राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2021 में 13,089 छात्रों की आत्महत्या से मौत हुई थी, जबकि 2011 में यह संख्या 7,696 थी. 2011 के बाद से भारत में छात्रों द्वारा आत्महत्याओं की संख्या हर साल बढ़ी है.
नई दिल्ली: वर्ष 2011 से 2021 के बीच भारत में आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इस संबंध में समाचार वेबसाइट मनी कंट्रोल की एक रिपोर्ट में जानकारी दी गई है.
यह आकलन कोचिंग सेंटर हब कोटा में 2015 के बाद से सबसे अधिक छात्र आत्महत्या के मामले दर्ज होने और आईआईटी दिल्ली में दो महीनों के भीतर दो दलित छात्रों के आत्महत्या करने के कुछ ही दिनों के भीतर आया है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों में कहा गया है कि 2021 (आत्महत्या पर इसकी नवीनतम रिपोर्ट का वर्ष) में 13,089 छात्रों की आत्महत्या से मौत हो गई.
यह 2011 में दर्ज हुए छात्रों की आत्महत्या के 7,696 मामलों से 70 फीसदी की वृद्धि दर्शाता है. 2011 के बाद से भारत में छात्रों द्वारा आत्महत्याओं की संख्या आम तौर पर हर साल बढ़ी है.
भारत के कुल आत्महत्या पीड़ितों में छात्रों की हिस्सेदारी भी बढ़ी है. यह 2021 में कुल आत्महत्याओं का 8 फीसदी था, जिसमें 2011 के मुकाबले 2.3 फीसदी अंकों की वृद्धि देखी गई.
भारत में छात्र आत्महत्याओं की संख्या और हिस्सेदारी दोनों में वर्ष 2020 में वृद्धि देखी गई.
वहीं एनसीआरबी की भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या (एडीएसआई) रिपोर्ट विशेष रूप से छात्रों के बीच आत्महत्या के रिपोर्ट किए गए कारणों का विवरण प्रदान नहीं करती है, वे आयु समूहों के लिए यह विवरण प्रदान करते हैं.
‘अन्य’ या अज्ञात कारणों को छोड़कर, एनसीआरबी की 2021 एडीएसआई रिपोर्ट में 18 वर्ष से कम उम्र के पीड़ितों के लिए आत्महत्या के सूचीबद्ध कारणों में सबसे आम कारण पारिवारिक समस्याएं थीं (3,233 मामले या इस आयु वर्ग में कुल मामलों का 30 फीसदी).
इसके बाद ‘प्रेम प्रसंग’ (1,495 मामले या कुल मामलों का 14 फीसदी), बीमारी (1408 मामले या कुल मामलों का 13 फीसदी) और ‘परीक्षा में विफलता’ (864 मामले या कुल का 8 फीसदी) का नंबर आता है.
बीमारी के अंतर्गत सूचीबद्ध अधिकांश मामले मानसिक बीमारी (58 फीसदी) के हैं.
एडीएसआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी आयु वर्ग के भारतीयों में से ‘परीक्षाओं में विफलता’ के कारण आत्महत्या करने वालों की हिस्सेदारी औसतन 1.8 फीसदी है.
2021 में 1,673 मामलों में परीक्षा में विफलता को आत्महत्या का कारण बताया गया. इसमें से 991 पीड़ित पुरुष और 682 महिलाएं थीं. 2021 में इस कारण से आत्महत्या करने वालों में एनसीआरबी ने किसी भी ट्रांसजेंडर को नहीं पाया.
एनसीआरबी के डेटा में शहरवार आत्महत्याओं का विवरण भी है. 2019 में – एनसीआरबी की रिपोर्ट का वह साल जब छात्रों की कक्षाएं भौतिक तौर लग रही थीं – ब्यूरो ने कोटा में 136 आत्महत्याएं दर्ज कीं, जिनमें से उसने सात में ‘परीक्षा में विफलता’ को कारण बताया.
इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि कोटा पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में शहर में कुल आठ छात्रों ने आत्महत्या की थी.
अब जब कक्षाएं ऑफलाइन मोड में वापस आ गई हैं, तो कोटा में छात्रों द्वारा आत्महत्याएं फिर से बढ़ गई हैं. कोटा पुलिस के आंकड़ों का हवाला देते हुए एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि छात्र आत्महत्याओं की संख्या 2021 में 0 से बढ़कर 2022 में 15 हो गई.
इस साल अब तक शहर में 23 छात्रों ने आत्महत्या की है (अगस्त में ही चार मामले सामने आ चुके हैं), जो 2015 के बाद से सबसे अधिक है, उस दौरान शहर के पुलिस विभाग के अनुसार 17 छात्रों ने आत्महत्या की थी.
कोटा के जिला प्रशासन ने छात्रावासों और पेइंग गेस्ट आवासों को ‘उनमें पढ़ने/रहने वाले छात्रों को मानसिक सहायता और सुरक्षा प्रदान करने के लिए’ हर कमरे में स्प्रिंग-लोडेड पंखे लगाने का निर्देश दिया है.
सुसाइड प्रिवेंशन ऑफ इंडिया फाउंडेशन के संस्थापक नेल्सन विनोद मोसेस ने मनी कंट्रोल को बताया कि कोविड-19 महामारी के कारण भारत में युवा वयस्कों के बीच मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि हुई है.
वहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की सहायक प्रोफेसर इतिशा नागर ने द वायर को बताया कि छात्रों को परामर्श प्रदान करने के साथ-साथ सामाजिक कारकों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘एक छात्र को सिर्फ काउंसलिंग देने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि समाज एक ‘सफल’ छात्र को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, जो लाखों अन्य छात्रों को हराकर आईआईटी या ऐसी प्रतियोगी परीक्षाओं को पास करता है. हमें एक ऐसे समाज की ज़रूरत है, जहां एक बच्चे का मूल्यांकन उसकी प्रतिभा या पाठ्येतर गतिविधियों या उसके शौक से जुड़ा हो, जिसका वह आनंद ले, न कि अंकों से.’
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