एनडीपीएस, यूएपीए के मामलों में ज़मानत अपवाद है, नियम नहीं: त्रिपुरा हाईकोर्ट

अदालत की ये टिप्पणियां त्रिपुरा सरकार की याचिका पर सुनवाई के दौरान की गईं, जिसमें एनडीपीएस अधिनियम के एक मामले में तीन आरोपियों को दी गई ज़मानत रद्द करने की मांग की गई थी. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि अदालतों को एनडीपीएस और यूएपीए अधिनियम की कठोरता को नहीं भूलना चाहिए.

त्रिपुरा हाईकोर्ट. (फोटो साभार: http://thc.nic.in)

अदालत की ये टिप्पणियां त्रिपुरा सरकार की याचिका पर सुनवाई के दौरान की गईं, जिसमें एनडीपीएस अधिनियम के एक मामले में तीन आरोपियों को दी गई ज़मानत रद्द करने की मांग की गई थी. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि अदालतों को एनडीपीएस और यूएपीए अधिनियम की कठोरता को नहीं भूलना चाहिए.

त्रिपुरा हाईकोर्ट. (फोटो साभार: http://thc.nic.in)

नई दिल्ली: त्रिपुरा हाईकोर्ट ने कहा है कि ‘जेल नहीं जमानत’ का सामान्य नियम नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस एक्ट) और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज मामलों में आरोपियों पर लागू नहीं होता है.

बार एंड बेंच के मुताबिक, जस्टिस अरिंदम लोध ने कहा कि एनडीपीएस अधिनियम के मामलों में कानून के कड़े प्रावधान जमानत को एक नियम के बजाय एक अपवाद बनाते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर इस बात पर प्रकाश डाला है कि ‘अनावश्यक गिरफ्तारी’ को रोकने के लिए जमानत एक नियम होना चाहिए और जेल एक अपवाद होना चाहिए. यह सिद्धांत पहली बार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 1978 में राजस्थान राज्य बनाम बालचंद उर्फ बलिया मामले में ऐतिहासिक फैसले के दौरान निर्धारित किया गया था.

हालांकि, जस्टिस लोध ने कहा कि एनडीपीएस और यूएपीए मामलों में जेल की सजा का नियम है. जस्टिस लोध ने कहा, ‘…अदालतों को एनडीपीएस और यूएपीए अधिनियम की कठोरता को नहीं भूलना चाहिए जहां यह अब तक अच्छी तरह से स्थापित हो चुका है कि जमानत नियम नहीं है, बल्कि एक अपवाद है.’

उन्होंने एनडीपीएस मामलों से निपटने वाली निचली अदालतों द्वारा ‘गैर-जिम्मेदाराना और अनियंत्रित तरीके से’ प्रक्रियात्मक उल्लंघन के आधार पर आरोपी व्यक्तियों को जमानत देने पर भी आपत्ति जताई. उन्होंने स्पष्ट किया कि एनडीपीएस और यूएपीए मामलों में आरोपियों की जमानत याचिका पर निर्णय लेते समय प्रक्रियात्मक उल्लंघन या अनियमितताओं पर विचार नहीं किया जाना चाहिए.

जस्टिस लोध ने कहा कि एनडीपीएस मामलों में प्रक्रियात्मक मुद्दों का हवाला देकर जमानत देना एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 का उल्लंघन है. अधिनियम की विशेष धारा जमानत देने के संबंध में सीमाएं तय करती है. न्यायाधीश ने कहा कि प्रक्रियात्मक उल्लंघनों पर केवल सुनवाई के चरण के दौरान ही विचार किया जाना चाहिए, जमानत के चरण पर नहीं.

अदालत की ये टिप्पणियां त्रिपुरा सरकार की याचिका पर सुनवाई के दौरान की गईं, जिसमें एनडीपीएस मामले में तीन आरोपियों को दी गई जमानत रद्द करने की मांग की गई थी. सरकार ने कहा था कि आरोपियों को दी गई जमानत एनडीपीएस अधिनियम का उल्लंघन है, साथ ही आरोप लगाया था कि आरोपी अवैध पदार्थों के व्यापार में आदतन अपराधी हैं.

हाईकोर्ट ने कहा, ‘विशेष न्यायाधीश ने एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 में सन्निहित सभी शर्तों पर विचार नहीं किया और आरोपी-प्रतिवादियों को इस गलत धारणा पर जमानत पर रिहा कर दिया कि चूंकि प्रक्रियात्मक उल्लंघन/अनियमितताएं थीं, इसलिए आरोपी-प्रतिवादी जमानत का लाभ पाने के हकदार हैं.’

राज्य सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को जमानत पर रिहा करने में अधिनियम के प्रावधानों को ‘पूरी तरह से गलत दिशा में निर्देशित किया और गलत तरीके से पढ़ा.’ अदालत ने जमानत पर रिहा दोनों आरोपियों को आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया, जबकि तीसरा आरोपी अभी भी एक अन्य मामले में जेल में है.

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