मणिपुर में हिंसा की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई समिति ने राज्य सरकार को सुझाव दिया है कि वह उन शवों के परिजनों की पहचान करने के प्रयास करे, जो 3 मई को शुरू हुई जातीय हिंसा के बाद से राज्य के मुर्दाघरों में लावारिस पड़े हैं.
नई दिल्ली: मणिपुर में हिंसा की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक समिति ने राज्य सरकार को सलाह दी है कि वह मरने वाले लोगों की एक सूची प्रकाशित करे और अगर कोई उनके शवों पर दावा करने नहीं आता है, तो उनका ‘सम्मानजनक तरीके’ से अंतिम संस्कार कर दे.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबक, समिति ने एन. बीरेन सिंह सरकार को सलाह दी है कि वह उन शवों के परिजनों की पहचान करने के प्रयास करे जो 3 मई को शुरू हुई जातीय हिंसा के बाद से राज्य के मुर्दाघरों में लावारिस पड़े हुए हैं.
पिछले हफ्ते एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मणिपुर पुलिस ने कहा था कि 96 शव मुर्दाघर में हैं और उन पर दावा नहीं किया गया है. मरने वाले लोगों की आधिकारिक संख्या 175 है. शवों पर दावा राज्य में जातीय विभाजन की राजनीति पर भी निर्भर करता है क्योंकि एक समुदाय के लोग दूसरे समुदाय के नियंत्रण वाले क्षेत्रों से गुजरने में असमर्थ हैं.
इंडियन एक्सप्रेस ने उदाहरण दिया कि कैसे 3 अगस्त तक इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने परिवारों को निर्देश दिया था कि वे शवों पर दावा न करें ताकि सरकार पर दबाव बढ़ाया जा सके कि वह मेईतेई समुदाय के नियंत्रण में आने वाले इंफाल क्षेत्र से शवों के परिवहन में मदद करे.
हालांकि, चूड़ाचांदपुर मुर्दाघर में 35 शव कुकी-ज़ोमी समुदाय के सदस्यों के थे, जो क्षेत्र का प्रभावशाली समुदाय हैं.
जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली समिति, जिसमें दो अन्य महिला जज भी शामिल हैं, ने सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा कि सूची के प्रकाशन के बाद लावारिस पड़े शवों का जिला कलेक्टरों द्वारा सम्मानजनक तरीके से उचित जगहों पर निपटान किया जाए.