चीन के बारे में 67 फीसदी भारतीयों की नकारात्मक राय: अंतरराष्ट्रीय सर्वे

प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा 24 देशों में किए गए एक सर्वे में सामने आया है कि भारत में चीन को लेकर नकारात्मक विचार 2019 में 46 फीसदी थे, जो 2023 में बढ़कर 67 फीसदी हो गए हैं. इसी अवधि के दौरान भारत-चीन सीमा पर बार-बार संघर्ष के हालात बने हैं.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)

प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा 24 देशों में किए गए एक सर्वे में सामने आया है कि भारत में चीन को लेकर नकारात्मक विचार 2019 में 46 फीसदी थे, जो 2023 में बढ़कर 67 फीसदी हो गए हैं. इसी अवधि के दौरान भारत-चीन सीमा पर बार-बार संघर्ष के हालात बने हैं.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: प्यू रिसर्च सेंटर के एक नए सर्वे में पता चला है कि 24 देशों के औसतन 67 फीसदी वयस्कों ने चीन के बारे में प्रतिकूल विचार व्यक्त किए हैं, जिनमें भारत और ब्राजील में इस एशियाई दिग्गज देश के बारे में नकारात्मक राय रखने वालों की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है.

पिछले शुक्रवार को जारी की गई रिपोर्ट इस साल फरवरी और मई के बीच 24 देशों के लगभग 30,000 लोगों के फोन पर और व्यक्तिगत रूप से किए गए सर्वे पर आधारित है.

उस सर्वे के आधार पर यह पाया गया कि 67 फीसदी लोगों ने कहा कि उनका चीन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण है. इसके अलावा, 71 फीसदी लोगों का मानना है कि चीन वैश्विक शांति और स्थिरता में योगदान नहीं देता.

वहीं, 76 फीसदी लोगों का मानना है कि चीन उनके देशों के हितों को ध्यान में नहीं रखता है, जबकि 57 फीसदी का कहना है कि बीजिंग अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है.

उच्च आय वाले देशों के लोगों के बीच इस तरह की नकारात्मक राय हंगरी और स्पेन में 50 प्रतिशत से लेकर ऑस्ट्रेलिया और जापान में 87 प्रतिशत तक है.

इसके विपरीत, सर्वेक्षण में शामिल आठ मध्यम आय वाले देशों में से, केन्या, मेक्सिको और नाइजीरिया में बहुमत ने चीन को सकारात्मक रेटिंग भी दी. भारत एकमात्र मध्यम आय वाला देश था जहां 67 प्रतिशत बहुमत के चीन के बारे में प्रतिकूल विचार थे, इसके बाद ब्राजील 48 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका 40 प्रतिशत का नंबर है.

सर्वे में कहा गया है, ‘भारत में चीन को लेकर नकारात्मक विचार 2019 में 46 फीसदी थे, जो 2023 में बढ़कर 67 फीसदी हो गए. इसी अवधि के दौरान भारत-चीन सीमा पर बार-बार संघर्ष के हालात बने हैं.’

यह चार वर्षों में 21 प्रतिशत की वृद्धि थी. चीन के बारे में नकारात्मक राय में 21 प्रतिशत की समान वृद्धि दर्ज करने वाला एकमात्र अन्य देश ब्राजील है, जो 2017 में 25 प्रतिशत के से बढ़कर 2018 में 48 प्रतिशत हो गया.

2023 को छोड़कर भारत में किए गए हालिया वार्षिक सर्वेक्षणों से पता चलता है कि चीन के प्रति प्रतिकूल दृष्टिकोण रखने वाले भारतीयों की संख्या आमतौर पर 50 फीसदी से कम थी.

चीन के बारे में नकारात्मक राय 2013 में 41 फीसदी थी, जो 2015 में घटकर 32 फीसदी हो गई थी. यह उस अवधि में हुआ था जब 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा साबरमती के तट पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मेजबानी की गई थी, जिसके बाद मई 2015 में भारतीय नेता ने बीजिंग की यात्रा की थी.

