गोरखपुर विश्वविद्यालय में एबीवीपी से जुड़े छात्र फीस वृद्धि समेत मुद्दों पर चार दिन से प्रदर्शन कर रहे थे. आरोप है कि शुक्रवार को उन्होंने कुलसचिव प्रोफेसर अजय सिंह को गिराकर मारा और कुलपति प्रोफेसर राजेश सिंह के साथ बदसलूकी की. उन्हें बचाने का प्रयास कर रहे पुलिसकर्मियों के साथ भी मारपीट की गई.
‘ज्ञान, शील और एकता’ का नारा देने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ताओं ने शुक्रवार (21 जुलाई) की दोपहर दीं दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर अजय सिंह को गिराकर पीटा और कुलपति प्रोफेसर राजेश सिंह पर हाथ चलाते हुए उनके साथ धक्का-मुक्की की. इसके साथ ही कुलपति कार्यालय में तोड़फोड़ की गई और उनकी कार पर गमला फेंका गया. कुलपति को बचाने का प्रयास कर रहे पुलिसकर्मियों के साथ भी कार्यकर्ताओं ने मारपीट की.
बाद में पुलिस ने लाठीचार्ज कर एबीवीपी के आठ कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार कार्यकर्ताओं को छुड़ाने के लिए एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने कैंट थाने के सामने सड़क को भी जाम किया जिसे पुलिस ने बलप्रयोग कर खत्म कराया.
विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर डाॅ. सत्यपाल सिंह की तहरीर पर कैंट पुलिस ने विश्वविद्यालय के आठ छात्रों, एक ठेकेदार और 13 बाहरी लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 342,427,323 के तहत एफआईआर दर्ज की है.
क्या था मामला
गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन में यह बवाल तब हुआ जब फीस वृद्धि सहित कई सवालों पर धरना-प्रदर्शन कर रहे एबीवीपी कार्यकर्ताओं से बातचीत किए बिना कुलपति प्रो. राजेश सिंह अपने कार्यालय से निकलकर जाने लगे. पुलिस सुरक्षा में जा रहे प्रो. सिंह पर अचानक एबीवीपी कार्यकर्ता हमलावर हो गए.
पुलिस और विश्वविद्यालय के गार्डों ने बड़ी मुश्किल से उन्हें बचाया लेकिन कुलसचिव प्रो. अजय सिंह उग्र कार्यकर्ताओं से घिर गए. घटना से संबंधित एक वायरल वीडियो में दिख रहा है कि गले में भगवा गमछा डाले युवा उन्हें पहले गिरा देते हैं और लातों से उन्हें मारते हैं.
घटना के संबंध में कई वीडियो वायरल हुए हैं. एक वीडियो में दिख रहा है कि एबीवीपी कार्यकर्ता कुलपति प्रो. राजेश की कमर पकड़कर खींचने की कोशिश कर रहे हैं. इस दौरान उन पर हाथ चलाने की कोशिश की जाती है और धक्का-मुक्की में वे गिरते-गिरते बचते हैं.
उन्हें सुरक्षित निकालने का प्रयास करने वाले दो पुलिसकर्मी भी उग्र कार्यकर्ताओं के शिकार हुए. एक पुलिसकर्मी को पीटते हुए उसका बिल्ला नोंच लिया गया और टोपी गिरा दी गई. एक अन्य पुलिसकर्मी को धक्का देकर गिरा दिया गया और पीटा गया. जवाब में पुलिसकर्मियों ने भी एबीवीपी कार्यकर्ताओं को पीटा, जिसमें कुछ कार्यकर्ता घायल हो गए.
शुक्रवार की घटना के आठ दिन पहले 13 जुलाई को विश्वविद्यालय गेट पर कुलपति का पुतला फूंक रहे एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने प्रॉक्टर डाॅ सत्यपाल सिंह के साथ मारपीट की थी. उन्होंने कैंट थाने में तहरीर दी थी, लेकिन पुलिस ने न तो एफआईआर दर्ज की और न ही कोई कार्रवाई की गई. विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रॉक्टर पर हमले के आरोप में चार छात्रों को निलंबित कर दिया था और चार बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी थी.
एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने 26 जून को प्रदर्शन कर फीस वृद्धि, छात्रावासों की व्यवस्था ठीक करने, छात्रसंघ चुनाव कराने, दस दिन में डिग्री दिलाने की व्यवस्था करने, परीक्षा परिणाम समय से घोषित करने, हिंदी विभाग में शोध प्रवेश परीक्षा में ईडब्ल्यूएस अभ्यर्थियों का प्रवेश सुनिश्चित करने, सहायक प्रोफेसर की भर्ती में अनियमितता की जांच कराने की मांग को लेकर कुलपति को ज्ञापन दिया था.
एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने फीस वृद्धि, कार्यकर्ताओं के निलंबन को खत्म करने की मांग को लेकर 18 जुलाई से प्रशासनिक कार्यालय पर धरना शुरू कर दिया. शुक्रवार को धरने का चौथा दिन था, जब कुलपति द्वारा धरना दे रहे कार्यकर्ताओं से बातचीत नहीं करने को लेकर बवाल हुआ.
एबीवीपी ने कुलपति और कुलसचिव पर हमले और तोड़फोड़ से इनकार करते हुए कहा है कि अराजक तत्वों ने कुलसचिव पर हमला किया और विश्वविद्यालय के गार्डों ने की कुलपति की गाड़ी पर गमले फेंके.
एबीवीपी के प्रांत संगठन मंत्री हरिदेव ने कहा कि कुलपति ने पुलिस से कार्यकर्ताओं पर लाठियां बरसाईं और आठ कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया.
विश्वविद्यालय के मीडिया एवं जनसंपर्क कार्यालय द्वारा घटना के बारे में जारी बयान में कहा गया है कि ‘प्रशासनिक भवन स्थित कुलपति कार्यालय में जबरदस्ती घुसपैठ कर मारपीट करने तथा अधिकारियों पर जानलेवा हमला करने वाले उपद्रवियों पर एफआईआर दर्ज कराई गई है तथा इसमें लिप्त विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय से तत्काल प्रभाव से निष्कासित कर दिया गया है.’
बयान में यह भी कहा गया है कि ‘इस घटना में कुछ ठेकेदार भी मिले हुए है जिन्होंने इस पूरी घटना को वित्तपोषित किया. इन ठेकेदारों को विश्वविद्यालय से ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है एवं इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया है. विश्वविद्यालय में इनका प्रवेश भी प्रतिबंधित किया गया है. घटना में कुछ शिक्षकों को भी संलिप्त पाया गया है. इन शिक्षकों के खिलाफ भी कार्रवाई की जा रही है.’
पुलिस को दी गई तहरीर में कहा गया है कि 21 जुलाई को लगभग 11 बजे कुछ लोग जबरदस्ती विश्वविद्यालय के प्रशानिक भवन में घुसे, जिनमें कुछ विद्यार्थी भी थे. इन लोगों ने परिसर में हंगामा मचाना शुरू कर दिया. कुलपति कार्यालय के सामानों एवं गमले, शीशे, कुर्सियों व कुलपति की गाड़ी को क्षतिग्रस्त करते हुए विश्वविद्यालय के अधिकारियों तथा कुलपति, वित्त अधिकारी, कुलसचिव, नियंता आदि को उनके प्रकोष्ठ में ही बंद कर दिया. उपद्रवी विद्यार्थियों को कुछ बाहरी तत्व सुनियोजित षड्यंत्र के तहत अपराध करने के लिए उत्साहित भी कर रहे थे. उपद्रवी तत्वों द्वारा विश्वविद्यालय अधिकारियों के सरकारी कार्यों में जानबूझकर बाधा पहुंचाई गई. विवश होकर सुरक्षार्थ पुलिस को बुलाना बड़ा. पुलिस की उपस्थिति में भी ये लोग उपद्रव करते रहे. पुलिस के समझाने-बुझाने पर भी ये लोग शांत नहीं हुए. किसी तरह से कुलपति को उनके ऊपर आसन्न खतरे को देखते हुए पुलिस की संरक्षण में बाहर निकाला गया. अवसर पाकर विश्वविद्यालय के अन्य अधिकारी किसी प्रकार छिपकर अपनी जान बचाए. इसी बीच कुलसचिव इन उपद्रवी तत्वों के हाथ लग गए. जब वह उन्हें समझाने का प्रयास किए इन उपद्रवी तत्वों में जिसमें कुछ ज्ञात व अज्ञात दोनों है, ने सुनियोजित षड्यंत्र के तहत उनकी हत्या करने के उद्देश्य से जानलेवा हमला किया. इस क्रम में उनके ऊपर मुक्का, थप्पड़ भी छकाया गया एवं उनकी हत्या करने के उद्देश्य से उनके ऊपर कड़े कुंद से सिर के पिछले