केरल के मंत्री द्वारा एक मंदिर में जातिगत भेदभाव का सामना किए जाने की घटना की निंदा

अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले केरल के देवस्वोम और एससी/एसटी कल्याण मंत्री के. राधाकृष्णन ने आरोप लगाया है कि कन्नूर में एक मंदिर के दो पुजारियों ने एक समारोह के दौरान दीपक जलाने के बाद उन्हें दीप सौंपने से इनकार कर दिया था. केरल राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ने घटना की जांच के आदेश दिए हैं.

केरल के मंत्री के. राधाकृष्णन. (फोटो साभार: फेसबुक)

अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले केरल के देवस्वोम और एससी/एसटी कल्याण मंत्री के. राधाकृष्णन ने आरोप लगाया है कि कन्नूर में एक मंदिर के दो पुजारियों ने एक समारोह के दौरान दीपक जलाने के बाद उन्हें दीप सौंपने से इनकार कर दिया था. केरल राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ने घटना की जांच के आदेश दिए हैं.

केरल के मंत्री के. राधाकृष्णन. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: केरल के देवस्वोम और एससी/एसटी कल्याण मंत्री के. राधाकृष्णन ने मंगलवार (19 सितंबर) को खुलासा किया कि कन्नूर में एक मंदिर समारोह में भाग लेने के दौरान उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा, जिसके बाद विभिन्न राजनेताओं ने इस घटना की निंदा की.

अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय से आने वाले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के वरिष्ठ नेता राधाकृष्णन 26 जनवरी को पय्यान्नूर नम्बिअत्रकोव्वल शिव मंदिर के नादापंथल के उद्घाटन के अवसर पर एक दीप प्रज्ज्वलन समारोह के बारे में बात कर रहे थे.

मंत्री ने आरोप लगाया कि मालाबार देवस्वोम बोर्ड के स्वामित्व वाले मंदिर के मुख्य पुजारी उन्हें दीप सौंपने को तैयार नहीं थे और उन्होंने इसे सहायक पुजारी को दे दिया, जिसने इसे फर्श पर रख दिया था.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, राधाकृष्णन ने कहा कि उन्हें पुजारियों और मंदिर के अधिकारियों द्वारा अपमानित महसूस हुआ.

उन्होंने कहा, ‘हमने चंद्रमा पर चंद्रयान भेजा है, लेकिन हमारा दिमाग अभी भी रूढ़िवादी है. हमारे समाज में जाति और धर्म के नाम पर भेदभाव अभी भी मजबूत है.’

उन्होंने कहा, ‘मैं कोई तरजीह नहीं चाहता था. मेरा इरादा इसे विवाद बनाने का नहीं था, लेकिन मैंने समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया व्यक्त की. यह हमारे समाज पर एक धब्बा है.’

केरल राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ने घटना की जांच के आदेश दिए हैं.

द हिंदू के अनुसार, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि इस खबर ने उन्हें स्तब्ध कर दिया है. उन्होंने कहा, ‘राधाकृष्णन देवस्वोम के प्रभारी मंत्री हैं. सरकार ने मामले को गंभीरता से लिया. यह केरल के नागरिक समाज का अपमान है.’

विपक्ष के नेता वीडी सतीसन ने कहा कि मंदिर में राधाकृष्णन के साथ हुए भेदभाव ने केरल की अंतरात्मा को झकझोर दिया था. उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस तरह के कार्यों का समर्थन नहीं करेगी. इसके जिम्मेदार लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने का आह्वान किया.

शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी और डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया ने भी इसी तरह का विचार व्यक्त किया.

इस बीच मंदिर के तंत्री पद्मनाभन उन्नी नंबूथिरीपाद ने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि वास्तव में मंदिर में क्या हुआ था. इस घटना से दोनों पक्षों को ठेस पहुंची है.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, मंदिर के पुजारी और मुख्य पुजारियों के एक निकाय के जवाबी स्पष्टीकरण के बावजूद मंत्री राधाकृष्णन जाति भेदभाव के अपने आरोपों पर कायम हैं. घटना के संबंध में पुलिस की ओर से कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है.

घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मंदिर के पुजारी सुब्रमण्यम नंबूथिरी ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने अनुष्ठान करते समय केवल ‘पवित्रता’ बनाए रखी और किसी के खिलाफ भेदभाव में शामिल नहीं हुए.

उन्होंने कहा, ‘ऐसी स्थिति नहीं होनी चाहिए थी जिससे मंत्री को व्यथित होना पड़े, लेकिन हमने जान-बूझकर कुछ नहीं किया है. यहां जातिगत भेदभाव का कोई सवाल ही नहीं है. मंदिर में पूजा के हिस्से के रूप में हम ऐसा ही करते हैं. मैंने पहले दीपक जलाया और फिर उसे अगले पुजारी को दिया जिसने उसे जमीन पर रख दिया. उन्हें बाद में पूजा करनी थी. मंदिर के अंदर पुजारी को पवित्रता रखनी चाहिए और वह किसी को भी नहीं छू सकता, भले ही वह परिवार का कोई सदस्य या मित्र ही क्यों न हो.’

हालांकि, पुजारी के दावे को मंत्री राधाकृष्णन ने खारिज कर दिया.

मंत्री ने पहले यह भी कहा था कि उनका इस घटना पर कानूनी कार्रवाई करने का इरादा नहीं है. उन्होंने इसे केवल जाति व्यवस्था की बुराइयों के बारे में जनता को जागरूक करने के लिए उठाया है.

इस बीच, मंदिर के पुजारियों के संगठन अखिल केरल तंत्री समाजम ने एक बयान में कहा कि मंत्री ने मंदिर के अनुष्ठानों के लिए पवित्रता बनाए रखने वाले पुजारी के रीति-रिवाजों को जातिगत भेदभाव के रूप में गलत समझा है.

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