हिंसाग्रस्त मणिपुर संबंधी एक फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट को लेकर राज्य पुलिस द्वारा अपने खिलाफ दायर की गई एफ़आईआर का सामना कर रहे एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में बतया कि सेना के अनुरोध पर उसकी टीम ने वहां का दौरा किया था. पत्र में सेना ने स्थानीय मीडिया पर एक समुदाय के प्रति पक्षपाती होने का आरोप लगाया था.
नई दिल्ली: एक फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट को लेकर मणिपुर पुलिस द्वारा अपने खिलाफ दायर की गई एफआईआर का सामना कर रहे एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने भारतीय सेना के निमंत्रण पर मणिपुर का दौरा किया था.
गिल्ड की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा को 12 जुलाई को लिखे गए सेना के पत्र से पता चलता है कि उसने पत्रकारों के इस संगठन से उसके द्वारा प्रकाश में लाई गईं स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों की जांच करने के लिए कहा था.
पत्र में कहा गया था कि स्थानीय मीडिया तथ्यों को गलत पेश करता रहा है, जो पत्रकारीय नैतिकता के सभी मानदंडों का उल्लंघन करता है और इस कड़ी में आगे की हिंसा भड़कने में इसका प्रमुख योगदान हो सकता है.
जनरल ऑफिसर कमांडिंग के लिए इनफॉरमेशन वारफेयर विंग के कर्नल अनुराग पांडे द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया है कि दैनिक खबरों में ‘एक समुदाय के पक्ष में और दूसरे समुदाय के खिलाफ मीडिया का पूर्वाग्रह स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.’
गिल्ड की रिपोर्ट में भी इस पूर्वाग्रह का जिक्र है.
पत्र में कहा गया है कि इंफाल की मीडिया का ‘तथ्यों का तत्काल प्रकाशन’ क्षेत्र में इंटरनेट प्रतिबंध के बावजूद आगे हिंसा को भड़काने के प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक हो सकता है.
पत्र कहता है, ‘इसलिए मैं अनुरोध करता हूं कि उपरोक्त रिपोर्टों की जांच की जाए, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या इन मीडिया घरानों द्वारा पत्रकारों और मीडिया घरानों के लिए तय दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया है, तदनुसार उचित कार्रवाई की जाए.’
सेना कुछ उदाहरणों का भी हवाला देती है, जहां घटनाओं का उसका संस्करण स्थानीय मीडिया द्वारा प्रस्तुत कथित पक्षपातपूर्ण संस्करणों से भिन्न है. पत्र में कहा गया है, ‘गलत रिपोर्टिंग की संख्या बहुत अधिक होने के कारण हस्ताक्षरकर्ता तीन मामलों का उदाहरण देकर मामले के तथ्यों को स्पष्ट तौर पर स्थापित करना चाहेंगे.’
उदाहरण के तौर पर, पत्र 13 जून को खमेनलोक में हुई एक घटना के बारे में बताता है और अखबारों की कटिंग भी अटैच करता है. संलग्न क्लिप संगाई एक्सप्रेस, पीपुल्स क्रॉनिकल और द इम्फाल फ्री प्रेस की थीं.
पत्र में 9 जून को खोकेन में हुई एक घटना का भी जिक्र करते हुए इसे पत्रकारिता के लिए ‘काला क्षण’ करार दिया गया है. सेना की ओर से कहा गया,
‘9 जून को सुबह 4 बजे खोकेन के कुकी गांव पर पुलिस की वर्दी पहने हथियारबंद बदमाशों ने हमला कर दिया. इस घटना में तीन लोगों की मौत हो गई, जिसमें एक 67 वर्षीय महिला भी शामिल थी, जिसे गांव के चर्च में गोली मार दी गई थी. जब यह खबर फैली कि सेना हमलावरों के साथ मुठभेड़ कर रही है तो बड़ी संख्या में मेईतेई महिलाएं पास के गांव सांगाइथेल में इकट्ठा होने लगीं. 9 जून को दोपहर तक कुकी हैंडल से मृतकों के नाम ट्विटर पर पोस्ट किए गए. कुकी आतंकवादियों द्वारा खोकेन गांव पर हमला और मारे गए सभी लोगों को कुकी आतंकवादी (एक 67 वर्षीय महिला और एक 70 वर्षीय पुरुष) कहा जाना पत्रकारिता में एक और काला क्षण साबित हो सकता है.’
पत्र में आगे कहा गया कि इंफाल के मीडिया आउटलेट द्वारा कवर किया गया घटना का विवरण आर्मी द्वारा संलग्न अखबारों की क्लिप में स्पष्ट रूप से चित्रित है.