भाग में प्रहार किया गया, जिससे उनके सिर के पिछले भाग में चोट लगी जहां से रक्त प्रवाहित होने लगा. जिससे वह गिर गए, गिरने के बाद भी उन पर उपद्रवी तत्व उनके ऊपर प्रहार करते रहे, जिससे उनके पूरे बदन में चोट लगी. किसी प्रकार बीच-बचाव करते हुए उनको उपद्रवी तत्वों के बीच से निकाला गया, तब तक उनकी हालत बहुत खराब हो चुकी थी. कुलसचिव की हाल ही में हृदय रोग की चिकित्सा हुई है, उन्हें स्टेंट भी पड़ा है. उपद्रवी तत्वों द्वारा इस घटना की वजह से उनकी जान जाने की पूरी संभावना थी. यह पूरी घटना, घटनास्थल के पास लगे हुए सीसीटीवी कैमरा में भी रिकॉर्ड है. ’
विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर डाॅ. सत्यपाल सिंह ने बताया कि 13 जुलाई को विश्वविद्यालय गेट पर कुलपति का पुतला फूंकने से रोकने के दौरान उन पर हमला हुआ था जिसकी रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए तहरीर दी गई थी लेकिन कैंट पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की. कोई निरोधात्मक या अन्य कार्रवाई नहीं हुई जिसके कारण उपद्रवी तत्व का मनोबल बढ़ गया और उन्होंने वर्तमान घटना को अंजाम दिय.
उन्होंने दावा किया है कि कुलसचिव प्रो. अजय सिंह पर हमला कराने में ठेकेदार पीयूष सिंह की मुख्य साजिशकर्ता है. ‘वह घटनास्थल पर मौजूद था. कुछ और लोगों के नाम भी एफआईआर में जोड़े जाने के लिए सप्लीमेंट्री तहरीर दी जाएगी.’
उधर, अभाविप गोरक्ष प्रांत संगठन मंत्री हरिदेव ने कहा कि विद्यार्थी परिषद, गोरखपुर विश्वविद्यालय इकाई के कार्यकर्ताओं द्वारा विश्वविद्यालय में व्याप्त अनियमितता एवं अभाविप कार्यकर्ताओं के निलंबन और प्रवेश वर्जित संबंधी आदेशों के विरुद्ध पिछले चार दिन से शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन किया जा रहा था. धरना प्रदर्शन कर रहे छात्रों से कुलपति बात तक करने नहीं आए.
उन्होंने आगे कहा, ‘कुलपति भारी पुलिस बल के साथ छात्रों से बात किए बिना प्रशासनिक भवन के कार्यालय से नीचे जाने लगे. अभाविप के कार्यकर्ताओं ने उनसे बात करने का निवेदन किया तो सीओ योगेंद्र सिंह और विश्वविद्यालय चौकी प्रभारी अमित चौधरी कार्यकर्ताओं पर लाठी बरसाने लगे. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने पुलिस प्रशासन के दम पर लाठियां चलवाईं. हमारी महिला कार्यकर्ताओं के साथ बदतमीजी की गई है. कार्यकर्ता दीपक पांडेय को गंभीर रूप से चोटें आई हैं तथा अन्य कई कार्यकर्ताओं को भी चोटें आई हैं. पुलिस अभाविप के कार्यकर्ता मयंक राय, ऋषभ सिंह, अर्पित कसौधन, प्रिंस तिवारी, शक्ति सिंह, शिवम पांडेय, शुभम राव, आलोक गुप्ता को कैंट थाने ले गई है. अभाविप छात्रों के साथ हुई ऐसी वीभत्स घटना की निंदा करता है, यदि कार्यकर्ताओं को छोड़ा नहीं जाता है तो अभाविप उग्र आंदोलन को बाध्य होगी.’
शुक्रवार शाम गोरखपुर के डीएम और एसपी कुलपति से मिले थे और घटना की जानकारी ली थी. एसएसपी डॉ. गौरव ग्रोवर ने कहा है कि विश्वविद्यालय प्रशासन की तहरीर मिली है जिसके अनुसार एफआईआर दर्ज कर वीडियो फ़ुटेज, सीसीटीवी कैमरा के फुटेज और साक्ष्यों के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी.
