राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के तहत अंडर ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड (यूजीएमईबी) द्वारा 2022-23 में 246 कॉलेजों के मूल्यांकन में यह जानकारी सामने आई है. इसके अनुसार, देश के किसी भी मेडिकल कॉलेज में पर्याप्त फैकल्टी सदस्य या सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर नहीं थे और ये सभी 50 प्रतिशत उपस्थिति की आवश्यकता को पूरा करने में विफल रहे हैं.
नई दिल्ली: एमबीबीएस पाठ्यक्रम चलाने के लिए मान्यता देने वाले शीर्ष चिकित्सा शिक्षा नियामक राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के एक मूल्यांकन में पता चला है कि किसी भी मेडिकल कॉलेज में पर्याप्त फैकल्टी सदस्य या वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टर नहीं थे और सभी 50 प्रतिशत उपस्थिति की आवश्यकता को पूरा करने में विफल रहे हैं.
एनएमसी के तहत अंडर ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड (यूजीएमईबी) द्वारा 2022-23 में 246 कॉलेजों का मूल्यांकन किया गया है, जिसमें यह जानकारी सामने आई है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एनएमसी की ओर से एसोसिएशन ऑफ इमरजेंसी फिजिशियन ऑफ इंडिया (एईपीआई) को लिखे पत्र में कहा गया है, ‘अधिकांश कॉलेजों में या तो घोस्ट फैकल्टी (जो अधिकारियों द्वारा निरीक्षण के दौरान दिखाई देते हैं और निरीक्षण समाप्त होते ही गायब हो जाते हैं) और सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर थे या आवश्यक फैकल्टी को नियोजित ही नहीं किया था. साथ ही कोई भी संस्थान न्यूनतम 50 प्रतिशत उपस्थिति की आवश्यकता को पूरा नहीं कर रहा था. शून्य उपस्थिति आम बात थी.’
आधार आधारित बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली का उपयोग करके लगभग दो महीने तक कार्य दिवसों के दौरान फैकल्टी सदस्यों की उपस्थिति की रैंडम निगरानी की गई थी.
बोर्ड के अनुसार, 134 कॉलेज ऐसे थे, जिनमें आपातकालीन चिकित्सा विभाग ‘कागज पर’ थे, जबकि जमीनी हकीकत अलग थी.
पत्र के अनुसार, ‘हमें पता चला कि कोई भी छात्र नियमित रूप से आपातकालीन चिकित्सा विभाग में नहीं जाता है, क्योंकि विभाग में आकस्मिक चिकित्सा अधिकारी के अलावा उनसे बातचीत करने वाला कोई नहीं है. इस विभाग में पोस्टिंग को छात्रों के लिए ब्रेक (विराम) की एक अवधि माना जाता है.’
भारत के आपातकालीन चिकित्सकों के संघों ने एनएमसी को पत्र लिखकर नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना के लिए आवश्यकता के रूप में आपातकालीन चिकित्सा विशेषज्ञता न रखने के संबंध में शिकायत की थी. मेडिकल कॉलेजों को 2022-23 बैच के बाद से आपातकालीन चिकित्सा विशेषज्ञता अनिवार्य करने की आवश्यकता थी, बाद में फैकल्टी की कमी के कारण चिकित्सा आयोग द्वारा इस आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया.
आगे कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों में आपातकालीन चिकित्सा विभाग वाले मेडिकल कॉलेज अस्पतालों की संख्या 45 से बढ़कर 134 हो गई है.