पणी करते हुए जोड़ा, ‘आपको क्या लगता है कि हम अपनी गरिमा के लिए अखबारों की ख़बरों और ट्वीट्स पर भरोसा करते हैं? जैसा कि हमने पहले भी कई निर्णयों में कहा है, हमारी गरिमा एक निश्चित स्तर पर टिकी हुई है. हम अपनी गरिमा के लिए- किसी उचित या अनुचित आलोचना पर निर्भर नहीं हैं.’

इस साल अप्रैल में हुई इस केस की पिछली सुनवाई में गुरुमूर्ति की ओर से पेश वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने कहा था कि उनके मुवक्किल ने ‘ट्वीट’ के संबंध में पहले ही माफी मांग ली है.  हालांकि, गुरुमूर्ति ने कहा था कि उन्हें स्पष्ट शब्दों में बिना शर्त माफी मांगते हुए अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करने की कोई जरूरत नहीं है.

इससे पहले अक्टूबर 2019 में उच्च न्यायालय ने जस्टिस मुरलीधर के खिलाफ एक लेख को रीट्वीट करने के एक अन्य मामले में गुरुमूर्ति के खिलाफ अवमानना कार्यवाही बंद की थी. अदालत ने ऐसा तब किया था जब गुरुमूर्ति जस्टिस मुरलीधर के खिलाफ लेख लिखने और फिर माफी मांगने वाले लेखक के माफीनामे को री-ट्वीट करने पर सहमत हुए थे.

इस बीच, गुरुमूर्ति ने ट्वीट करके कहा है कि उनके माफ़ी मांगने की बात सही नहीं है. उनका कहना है कि 2018 में उनके द्वारा एक जज को ठेस पहुंचाने के जाहिर किए गए खेद को माफ़ी बताकर प्रचारित जा रहा है.

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