कछार ज़िले की दुलुबी बीबी की नागरिकता साल 1997 के विधानसभा चुनाव की वोटर्स लिस्ट में दर्ज नाम के आधार पर संदिग्ध मानी गई थी और 2017 में उन्हें फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने ‘विदेशी’ घोषित कर दिया था. वे दो साल डिटेंशन सेंटर में रहीं. अब ट्रिब्यूनल ने उनके द्वारा दिए गए दस्तावेज़ों को सही माना है.
नई दिल्ली: साल 2017 में असम के सिल्चर के विदेशी न्यायाधिकरण (फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल- एफटी) द्वारा ‘अवैध अप्रवासी’ घोषित किए जाने के छह साल बाद अब भारतीय मान लिया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, 48 वर्षीय दुलुबी बीबी को एक एफटी ने मतदाता सूची में उनके नाम से जुड़ी विसंगतियों के चलते ‘विदेशी’ घोषित किया गया था और एक डिटेंशन सेंटर में भेज दिया गया जहां उन्होंने दो साल बिताए.
राज्य के कछार जिले के खासपुर गांव की रहने वाली बीबी पहली बार 1997 के उधरबोंड विधानसभा क्षेत्र की वोटर लिस्ट के रिवीज़न के दौरान निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी की जांच के दायरे में आईं. मसौदा लिस्ट में उनका नाम दुलुबी बीबी लिखा था, लेकिन इससे पहले की मतदाता सूची में नाम यह नहीं था, जिससे उनकी नागरिकता पर संदेह होने का दावा किया गया.
इसके अगले साल अवैध प्रवासी (न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारण) अधिनियम के तहत एक केस दर्ज किया गया था, लेकिन उन्हें एफटी का नोटिस साल 2015 में मिला.
इसके बाद 20 मार्च, 2017 को ट्रिब्यूनल ने उन्हें ‘विदेशी’ घोषित कर दिया यानी वे लोग जो 25 मार्च, 1971 के बाद देश में पहुंचे थे.
ज्ञात हो कि 1985 में असम में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेतृत्व में चला असम आंदोलन असम समझौते पर खत्म हुआ था, जिसके अनुसार 25 मार्च 1971 के बाद राज्य में आए लोगों को विदेशी माना जाता है. नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के मुताबिक, राज्य में प्रवेश के लिए कट-ऑफ तारीख 24 मार्च 1971 है, जिसका अर्थ है कि जो लोग इसके बाद आए उन्हें ‘अवैध अप्रवासी’ माना जाएगा. अंतिम एनआरसी भी इसी कट-ऑफ तारीख को मानती है.
2017 में विदेशी घोषित किए जाने के बाद बीबी 1965 की मतदाता सूचियों, जिसमें उनके दादा और पिता के नाम शामिल थे, के साथ गौहाटी हाईकोर्ट पहुंचीं. इस साल अप्रैल में अदालत ने स्वीकार किया कि सूचियों में उनके परिजनों के नामों की निरंतरता की पुष्टि की जानी चाहिए.
अदालत ने बीबी द्वारा रखे गए तथ्यों की जांच और सत्यापन करने और उसके अनुसार आदेश पारित करने के लिए मामले को वापस ट्रिब्यूनल को भेज दिया.
अब छह साल बाद यह साबित पाया गया कि 1997 की मतदाता सूची में दर्ज दुलुबी बीबी वही व्यक्ति थीं, जिनका नाम साल 1993 की मतदाता सूची में दुलबजन बेगम के नाम से दर्ज था और उनके पिता और दादा का विवरण 1965 की मतदाता सूची में देखा जा सकता है.
7 अक्टूबर के आदेश में सिलचर में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल 3 ने कहा कि प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर उनके (बीबी के) परिवार के सदस्यों के संबंधों की बहुत विस्तृत जानकारी मिली, जो परिवार की निरंतरता का खुलासा करती है और उन्हें भारतीय नागरिक घोषित कर दिया.
हालांकि, 27 अप्रैल 2020 को जमानत पर रिहा होने से पहले बीबी ने सिलचर में एक डिटेंशन सेंटर में दो साल बिताए.
एफटी के फैसले के बाद उन्होंने अख़बार से कहा, ‘मुझे दो साल, दस दिन तक हिरासत में क्यों रखा गया? उस दर्द और कठिनाई के लिए कौन जिम्मेदार है?’
उन्होंने बताया कि जमानत पर रिहा होने के बाद भी उनकी मुश्किलें ख़त्म नहीं हुईं क्योंकि उन्हें सुनवाई के लिए सिलचर आना-जाना पड़ता था. बीबी कहती हैं कि वे उनके पति के बिना अकेले ही सफर किया करती थीं, क्योंकि वे दो लोगों के सफर का खर्चा नहीं सकते थे. उन्होंने बताया कि यात्रा पर उन्हें लगभग 600 रुपये खर्च करने होते थे.
बीबी के केस में मदद करने वाले सिलचर के सामाजिक कार्यकर्ता कमल चक्रवर्ती कहते हैं, ‘समस्या विभिन्न मतदाता सूचियों में विसंगतियों की है. देशभर में लोगों ने कभी नहीं देखा कि वोटिंग लिस्ट में उनका नाम कैसे लिखा है, लेकिन इस बात का उन लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ता है जिनकी नागरिकता संदेह के घेरे में है.’
असम में छह डिटेंशन सेंटर हैं, जहां विदेशी घोषित किए जा चुके या संदिग्ध विदेशियों को रखा गया है. यह सेंटर राज्य की छह जेलों- तेजपुर, डिब्रूगढ़, जोरहाट, सिलचर, कोकराझार और गोआलपाड़ा में बने हैं.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल 15 मार्च तक गोआलपाड़ा में ‘अवैध विदेशियों’ के लिए बने डिटेंशन केंद्र में 185 ‘घोषित विदेशी नागरिक बंद थे.