2016, 2017 और 2019 के सर्वेक्षणों के दौरान भारत में चीन के बारे में नकारात्मक राय बढ़ने लगी थी. 2017 में चीन द्वारा भूटान के दावे वाले क्षेत्र पर सड़क बनाने को लेकर भारतीय और चीनी सैनिक आमने-सामने आ गए थे. दोनों पक्षों द्वारा अपने सैनिकों को वापस बुलाने के साथ नौ सप्ताह का गतिरोध ‘समाधान’ हो गया था. जहां कुछ बिंदुओं पर सैनिकों की वापसी हुई है, वहीं देपसांग और डेमचोक में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच आमना-सामना जारी रहा.

इसके बाद, मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर विभिन्न पॉइंट पर गतिरोध शुरू हो गया, जिसके कारण चार दशकों में सीमा पर हुई पहली घातक झड़प में 20 भारतीय सैनिक और कम से कम चार चीनी सैनिक मारे गए.

इसके अलावा, सर्वेक्षण में पाया गया कि अफ्रीकी देशों को छोड़ दें, तो बाकी सभी को इस बात को लेकर चीनी राष्ट्रपति में कम विश्वास है कि वे ‘वैश्विक मामलों में सही काम करेंगे.’

मध्यम आय वाले देशों में, राष्ट्रपति शी की रेटिंग 2019 के आखिरी सर्वेक्षण की तुलना में खराब हुई है. भारत में पिछले चार वर्षों में शी पर कम या बिल्कुल भरोसा नहीं रखने वालों की हिस्सेदारी 21 फीसदी अंक बढ़ गई है. इसके बाद मेक्सिको (17), ब्राज़ील (15 अंक), अर्जेंटीना (12 अंक) और नाइजीरिया (10 अंक) का नंबर आता है.

24 देशों के जो लोग सर्वे में शामिल थे, उनमें से लगभग एक तिहाई लोग चीन को दुनिया की अग्रणी आर्थिक शक्ति के रूप में देखते हैं. जबकि, सभी मध्यम आय वाले देशों समेत अधिकांश ने अमेरिका को यह उपाधि दी.

वहीं, आठ मध्यम आय वाले देशों में से कम से कम आधे का कहना है कि चीनी निवेश से उनके देश की अर्थव्यवस्था को फायदा हुआ है. वहीं, 40 फीसदी भारतीयों ने दावा किया कि चीनी निवेश से घरेलू अर्थव्यवस्था को मदद नहीं मिली है.

जहां उच्च और मध्यम आय वाले देशों में चीन के बारे में विचारों को लेकर असमानता है, वहीं सर्वे में शामिल 24 देशों के लोग कुछ मामलों में समान विचार भी रखते हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, ’69 फीसदी लोग चीन की तकनीकी उपलब्धियों को अन्य धनी देशों की तुलना में सबसे अच्छा या औसत से ऊपर बताते हैं, इसमें उच्च और मध्यम आय वाले देशों की समान हिस्सेदारी है. औसतन 54 फीसदी लोग चीन की सेना को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में से एक मानते हैं.’

आठ मध्यम आय वाले देशों में चीनी तकनीकी उत्पादों के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में औसतन 62 फीसदी ने इसे अच्छा बताया, जबकि भारत में 52 फीसदी ने इन्हें खराब गुणवत्ता का बताया, भले ही चीनी मोबाइल फोन का भारतीय बाजार में प्रभुत्व है.

इसके अलावा, 45 फीसदी का कहना है कि चीनी उत्पाद उनके व्यक्तिगत डेटा की रक्षा करते हैं, जबकि 40 फीसदी मानते हैं कि चीनी उत्पादों ने उनके निजी डेटा को असुरक्षित कर दिया है. भारत में आंकड़े उलट हैं, जहां 51 फीसदी का मानना है कि चीनी उत्पादों में उनका व्यक्तिगत डेटा असुरक्षित है.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.