राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग 20-21 सितंबर को नई दिल्ली में 28वें द्विवार्षिक एशिया प्रशांत फोरम सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है. इसके विरोध में क़रीब 2,000 सिविल सोसाइटी संगठनों और व्यक्तियों ने एक बयान जारी करके हाल के समय में सामने आए मानवाधिकार संबंधी मामलों में एनएचआरसी के ढीले रवैये पर भी सवाल उठाए हैं.
नई दिल्ली: करीब 2,000 सिविल सोसाइटी संगठनों और व्यक्तियों ने इस तथ्य की निंदा करते हुए एक बयान पर हस्ताक्षर किए हैं कि एशिया प्रशांत फोरम (एपीएफ) ने भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को दिल्ली में अपने अगले सम्मेलन की मेजबानी करने की अनुमति दी है, बावजूद इसके कि मानवाधिकार संगठनों के वैश्विक गठबंधन इसकी मान्यता स्थगित कर दी है.
मई में कई रिपोर्ट में बताया गया था कि राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों के वैश्विक गठबंधन ने कर्मचारियों और नेतृत्व में विविधता की कमी, नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप, मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच में पुलिस अधिकारियों की भागीदारी, और अन्य कारणों का हवाला देते हुए एनएचआरसी की मान्यता स्थगित कर दी थी. 1999 में अंतरराष्ट्रीय निकाय से मान्यता प्राप्त होने के बाद से यह दूसरी बार था जब इसकी मान्यता को स्थगित किया गया हो.
रिपोर्ट के अनुसार, 1,877 सिविल सोसाइटी संगठनों और व्यक्तियों के बयान में कहा गया है, ‘मार्च 2023 के बाद से एनएचआरसी इंडिया में सिविल सोसाइटी के सदस्यों के साथ बैठक बुलाने का साहस नहीं है, जिससे कि हमारे साथ मिलकर रणनीति तैयार की जा सके और इसके बजाय उसने इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने के लिए एपीएफ सम्मेलन का इस्तेमाल किया है.’
संगठनों ने कहा कि 20-21 सितंबर को नई दिल्ली में 28वें द्विवार्षिक एपीएफ सम्मेलन की मेजबानी एनएचआरसी को अपने निराशाजनक प्रदर्शन को छिपाने के लिए अंतरराष्ट्रीय वैधता का एक मौका देगी.
अपनी विस्तृत प्रेस विज्ञप्ति में संगठनों ने इस तथ्य का हवाला दिया है कि गैरकानूनी गतिविधियां (संरक्षण) अधिनियम (यूएपीए) जैसे आतंकवाद विरोधी कानूनों का इस्तेमाल मानवाधिकार रक्षकों, वकीलों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को निशाना बनाने और चुप कराने के लिए किया गया है, सबसे प्रमुख उदाहरण एल्गार परिषद मामले का है.
विज्ञप्ति में मणिपुर में एनएचआरसी की भूमिका का भी उल्लेख किया गया है.
इसमें कहा गया है, ‘मानवाधिकारों को खतरे में डालने वालीं ऐसी खौफनाक घटनाओं के बावजूद एनएचआरसी चुप था. कुकी-जो समुदाय के सदस्यों के खिलाफ यौन हिंसा की शिकायत के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई शुरू करने के बाद ही एनएचआरसी नींद से जागा और मणिपुर राज्य को नोटिस जारी किया. हाल के वर्षों की सबसे गंभीर मानवाधिकार चुनौतियों में से एक, जिसमें जातीय सफाये (Ethnic Cleansing), यौन अपराध और यहां तक कि संभवतः मानवता के खिलाफ अपराध के आयाम हैं, एनएचआरसी की प्रतिक्रिया (देर से और कमजोर) इसके संवैधानिक और कानूनी दायित्वों से मुंह मोड़ने के समान रही.’
उन्होंने कहा कि अन्य परिस्थितियां जिनमें यह चुप रहा है, वह तब देखी गईं जब ‘सरकार ने मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ-साथ अपने से असहमति व्यक्त करने वालों के घर तोड़ने के लिए उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में बुलडोजर तैनात कर दिए.’
संगठनों ने आगे कहा कि एनएसआरसी पूरे भारत में नियमित तौर पर हो रहे मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराधों की वृद्धि पर भी चुप रहा, साथ ही उन्होंने तीस्ता सीतलवाड जैसे मानवाधिकार रक्षकों और खुर्रम परवेज जैसे पत्रकारों की गिरफ्तारी पर आयोग की चुप्पी के बारे में भी बात की.
इसमें कहा गया है कि जब एनएचआरसी से पूर्व में जुड़े रहे हर्ष मंदर को सरकार ने निशाना बनाया, तब भी एनएचआरसी ने मूक दर्शक बने रहने का फैसला किया.
विज्ञप्ति में निंदा करते हुए कहा गया है, ‘हाल ही में उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष आए पत्रकारों से संबंधित एक भी मामले में एनएचआरसी ने मानवाधिकार रक्षकों की सुरक्षा के लिए एपीएफ की मार्च 2022 की कार्य योजना का पालन करना उचित नहीं समझा. ऐसे कई उदाहरण दिए जा सकते हैं, लेकिन सीधी बात यह है कि आज एनएचआरसी भारत में मानवाधिकारों और कानून के शासन दोनों के जानबूझकर किए जा रहे विनाश का मूकदर्शक बना हुआ है.’
संगठन ने कहा कि एपीएफ सम्मेलन वैश्विक मंच पर एनएचआरसी के लिए अपने पाप धोने का अवसर होगा.
उन्होंने कहा कि एनएचआरसी को मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम के साथ-साथ पेरिस सिद्धांतों द्वारा प्रदत्त जनादेश को पूरा करना चाहिए. विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘हम एपीएफ और एनएचआरआई के सभी अध्यक्षों से भी आह्वान करते हैं कि वे अपने ही सदस्यों में से एक के द्वारा किए जा रहे एपीएफ सम्मेलन के राजनीतिकरण को देखें, जिसका ट्रैक रिकॉर्ड बहुत खराब रहा है.’
साथ ही, इसमें कहा गया है कि इसके खराब ट्रैक रिकॉर्ड का एक संकेतक यह तथ्य भी है कि एनएचआरसी पिछले नौ महीनों से तीन प्रमुख पदों को भरे बिना काम कर रहा है.