मणिपुर: महिलाओं को नग्न घुमाने की शिकायत जून में एनसीडब्ल्यू से हुई थी, लेकिन जवाब नहीं मिला था

मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने के अगले दिन 4 मई को थौबल ज़िले में आदिवासी कुकी समुदाय की दो महिलाओं को भीड़ द्वारा नग्न कर घुमाने के अलावा उनके साथ मारपीट और एक महिला के साथ सार्वजनिक तौर पर बलात्कार किया गया था. इसका विरोध करने पर महिला के पिता और भाई की भीड़ ने हत्या कर दी थी.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक)

मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने के अगले दिन 4 मई को थौबल ज़िले में आदिवासी कुकी समुदाय की दो महिलाओं को भीड़ द्वारा नग्न कर घुमाने के अलावा उनके साथ मारपीट और एक महिला के साथ सार्वजनिक तौर पर बलात्कार किया गया था. इसका विरोध करने पर महिला के पिता और भाई की भीड़ ने हत्या कर दी थी.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: एक चौंकाने वाले घटनाक्रम में यह पता चला है कि मणिपुर में हिंसा के दौरान बीते 4 मई को भीड़ द्वारा आदिवासी कुकी समुदाय की दो महिलाओं को भीड़ द्वारा नग्न घुमाने और उनमें से एक साथ सामूहिक बलात्कार करने की घटना की शिकायत राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) से की गई थी.

राज्य के थौबल जिले के एक गांव में हुई यह खौफनाक घटना तकरीबन ढाई महीने पहले की है, लेकिन इससे संबंधित एक वीडियो बीते बुधवार (19 जुलाई) को सोशल मीडिया पर सामने आने के बाद देशभर में रोष की लहर व्याप्त हो गई.

समाचार वेबसाइट न्यूज़लॉन्डी की एक रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि, एनसीडब्ल्यू को इस मामले पर बीते 12 जून को एक शिकायत भेजी गई थी, लेकिन शिकायतकर्ताओं को संस्था की ओर से कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

शिकायत दो मणिपुरी महिलाओं और राज्य के एक आदिवासी संघ द्वारा दर्ज कराई गई थी, जिसका मुख्यालय विदेश में है.

शिकायतकर्ताओं ने इस खौफनाक घटना का सामना करनी वाली महिलाओं से बात की और फिर एनसीडब्ल्यू की अध्यक्ष रेखा शर्मा को ईमेल किया. न्यूज़लॉन्ड्री को शिकायत की एक प्रति मिली. इसे [email protected], [email protected] और [email protected] पर ईमेल किया गया था.

शिकायत में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 4 मई को थौबल जिले के एक गांव की दो महिलाओं को ‘निर्वस्त्र कर घुमाया गया, पीटा गया और फिर दंगाई मेईतेई भीड़ ने सार्वजनिक रूप से बलात्कार किया’.

पत्र में एनसीडब्ल्यू से ‘बलात्कार, अपहरण, सार्वजनिक हत्या, आत्मदाह और हत्या सहित यौन हिंसा के क्रूर और अमानवीय कृत्यों के माध्यम से कुकी-ज़ोमी स्वदेशी आदिवासी महिलाओं के उत्पीड़न का तत्काल संज्ञान लेने’ की अपील की गई थी.

शिकायत में आरोप लगाया गया है, ‘गवाहों के ब्योरे से सबसे दुखद और परेशान करने वाले विवरण सामने आए हैं, जिसमें मेइतेई महिला निगरानीकर्ताओं को लिंग-आधारित हिंसा के समर्थकों और अपराधियों के रूप में दोषी ठहराना भी शामिल है. आरोप है कि मेईतेई महिला निगरानीकर्ताओं ने कुकी-ज़ोमी महिलाओं और बच्चों पर हमलों में सक्रिय रूप से भाग लिया है.’

आगे कहा गया है, ‘कई कुकी-ज़ोमी महिलाओं को गर्भावस्था के आखिरी चरणों या सी-सेक्शन सर्जरी से उबरने के दौरान अपनी जान बचाने के लिए भागने के लिए मजबूर किया गया है. कुछ ने शरणार्थी शिविरों में बच्चे को जन्म दिया है.’

