मणिपुर: भाजपा नेता ने कहा- पार्टी के कुकी विधायक इस्तीफ़ा दे दें और दूसरे राज्य से चुनाव लड़ें

मणिपुर में बीते 3 मई से जारी जातीय हिंसा के बाद कुकी-जो आदिवासी समुदाय से आने वाले 10 विधायक अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं. इनमें से 7 सत्तारूढ़ भाजपा के हैं. भाजपा विधायक और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के दामाद राजकुमार इमो सिंह ने कहा कि अगर वे ‘शांति के लिए काम करने’ को लेकर गंभीर नहीं तो ‘इस्तीफा दे दें’.

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राजकुमार इमो सिंह. (फोटो साभार: फेसबुक)

मणिपुर में बीते 3 मई से जारी जातीय हिंसा के बाद कुकी-जो आदिवासी समुदाय से आने वाले 10 विधायक अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं. इनमें से 7 सत्तारूढ़ भाजपा के हैं. भाजपा विधायक और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के दामाद राजकुमार इमो सिंह ने कहा कि अगर वे ‘शांति के लिए काम करने’ को लेकर गंभीर नहीं तो ‘इस्तीफा दे दें’.

राजकुमार इमो सिंह. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: मणिपुर में जारी हिंसा के बीच कुकी-जो समुदाय के भाजपा विधायकों पर सीधा हमला बोलते हुए भाजपा के एक विधायक ने कहा है कि अगर वे ‘शांति के लिए काम करने’ के बारे में गंभीर नहीं हैं और केवल ‘अलग प्रशासन’ की मांग पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं तो ‘इस्तीफा दे दें और दूसरे राज्य से चुनाव लड़ें’.

दरअसल मणिपुर में बीते 3 मई से जारी जातीय हिंसा के बाद कुकी-जो आदिवासी समुदाय से आने वाले 10 विधायक अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं. इन 10 में से 7 सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक हैं.

बीते अगस्त महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित एक ज्ञापन में कुकी-जो समुदाय के विधायकों ने कहा था कि  वर्तमान में जारी हिंसा ‘कुकी-जो आदिवासियों के खिलाफ राज्य प्रायोजित युद्ध’ है.

इनका कहना था कि समुदाय से संबंधित आईएएस और एमसीएस (मणिपुर सिविल सर्विसेस) अधिकारी और आईपीएस और एमपीएस (मणिपुर पुलिस सर्विस) अधिकारी काम करने और अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हैं, क्योंकि इंफाल घाटी उनके लिए मौत की घाटी बन गई है.

बहरहाल तीन बार के विधायक और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के दामाद राजकुमार इमो सिंह ने बीते 8 सितंबर को सोशल साइट एक्स (पूर्व नाम ट्विटर) पर इन विधायकों पर निशाना साधते हुए एक लंबी पोस्ट लिखी है.

उन्होंने कहा है, ‘ये तथाकथित विधायक दूसरे राज्य के कार्यालय में उपस्थित होते प्रतीत होते हैं. क्या वे सभी हमारे राज्य में शांतिपूर्ण समाधान लाने के प्रति गंभीर हैं? और यह किसी अन्य राज्य के नेता, जिसका एजेंडा अलग है, के साथ चर्चा करके कैसे संभव होगा?’

इमो सिंह पहले कांग्रेस के साथ थे और 2021 में वह भाजपा में शामिल हो गए थे.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि इमो सिंह की पोस्ट कुकी-जो विधायकों की बुधवार (6 सितंबर) को राजधानी आइजोल में मिजोरम के मुख्यमंत्री के साथ बंद कमरे में हुई बैठक के तुरंत बाद आई है.

बैठक में राजनीतिक नेताओं के साथ-साथ कुकी-जो नागरिक समाज संगठनों के कई लोग भी शामिल हुए.

इमो सिंह ने कहा कि अगर ये विधायक अपनी मांग पर अड़े रहे और शांति लाने के प्रति गंभीर नहीं हैं, तो वह उनसे मणिपुर विधानसभा से इस्तीफा देने का आग्रह करेंगे.

उनका बयान मेईतेई और कुकी-जो समुदाय के बीच बीते 3 मई को जारी संघर्ष के कारण पैदा हुए गहरे विभाजन को दर्शाता है, जिसमें करीब 180 लोग मारे गए और 67,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए है.

चार महीने बाद भी सुरक्षा बलों की भारी तैनाती के बावजूद मणिपुर में अस्थिरता बनी हुई है और रोजाना हिंसक हमलों के मामले सामने आ रहे हैं.

इमो सिंह ने कहा, ‘सार्वजनिक पद पर बने रहना, राज्य से वेतन लेना और राज्य से विभाजन और अलगाव की बात करना नैतिक रूप से सही नहीं है.’

उन्होंने कहा कि इन निर्वाचन क्षेत्रों में अन्य आदिवासी समुदायों के विधायकों का होना बेहतर है, जो राज्य की प्रगति के लिए एकजुट होकर काम करने के इच्छुक हों.

इसके अलावा बीते रविवार (10 सितंबर) को इमो सिंह फिर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया है. इस बार उन्होंने जातीय संघर्ष से प्रभावित मणिपुर में ‘समान’ भूमि कानून की मांग की है. इसके लिए उन्होंने अपने साथी विधायकों से सहयोग मांगा है.

सगोलबंद विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले इमो सिंह ने कहा कि 1960 के मणिपुर भूमि राजस्व और भूमि सुधार (एमएलआर और एलआर) अधिनियम को ‘इंफाल घाटी निवासियों के खिलाफ कम कठोर’ बनाने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि राज्य के सभी विधायकों को मौजूदा कानून में संशोधन करने के लिए एक साथ आना चाहिए, जो राज्य की घाटी में रहने वाले लोगों को इसके पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदने की अनुमति नहीं देता है.

उन्होंने मणिपुर भूमि राजस्व और भूमि सुधार अधिनियम, 1960 में संशोधन करने का आह्वान किया और इसे ‘संसद द्वारा बनाए गए अब तक के सबसे अतार्किक, विवादास्पद और पक्षपातपूर्ण कानूनों में से एक’ कहा.

मणिपुर विधानसभा (जिसमें 60 सदस्य हैं) के सभी सदस्यों को लिखे एक पत्र में उन्होंने कहा है कि ‘संसद द्वारा अधिनियमित 1960 अधिनियम घाटी के निवासियों को आदिवासी-बहुल पहाड़ी जिलों में जमीन खरीदने की अनुमति नहीं देता है, जबकि आदिवासी राज्य में कहीं भी जमीन खरीद सकते हैं.’

मणिपुर में चल रहे जातीय संघर्ष के कारक के रूप में से एक मेईतेई लोगों के एक वर्ग की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग को माना जाता है. अगर यह मांग पूरी हो जाती है तो मेईतेई लोग स्वत: ही पहाड़ों में जमीन खरीदने के पात्र हो जाएंगे.

मालूम हो कि मणिपुर हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के बाद बीते 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़क उठी थी. इस आदेश में राज्य सरकार को बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की सिफारिश करने को कहा गया था.

एसटी का दर्जा देने की मेईतेई समुदाय की मांग के विरोध में बीते 3 मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें हुई थीं, जो हिंसा में बदल गई और अब भी जारी हैं.

मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मेईतेई समुदाय की है और ये मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासियों – नगा और कुकी की आबादी 40 प्रतिशत है और ये पर्वतीय जिलों में रहते हैं.

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