केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जोरहाट, गोलाघाट, कार्बी आंगलोंग और दीमा हसाओ से आफस्पा को हटा लिया है. जिन चार ज़िलों में इसकी अवधि बढ़ाई गई है, उनमें डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, शिवसागर और चराइदेव शामिल हैं. असम सरकार ने पिछले महीने केंद्र से सिफ़ारिश की थी कि 1 अक्टूबर से राज्य के बाकी बचे आठ ज़िलों से आफस्पा हटा दी जाए.
नई दिल्ली: असम में सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम यानी आफस्पा के तहत ‘अशांत क्षेत्रों’ को चार जिलों तक सीमित कर दिया गया है और चार अन्य जिलों से हटा लिया गया है.
असम के डीजीपी जीपी सिंह ने गुवाहाटी में राज्य पुलिस दिवस के अवसर पर एक कार्यक्रम के दौरान इसकी घोषणा की. उन्होंने कहा कि राज्य के डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, शिवसागर और चराइदेव जिले 1 अक्टूबर या रविवार से ‘अशांत क्षेत्र’ के रूप में अधिसूचित रहेंगे. ऊपरी असम के ये चार जिले अतीत में उग्रवादी समूह उल्फा के गढ़ रहे हैं.
उन्होंने आगे कहा कि ‘अशांत क्षेत्र’ का टैग, जो आफस्पा को लागू करने की अनुमति देता है, चार अन्य जिलों से हटा लिया गया है, जो जोरहाट, गोलाघाट, कार्बी आंगलोंग और दीमा हसाओ हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, ‘अशांत क्षेत्र’ की अधिसूचना छह महीने के लिए लागू है, जिसके बाद इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा बढ़ाया जा सकता है. आखिरी बार इन आठ जिलों में अधिसूचना 1 अप्रैल को बढ़ाई गई थी.
‘अशांत क्षेत्र’ अधिसूचना 1990 से पूरे असम में लागू की गई थी. हालांकि, पिछले साल केंद्र ने 9 जिलों और एक अन्य जिले के एक उप-संभाग को छोड़कर पूरे राज्य से आफस्पा के तहत ‘अशांत क्षेत्र’ अधिसूचना को हटा दिया था. इस साल मार्च में इसे राज्य के एक और जिले से हटा लिया गया था.
‘राज्य की सुरक्षा स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार और उसके बाद त्वरित विकास’ को देखते हुए असम सरकार ने पिछले महीने केंद्र से सिफारिश की थी कि 1 अक्टूबर से शेष सभी आठ जिलों से अशांत क्षेत्र अधिसूचना हटा दी जाए.
विवादास्पद सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम (आफस्पा), 1958 अशांत क्षेत्रों में काम करने वाले सशस्त्र बलों के कर्मचारियों को अभियान चलाने और बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने की व्यापक शक्तियां देता है. यह सुरक्षा बलों को गिरफ्तारी और अभियोजन से छूट भी देता है.
यह सशस्त्र बलों को ‘किसी भी कानून या आदेश के उल्लंघन में काम करने वाले किसी भी व्यक्ति’ के खिलाफ ‘गोली चलाने या बल प्रयोग करने, यहां तक कि उसे जान से मार देने’ का अधिकार भी देता है, अगर उन्हें लगता है कि ऐसा करना आवश्यक है. यह केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना अधिनियम के तहत कार्य करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की भी अनुमति नहीं देता है.