सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र द्वारा कीटनाशकों पर प्रतिबंध के लिए कई समितियां बनाने पर सवाल उठाए

शीर्ष अदालत ने केवल तीन कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र के आदेश को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार तब तक समितियों का गठन करती रहती है जब तक उसे अपने अनुकूल रिपोर्ट नहीं मिल जाती.

(फोटो: द वायर)

शीर्ष अदालत ने केवल तीन कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र के आदेश को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार तब तक समितियों का गठन करती रहती है जब तक उसे अपने अनुकूल रिपोर्ट नहीं मिल जाती.

(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र से पूछा कि उसे कीटनाशकों पर प्रतिबंध की समीक्षा के लिए कई समितियों का गठन क्यों करना पड़ा। पीठ ने इशारा किया कि यह सरकार द्वारा एक अनुकूल निर्णय पाने का प्रयास लगता है.

अदालत ने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार तब तक समितियों का गठन करती रहती है जब तक उसे अपने अनुकूल रिपोर्ट नहीं मिल जाती.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने केवल तीन कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र के फरवरी 2023 के आदेश को चुनौती देने वाले एनजीओ वनशक्ति और अन्य द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं.

याचिकाओं में बताया गया कि 2020 में एसके खुराना के तहत गठित एक उप-समिति ने कैंसरकारी होने के कारण 27 कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी. इस निष्कर्ष को मानते करते हुए केंद्र ने सितंबर 2022 में टीपी राजेंद्रन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया, जिसने प्रतिबंध को केवल तीन नामों तक सीमित कर दिया.

एक के बाद एक समितियां बनाने पर केंद्र से जवाब मांगते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘आपके पास इतनी सारी समितियां क्यों हैं. क्या जब तक आपको अनुकूल प्रतिक्रिया नहीं मिलती तब तक आप समितियां नियुक्त करते रहेंगे?’

पीठ में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे. इसने आगे कहा, ‘हम जानना चाहते हैं कि खुराना समिति ने 27 कीटनाशकों पर प्रतिबंध की सिफारिश क्यों की और राजेंद्रन समिति ने इसे घटाकर सिर्फ 3 कर दिया… ऐसा लगता है कि हर बार जब आपके पास एक समिति से प्रतिकूल रिपोर्ट आई, तो आपने एक नई समिति का गठन किया है.’

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) विक्रमजीत बनर्जी ने अदालत को सूचित किया कि सरकार ने इसमें शामिल विज्ञान को ध्यान में रखते हुए और प्रक्रिया के अनुसार निर्णय लिया है. उन्होंने कहा, ‘याचिकाकर्ताओं को न तो विज्ञान पसंद है और न ही प्रक्रिया और इसलिए वे शिकायत कर रहे हैं.’

पीठ ने मामले को 1 अगस्त को सुनवाई के लिए स्थगित करते हुए कहा, ‘हम संतुष्ट होना चाहते हैं कि आपने विज्ञान के साथ-साथ प्रक्रिया का भी पालन किया.’

याचिकाओं पर वकील प्रशांत भूषण ने जिरह की और कहा कि सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि 27 कीटनाशकों पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया गया. उनके अनुसार, मानव जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाले कैंसरकारी रसायनों के उपयोग के कारण 2018 में प्रतिबंध लगाने के लिए मसौदा अधिसूचना में यह शामिल था.

इसके अलावा जनहित याचिका में मसौदा अधिसूचना में शामिल नहीं किए गए अन्य कीटनाशकों पर भी प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है.

भूषण ने कहा कि भारत द्वारा अनुमति दिए गए कीटनाशकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित कर दिया गया क्योंकि वे बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करते पाए गए और सरकार ने उद्योग लॉबी के सामने घुटने टेक दिए जो कभी भी प्रतिबंध का समर्थन नहीं करती.

27 कीटनाशकों पर प्रतिबंध की सिफारिश करने वाली मसौदा अधिसूचना भी एसके मल्होत्रा की अध्यक्षता वाली एक समिति के अध्ययन का परिणाम थी जिसने 2017 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.

एनजीओ वनशक्ति ने 2017 में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था और मांग की थी कि प्रतिबंध को अन्य कीटनाशकों तक भी बढ़ाया जाए, जिस पर शीर्ष अदालत अभी भी विचार कर रही है.

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