सुप्रीम कोर्ट की जेल सुधार समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला क़ैदियों को केवल 10 राज्यों और 1 केंद्रशासित प्रदेश में किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार या उत्पीड़न के लिए जेल कर्मचारियों के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करने की अनुमति है. देश की 40 प्रतिशत से भी कम जेलें महिला क़ैदियों के लिए सैनिटरी नैपकिन मुहैया कराती हैं.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जेल सुधार समिति की रिपोर्ट से पता चलता है कि सिर्फ गोवा, दिल्ली और पुदुचेरी की जेलें ही महिला कैदियों को अपने बच्चों से सलाखों या कांच के दीवार के बिना मिलने की अनुमति देती हैं.
इसमें कहा गया है कि महत्वपूर्ण बात यह है कि देश की 40 प्रतिशत से भी कम जेलें महिला कैदियों के लिए सैनिटरी नैपकिन मुहैया कराती हैं. इसके अलावा जेलों में 75 प्रतिशत महिला वार्डों को पुरुष वार्डों के साथ रसोई और सामान्य सुविधाएं साझा करनी पड़ती हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जेल सुधार समिति की ओर से कहा गया है, ‘महिला कैदियों को विशेष रूप से चिकित्सा देखभाल, कानूनी सहायता और परामर्श से लेकर वेतनभोगी श्रम और मनोरंजन सुविधाओं जैसी बुनियादी जरूरतों तक पहुंच बनाने के लिए अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में कहीं अधिक बदतर स्थितियों का सामना करना पड़ता है.’
इसके अनुसार, ‘विशेष महिला जेल में मिलने वाली सुविधाओं के विपरीत बड़ी जेलों में कैद महिलाओं को इन बुनियादी सुविधाओं को देने से अक्सर इनकार कर दिया जाता है.’
बीते 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने 27 दिसंबर, 2022 को दी गई जस्टिस अमिताव रॉय समिति की रिपोर्ट पर केंद्र और राज्यों के विचार मांगे थे, जिसमें रेखांकित किया गया है कि सुधारात्मक न्याय प्रणाली ‘स्पष्ट रूप से लिंग भेदभावकारी’ है.
2014 और 2019 के बीच भारतीय जेलों में महिला कैदियों की आबादी में 11.7 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई और 2019 तक कुल जेल आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी 4.2 प्रतिशत थी.
इन आंकड़ों के बावजूद रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ 18 प्रतिशत महिला कैदियों को विशेष महिला जेलों में रखा जाता है, क्योंकि केवल 15 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में महिला जेलें संचालित हो रही हैं. इसमें कहा गया है कि सभी श्रेणियों की महिला कैदियों को एक ही वार्ड और बैरक में रखा जाता है, चाहे वे विचाराधीन कैदी हों या दोषी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि लिंग-विशिष्ट प्रशिक्षण की भी कमी है और मैट्रन (महिला कैदियों की इंजार्च) को यह नहीं बताया जाता है कि महिलाओं की तलाशी कैसे ली जाए.
इसमें यह भी कहा गया है कि महिला कैदियों को केवल 10 राज्यों और 1 केंद्रशासित प्रदेश में किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार या उत्पीड़न के लिए जेल कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की अनुमति है.
रिपोर्ट के अनुसार, महिला कैदियों के लिए अलग चिकित्सा और मनोरोग वार्डों की कमी, बच्चे की डिलीवरी के लिए बुनियादी न्यूनतम सुविधाएं न होना, महिला कैदियों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिए स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की कमी चिकित्सा मोर्चे पर प्रमुख चुनौतियां हैं.
इसके अलावा 19 राज्यों और 6 केंद्रशासित प्रदेशों की जेलों में महिला कैदियों के लिए मनोरोग वार्डों की कमी है.
इन मुद्दों को हल करने के लिए रिपोर्ट में कैदियों के इलाज के लिए दूरस्थ निदान (Remote Diagnosis) और वर्चुअल परामर्श जैसी टेली-मेडिसिन सुविधाएं शुरू करने, व्यावसायिक प्रशिक्षण और शिक्षा कार्यक्रमों को मजबूत करने, छोटे अपराधों के लिए कारावास की जगह सामुदायिक सेवा और मनोवैज्ञानिक विकारों वाले कैदियों के लिए उचित परामर्श देने की सिफारिश की गई है.
सितंबर 2018 में शीर्ष अदालत ने जेल सुधारों से जुड़े मुद्दों को देखने और जेलों में भीड़भाड़ सहित कई पहलुओं पर सिफारिशें देने के लिए जस्टिस (सेवानिवृत्त) रॉय की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था. करीब दो साल बाद समिति ने अपनी रिपोर्ट दी है.
इससे पहले समिति ने आत्महत्या-रोधी बैरक के निर्माण की आवश्यकता पर जोर देते हुए शीर्ष अदालत को बताया था कि 2017 और 2021 के बीच देश भर की जेलों में हुईं 817 अप्राकृतिक मौतों का एक प्रमुख कारण आत्महत्या है.
समिति ने शीर्ष अदालत में प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा था, ‘जेल के बुनियादी ढांचे के मौजूदा डिजाइन के भीतर संभावित फांसी स्थल और संवेदनशील स्थानों की पहचान कर उन्हें बदलने के साथ आत्महत्या प्रतिरोधी कक्षों/बैरक का निर्माण करने की आवश्यकता है.’