द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
मणिपुर सौ दिन से अधिक समय से जारी हिंसा के बीच सुप्रीम कोर्ट ने हिंसा से जुड़े 27 सीबीआई मामलों को असम ट्रांसफर कर दिया है. द हिंदू के अनुसार, इनमें हिंसा के दौरान महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध के केस भी शामिल हैं. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने यह आदेश केंद्र और जांच एजेंसी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के आवेदन पर दिया. मेहता का कहना था कि न्यायिक अधिकारी किसी न किसी आदिवासी समुदाय से संबंधित हो सकते हैं और प्री-ट्रायल सुनवाई से राज्य में हंगामा हो सकता है. मेहता ने ही असम के नाम का विकल्प दिया था, जिस पर याचिकाकर्ताओं के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने असम में भाजपा सरकार होने का हवाला देते हुए आपत्ति जताई थी. इस पर सीजेआई का कहना था कि वे सरकार से नहीं, बल्कि गौहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से प्री-ट्रायल जजों को नामित करने के लिए कह रहे हैं.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 9-10 सितंबर को नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन में व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं होंगे. रिपोर्ट के अनुसार, क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने शुक्रवार को कहा कि पुतिन किस तरह से इसका हिस्सा बनेंगे, यह बाद में निर्धारित किया जाएगा. पुतिन दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में हाल ही में संपन्न ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल नहीं हुए और एक वीडियो संदेश भेजा था. उनके ऐसा करने की वजह अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) द्वारा यूक्रेन में युद्ध अपराधों के आरोप को लेकर उनके खिलाफ जारी किया वॉरंट था. दक्षिण अफ्रीका आईसीसी के हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक है और अगर पुतिन उनके देश में होते तो वह उन्हें गिरफ्तार करना बाध्य होता. हालांकि, भारत आईसीसी का सदस्य देश नहीं है.
एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा है कि उनकी पार्टी में कोई फूट नहीं पड़ी है और ‘अजित पवार उनके ही नेता हैं.’ इससे पहले उनकी बेटी और सांसद सुप्रिया सुले ने भी ऐसा ही बयान दिया था. अमर उजाला के अनुसार, बारामती में पवार से पत्रकारों में सुले के बयान के बारे में सवाल किया था, जिसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘इस बात पर कोई मतभेद नहीं है कि अजित पवार हमारे नेता हैं. एनसीपी में कोई विभाजन नहीं है. किसी राजनीतिक दल में फूट का मतलब क्या है? फूट तब होती है जब किसी पार्टी का एक बड़ा समूह राष्ट्रीय स्तर पर अलग हो जाता है. लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ है. कुछ लोगों ने पार्टी छोड़ दी, कुछ ने अलग रुख अपना लिया है. लोकतंत्र में निर्णय लेना उनका अधिकार है.’
उत्तर प्रदेश के चर्चित मधुमिता हत्याकांड मामले में दोषी ठहराए गए यूपी सरकार के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी की समय-पूर्व रिहाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, यूपी सरकार ने ‘बढ़ती उम्र और अच्छे व्यवहार’ का हवाला देते हुए गुरुवार को दंपति की रिहाई का आदेश दिया था. अमरमणि 66 साल और मधुमणि 61 साल की हैं. इसके खिलाफ मधुमिता की बहन निधि शुक्ला सुप्रीम कोर्ट पहुंची थीं, जिसने रिहाई रोकने से मना करते हुए राज्य सरकार, त्रिपाठी और उनकी पत्नी को नोटिस जारी कर आठ सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है. साल 2003 में हुई मधुमिता की हत्या के लिए उत्तराखंड की एक सीबीआई अदालत 2007 में अमरमणि, मधुमणि और अमरमणि के भतीजे रोहित चतुर्वेदी सहित दो अन्य को दोषी ठहराया. जुलाई 2012 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सभी चार दोषियों को सीबीआई अदालत से मिली आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था. वर्तमान में अमरमणि और मधुमणि दोनों गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में हैं, जहां उन्होंने विभिन्न बीमारियों का ‘इलाज’ करवाते हुए सजा की बड़ी अवधि गुजारी है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि संविदा आधारित महिला कर्मचारी भी मातृत्व लाभ की हक़दार होती हैं. एनडीटीवी के मुताबिक, दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की संविदाकर्मी ने मातृत्व लाभ का अनुरोध खारिज होने के बाद अदालत का रुख किया था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि काम का माहौल बिना किसी बाधा के निर्णय लेने के लिए पर्याप्त अनुकूल होना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एक महिला जो करिअर और मातृत्व दोनों को चुनती है, उसे कोई एक निर्णय लेने के लिए बाध्य न होना पड़े. अदालत ने यह कहते हुए कि याचिकाकर्ता को मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत लाभ और राहत मिलनी चाहिए थी, यह जोड़ा कि रोजगार की प्रकृति यह तय नहीं कर सकती है कि एक महिला कर्मचारी कानून के तहत मातृत्व लाभ की हकदार होगी या नहीं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ग़ुंडा और गैंगस्टर एक्ट के मनमाने इस्तेमाल पर नाराज़गी जताई है. इंडियन एक्सप्रेस अनुसार, कोर्ट ने कहा कि ज़िला मजिस्ट्रेट को उत्तर प्रदेश गुंडा नियंत्रण अधिनियम और उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम द्वारा प्रदत्त असाधारण और असामान्य शक्तियों का प्रयोग करने से पहले पूरी सावधानी बरतनी चाहिए, लेकिन हम देख रहे हैं कि इनके प्रावधानों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है. अदालत ने जोड़ा कि यह निवारक अधिनियम को कुंद बनाने जैसा है. गुंडा अधिनियम के प्रावधानों का अविवेकपूर्ण प्रयोग कर व्यक्तियों को नोटिस भेजना कार्यकारी अधिकारियों की इच्छा या पसंद पर आधारित नहीं है.
उत्तर प्रदेश के कौशांबी ज़िले में बलात्कार की घटना का कथित वीडियो क्लिप लीक होने के बाद पीड़िता के आत्महत्या करने की घटना सामने आई है. हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, 15 वर्षीय लड़की के साथ उसके पड़ोसी ने कथित तौर पर बलात्कार किया था, लेकिन उसने इस बारे में किसी को नहीं बताया. मृतका के भाई ने आरोप लगाया कि आरोपी के दोस्तों ने घटना का एक कथित वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित कर दिया. इस बारे में आपत्ति जताने पर आरोपी ने पीड़िता और उसके परिजनों से मारपीट की, जिसके बाद लड़की ने यह घातक कदम उठाया. पुलिस ने कहा कि 22 वर्षीय आरोपी और उसके परिवार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है और जांच जारी है.