मणिपुर में 3 मई को हिंसा भड़कने के बाद मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसे 23 सितंबर को कुछ समय के लिए बहाल किया गया था, लेकिन 26 सितंबर को दो लापता युवाओं के शवों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर आने के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों के मद्देनज़र फिर से प्रतिबंध लगा दिया गया.
नई दिल्ली: मणिपुर सरकार ने गुरुवार (26 अक्टूबर) को राज्य में इंटरनेट शटडाउन को अगले पांच दिनों के लिए यानी 31 अक्टूबर तक बढ़ा दिया. हालांकि, मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने 18 अक्टूबर को कहा था कि चार या पांच दिनों के भीतर राज्य में इंटरनेट बहाल किया जाएगा.
रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार की एक अधिसूचना के अनुसार, ‘इस आशंका के बाद प्रतिबंध बढ़ा दिया गया है कि कुछ असामाजिक तत्व जनता की भावनाओं को भड़काने वाली तस्वीरें, नफरत भरे भाषण और वीडियो प्रसारित करने के लिए बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिसका कानून और व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर असर हो सकता है.’
आयुक्त (गृह) टी. रणजीत सिंह द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि 25 अक्टूबर के पत्र के माध्यम से पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने बताया था कि अभी भी सुरक्षा बलों के साथ जनता के टकराव, निर्वाचित सदस्यों और थानों के सामने विरोध प्रदर्शन जैसी हिंसा की घटनाएं सामने आती रहती हैं.
इंटरनेट शटडाउन अधिसूचना में कहा गया है, ‘सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से दुष्प्रचार और अफवाहें फैलाकर राष्ट्र-विरोधी और समाज-विरोधी लोगों के मंसूबों और गतिविधियों को विफल करने, शांति और सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने तथा जानमाल की हानि को रोकने के लिए, जनहित में कानून और व्यवस्था बनाए रखने को लेकर पर्याप्त उपाय करना आवश्यक हो गया है.’
राज्य में 3 मई को हिंसा भड़कने के बाद मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसे 23 सितंबर को कुछ समय के लिए बहाल किया गया था, लेकिन 26 सितंबर को दो लापता युवाओं के शवों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आने के बाद विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर फिर से प्रतिबंध लगा दिया गया.
वहीं, मणिपुर के शांतिपूर्ण इलाकों में इंटरनेट सेवाओं की तत्काल बहाली की मांग को लेकर ऑल नगा स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने राज्य के नगा-बसाहट वाले इलाकों में 24 अक्टूबर से सरकारी कार्यालयों पर धरना शुरू किया है.
जहां सरकार ने दावा किया है कि अफवाहें फैलाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल किया गया था, जमीनी रिपोर्ट और विशेषज्ञों की राय कुछ और ही बताती है. इस के आलोचकों का कहना है कि इंटरनेट पर प्रतिबंध ने सूचना के प्रवाह में बाधा उत्पन्न की है, जिससे हिंसा के वास्तविक पैमाने का पता चल सकता था. पूर्ण प्रतिबंध से आपातकालीन सेवाएं भी प्रभावित हुई हैं. इसने राज्य के लोगों के लिए दैनिक जीवन और व्यवसाय को भी कठिन बना दिया है.
एक ग्राउंड रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट के न होने से ‘समाचार और घटनाओं के अपडेट अक्सर अस्पष्ट होते हैं, जिसके बाद सत्ता में बैठे लोगों द्वारा अपनी सुविधा के अनुसार एक विशेष नैरेटिव से संबंधित जानकारी मुहैया कराई जाती है.
भारत में सरकारें इंटरनेट सेवाएं बंद करने के लिए बदनाम हैं. एक हालिया रिपोर्ट में ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) ने दुनिया की ‘इंटरनेट शटडाउन की राजधानी’ के रूप में भारत के रिकॉर्ड की जांच की थी. इसमें पाया गया कि इंटरनेट शटडाउन लोगों के भोजन, काम, शिक्षा और स्वास्थ्य के अधिकारों को प्रभावित करता है, जो भारतीय राज्य और कानून द्वारा सक्षम है और भारत के अंतरराष्ट्रीय कानूनी दायित्वों के विपरीत है.
वैश्विक डिजिटल अधिकार समूह ‘एक्सेस नाउ’ द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चलता है कि भारत ने 2022 में कम से कम 84 शटडाउन लागू किया, जो किसी भी लोकतांत्रिक देश में सबसे अधिक है. यह लगातार 5वां वर्ष है, जब भारत को जान-बूझकर इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने वाले देशों में शीर्ष स्थान मिला है.