न्यूज़लॉन्ड्री ने बताया कि शिकायत में आरोप लगाया गया है कि एक 15 वर्षीय लड़की का अपहरण कर लिया गया था और मेडिकल जांच रिपोर्ट में ‘हमले और बलात्कार की पुष्टि हुई’.

शिकायत में कहा गया है कि ये उदाहरण ‘लिंग आधारित हिंसा की गंभीरता, महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन के भयावह स्तर और कुकी-ज़ोमी महिलाओं की शारीरिक सुरक्षा और मनोवैज्ञानिक कल्याण के लिए निरंतर खतरों’ को रेखांकित करते हैं.

इसके अनुसार, ‘इसलिए हम आपसे विनम्रतापूर्वक और तत्काल अनुरोध करते हैं कि आप मामले का स्वत: संज्ञान लें और अगर संभव हो तो एक जांच समिति का गठन करें. हमें भारत के संविधान और उस विशाल शक्ति पर विश्वास है जो राष्ट्रीय महिला आयोग एक ऐसी न्यायपूर्ण दुनिया बनाने के लिए प्रयोग करता है, जहां सभी भारतीय महिलाओं के अधिकारों का सम्मान किया जाता है, यहां तक कि संघर्ष और युद्ध के समय में भी उन्हें महसूस और महत्व दिया जाता है.’

बृहस्पतिवार (20 जुलाई) को जब महिलाओं को नग्न घुमाने का वीडियो वायरल हुआ और पूरे देश में आक्रोश फैल गया, तब एनसीडब्ल्यू ने ट्वीट कर कहा कि वह मामले का स्वत: संज्ञान ले रहा है और मणिपुर के डीजीपी को तुरंत उचित कार्रवाई करने के लिए कहा गया है.

हालांकि न्यूज़लॉन्ड्री ने बताया कि राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने उनके फोन कॉल का जवाब नहीं दिया.

द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, 4 मई को हुई इस घटना के संबंध में बीते 18 मई को, कांगपोकपी पुलिस स्टेशन में एक जीरो एफआईआर (क्षेत्राधिकार की परवाह किए बिना) दर्ज की गई थी, जिसे 21 जून को घटनास्थल थौबल में ट्रांसफर कर दिया गया था.

ज़ीरो एफआईआर में ‘800-1,000’ की संख्या में ‘अज्ञात बदमाशों’ के खिलाफ बलात्कार और हत्या का आरोप है. घटना के खिलाफ दायर की गई शिकायत में दावा किया गया है कि इन आरोपियों पर ‘मेईतेई युवा संगठन, मेईतेई लीपुन, कांगलेइपाक कनबा लुप, अरमबाई तेंग्गोल और विश्व मेईतेई परिषद, शेड्यूल ट्राइब डिमांड कमेटी के सदस्य’ होने का संदेह है.

भीड़ पर बी फैनोम गांव में घरों को जलाने और पांच लोगों के एक समूह पर हमला करने का आरोप है. इस समूह में दो पुरुष और तीन महिलाएं थीं. बताया जा रहा है कि दोनों पुरुष एक महिला के पिता और भाई थे, जो घटना का विरोध किए जाने के दौरान भीड़ द्वारा मार डाले गए.

महिलाएं अपने गांव से भाग रही थीं और पुलिस सुरक्षा में थीं, जब लगभग 900-1,000 पुरुषों की भीड़ ने उन्हें पुलिस हिरासत से जबरन पकड़ लिया था और थौबल में नग्न अवस्था में उनकी परेड कराई थी.

उल्लेखनीय है कि बीते 3 मई से कुकी और मेईतेई समुदायों के बीच भड़की जातीय हिंसा में अब तक 140 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और हजारों लोग घायल हुए हैं. लगभग 50,000 लोग विस्थापित हुए हैं.

मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेईतेई समुदाय की मांग के विरोध में बीते 3 मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें हुई थीं, हिंसा में बदल गई और यह पिछले ढाई महीने से लगातार जारी है.

मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मेईतेई समुदाय की है और ये मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासियों- नगा और कुकी की आबादी 40 प्रतिशत है और ये पर्वतीय जिलों में रहते हैं.

कुकी समूहों ने जहां मणिपुर की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है, वहीं विपक्षी दल हिंसा को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी की आलोचना करते रहे हैं.

द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस खौफनाक घटना के संबंध में अब तक सिर्फ चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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