विवादों में रहे हैं कुलपति प्रो. राजेश सिंह
कुलपति प्रो. राजेश का तीन वर्ष का कार्यकाल 5 सितंबर को खत्म हो रहा है. कुलाधिपति द्वारा नए कुलपति के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
प्रो. सिंह का कार्यकाल बेहद विवादित रहा है. उन पर विश्वविद्यालय के अधिनियम, परिनियम की अवहेलना करते हुए मनमाने ढंग से कार्य करने, राज्य सरकार से स्वीकृति बिना ठीक ढंग से पाठ्यक्रम व जरूरी व्यवस्थाएं किए पांच दर्जन से अधिक पाठ्यक्रमों को शुरू कर देने, शिक्षकों का उत्पीड़न करने से लेकर वित्तीय अनियमितता, कुलपति की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने पर हिंदी विभाग के प्रोफेसर कमलेश गुप्ता को दो बार निलंबित करने के आरोप लगे.
हाईकोर्ट द्वारा उनके निलंबन पर रोक लगाए जाने के बाद उनका निलंबन वापस लिया गया लेकिन कुछ दिन बाद ही उन्हें फिर निलंबित कर दिया गया. प्रो. गुप्ता ने अपनी मांगों को लेकर सत्याग्रह किया. उनके सत्याग्रह का समर्थन करने वाले सात प्रोफेसरों को कारण बताओ नोटिस मिला था और एक दिन का वेतन काटने का आदेश दिया गया था. इसको लेकर जब विश्वविद्यालय अशांत हुआ, तो स्थिति संभालने के लिए कुलाधिपति राज्यपाल के ओएसडी को गोरखपुर आाना पड़ा.
यह भी बताया गया था कि कुलपति ने बिना भवन, शिक्षक व ढांचागत व्यवस्था किए इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी तथा एग्रीकल्चर एंड नेचुरल साइंसेज का इंस्टिट्यूट, फिजिकल एजुकेशन का विभाग स्थापित किया तथा 67 नए पाठ्यक्रमों को शुरू किया, जिसमें छात्रों ने प्रवेश भी ले लिया.
अप्रैल 2021 में कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने तत्कालीन कुलसचिव/रजिस्ट्रार ओमप्रकाश पर असहयोग का आरोप लगाते हुए उन्हें पद से हटा दिया था और प्रो. अजय सिंह को कार्यवाहक कुलसचिव/रजिस्ट्रार बना दिया. तत्कालीन रजिस्ट्रार ओमप्रकाश भी अड़ गए और उन्होंने कुलपति को चुनौती देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय एक्ट के अनुसार कुलपति उन्हें पद से नहीं हटा सकते.
बाद में शासन की तरफ से भी कहा गया कि रजिस्ट्रार को कुलपति नहीं हटा सकते. यह झगड़ा तब शांत हुआ जब रजिस्ट्रार का तबादला कर दिया गया.
इसके बाद विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. विनोद सिंह से कुलपति का टकराव हुआ. टकराव के बाद प्रो. सिंह ने शिक्षक संघ के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. तबसे शिक्षक संघ का चुनाव ही नहीं हुआ.
कुलपति प्रो. राजेश सिंह का गोरखपुर विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालय शिक्षक संघ (गुआक्टा) के पदाधिकारियों से कई बार टकराव हो चुका है और गुआक्टा लगातार उनके विरुद्ध आंदोलनरत है.
विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं छात्रसंघ का चुनाव न कराने, छात्रावासों की खराब व्यवस्था, प्री-पीएचडी के करीब एक हजार छात्र-छात्राओं की नई प्रणाली के तहत परीक्षा कराने, फीस वृद्धि आदि को लेकर आंदोलन करते रहे हैं.
अभी हाल में प्रॉक्टर प्रो. गोपाल प्रसाद ने कुलपति पर अमर्यादित व्यवहार और गलत काम कराने का दबाव बनाने का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया था. कुलपति पर कुछ शिक्षकों को ही अधिकतर पद दिए जाने के साथ-साथ सजातीय शिक्षकों-कर्मचारियों को तवज्जो देने का भी आरोप है.
कुलपति प्रो. सिंह इन सभी आरोपों से हमेशा बेपरवाह रहे. वे नैक (NAAC) मृल्यांकन में विश्वविद्यालय ए़़++ मिलने और 67 नए पाठयक्रम शुरू करने को अपनी बड़ी उपलब्धि बताते हैं. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने भाजपा, आरएसएस से निकटता को जब-तब साबित करने की खूब कोशिश की.
इसके बावजूद आरएसएस के अनुषांगिक छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं द्वारा उन पर हमले की घटना के पीछे की वास्तविक कारणों को लेकर काफी चर्चा हो रही है.