सेना द्वारा उद्धृत की गई तीसरी घटना 4 जून को एक कथित एंबुलेंस को जलाने की है. पत्र में कहा गया है, ‘यह घटना इंफाल में पत्रकारिता के पतन की घटना थी, जो इरोइसेंबा इलाके में हुई थी.’
पत्र में घटना को इस प्रकार से बयान किया गया था,
‘एक सात वर्षीय कुकी लड़के को गोली लगने के बाद अस्पताल ले जाया जा रहा था, शाम लगभग 6 बजे मेईतेई लोगों की भीड़ ने उसकी मेईतेई मां और एक अन्य रिश्तेदार के साथ एंबुलेंस के अंदर जिंदा जला दिया. लड़के के पिता कुकी थे और यह रिश्ता पूरे परिवार पर कुकी समुदाय का होने का ठप्पा लगाने के लिए काफी था. भीड़ ने दो महिलाओं और एक बच्चे को एंबुलेंस में जिंदा जला दिया. इंफाल मीडिया ने इस घटना को पूरी तरह से ब्लैक आउट कर दिया, क्योंकि इससे एक समुदाय की छवि खराब होगी. एक घटना जो पहले पन्ने की सुर्खियां होनी चाहिए थी, वह अखबारों से स्पष्ट रूप से गायब थी और इसे नजरअंदाज कर दिया गया. हालांकि इसे 6 जून को कुछ राष्ट्रीय मीडिया पत्रकारों द्वारा उठाया गया और अंतत: 7 जून तक अधिकांश राष्ट्रीय मीडिया पोर्टलों पर यह आया. वहां भी कुकी भीड़ को जलाने की जिम्मेदारी देने का असफल प्रयास किया गया. एक प्रतिष्ठित मीडिया आउटलेट, जिसने गलत संस्करण पेश किया था, को सोशल मीडिया पर गुस्से भरी प्रतिक्रिया के बाद रिपोर्ट में संशोधन करने के लिए मजबूर होना पड़ा.’
यह बताने के लिए कि यह समाचार गायब था, सेना ने संगाई एक्सप्रेस की निम्नलिखित दो छवियां संलग्न कीं, लेकिन उनकी तारीखों का उल्लेख नहीं किया है.
स्थानीय मीडिया जो कर रहा था उसे ‘बड़े पैमाने पर अनैतिक रिपोर्टिंग’ बताते हुए पत्र में कहा गया है कि ‘ऐसे समय में जब दोनों समुदायों के बीच तनाव चरम पर है, स्थानीय मीडिया कम से कम मणिपुर में ‘शांति बहाली का मौका’ दे सकता है.
मालूम हो कि एडिटर्स गिल्ड की रिपोर्ट में कहा गया था कि मणिपुर से आ रही संघर्ष की कई ख़बरें और रिपोर्ट्स ‘एकतरफा’ थीं. गिल्ड की रिपोर्ट में कहा गया था कि इंफाल स्थित मीडिया ‘मेईतेई मीडिया में तब्दील हो गया था.’
रिपोर्ट में कहा गया था, ‘जातीय हिंसा के दौरान मणिपुर के पत्रकारों ने एकतरफा रिपोर्ट लिखीं. सामान्य परिस्थितियों में रिपोर्ट्स को संपादकों या स्थानीय प्रशासन, पुलिस और सुरक्षा बलों के ब्यूरो प्रमुखों द्वारा क्रॉस-चेक और देखा जाता है, हालांकि संघर्ष के दौरान ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं था.’
आगे कहा गया, ‘ये मेईतेई मीडिया बन गया था. ऐसा लगता है कि संघर्ष के दौरान मणिपुर मीडिया के संपादकों ने सामूहिक रूप से एक-दूसरे से परामर्श करके और एक समान नैरेटिव पर सहमत होकर काम किया, मसलन किसी घटना की रिपोर्ट करने के लिए एक समान भाषा पर सहमति, भाषा के विशिष्ट तरह से इस्तेमाल या यहां तक कि किसी घटना की रिपोर्टिंग नहीं करना. गिल्ड की टीम को बताया गया कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि वे पहले से ही अस्थिर स्थिति को और अधिक भड़काना नहीं चाहते थे.’
टीम ने राज्य में लगाए गए इंटरनेट शटडाउन की भी आलोचना की और कहा कि इससे ‘हालात और खराब हुए’ और ‘मीडिया पर भी असर पड़ा, क्योंकि बिना किसी संचार लिंक के एकत्र की गई स्थानीय खबरें स्थिति के बारे में कोई संतुलित दृष्टिकोण देने के लिए पर्याप्त नहीं थीं.’
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