अयोध्या: सरकारी ‘दिव्य’ दीपोत्सव तीर्थ पुरोहितों को भारी क्यों पड़ रहा है?

11 नवंबर को अयोध्या में होने वाले सरकारी दीपोत्सव को दीपों की संख्या के लिहाज़ से रिकॉर्डतोड़ और ‘दिव्य’ बनाने के लिए सप्ताह भर पहले ही सरयू के पक्के घाट से तीर्थ पुरोहितों की झोपड़ियां उजाड़कर तख़्त हटा दिए गए, जिसके चलते श्रद्धालुओं को सरयू के घाट पर पूजा-पाठ आदि कराकर जीविकोपार्जन करने वाले इन लोगों की आजीविका का ज़रिया छिन गया है.

/
सरयू के घाट पर दीपोत्सव की तैयारी. (फोटो साभार: फेसबुक/@AyodhyaDevelopmentAuthority)

11 नवंबर को अयोध्या में होने वाले सरकारी दीपोत्सव को दीपों की संख्या के लिहाज़ से रिकॉर्डतोड़ और ‘दिव्य’ बनाने के लिए सप्ताह भर पहले ही सरयू के पक्के घाट से तीर्थ पुरोहितों की झोपड़ियां उजाड़कर तख़्त हटा दिए गए, जिसके चलते श्रद्धालुओं को सरयू के घाट पर पूजा-पाठ आदि कराकर जीविकोपार्जन करने वाले इन लोगों की आजीविका का ज़रिया छिन गया है.

सरयू के घाट पर दीपोत्सव की तैयारी. (फोटो साभार: फेसबुक/@AyodhyaDevelopmentAuthority)

अयोध्या: जहां नगरी के कई मंदिरों के पुजारी व कर्ताधर्ता श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट की देख-रेख में निर्माणाधीन राम मंदिर की ‘भव्यता’ के साइड इफेक्ट्स के छोटे मंदिरों पर भारी पड़ने के अंदेशे से हलकान हैं, वहीं आगामी सरकारी ‘दिव्य’ दीपोत्सव नगरी के तीर्थपुरोहितों पर भारी पड़ता दिख रहा है.

एक ओर अगली 22 जनवरी को प्रस्तावित रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के मद्देनजर उत्तर प्रदेश सरकार व स्थानीय प्रशासन आगामी ग्यारह नवंबर के सरकारी दीपोत्सव को दीपों की संख्या के लिहाज से रिकॉर्डतोड़ और ‘दिव्य’ बनाने के लिए कुछ भी उठा नहीं रख रहे, तो दूसरी ओर इस ‘कुछ भी उठा न रखने’ का साइड इफेक्ट यह है कि दीपोत्सव की जगर-मगर के सप्ताह भर पहले ही सरयू के पक्के घाट से तीर्थपुरोहितों की झोपड़ियां उजाड़कर तख्त हटा दिए गए हैं.

ज्ञातव्य है कि तीर्थ पुरोहितों को पंडों के तौर पर भी जाना जाता है और वे अयोध्या आने वाले श्रद्धालुओं व तीर्थयात्रियों के लिए सरयू के घाट पर पूजा-पाठ व दान-पुण्य वगैरह कराकर जीविकोपार्जन करते आए हैं. लेकिन अयोध्या नगर निगम के प्रवर्तन दल ने गत रविवार को अचानक कार्रवाई कर घाट से उनके तख्ते हटा व झोपड़ियां उजाड़कर दीपोत्सव संपन्न होने तक के लिए वहां पूजापाठ कराकर जीविका अर्जित करने का जरिया उनसे छीन लिया.

मनमानी से अंधेरी हो गई दीपावली

तीर्थपुरोहित समिति के अध्यक्ष ओमप्रकाश पांडे का कहना है कि इस तरह अनेक तीर्थपुरोहितों की दीपावली अंधेरी हो गई है. पांडे के अनुसार नगर निगम के प्रवर्तन दल ने यह मनमानी तब की, जब पिछले वर्षों में विकसित आपसी समझ के तहत दीपोत्सवों पर तीर्थपुरोहित अपनी ओर से सहयोग करते हुए खुद ही अपनी झोपड़ियां व तख्त वगैरह हटा लिया करते थे. लेकिन इस बार नगर निगम के प्रवर्तन दल ने न उन्हें इसका मौका दिया, न विश्वास में लिया, न ही चेताया और सप्ताहभर पहले ही अचानक उजाड़ कर रख दिया. अब उनके समक्ष ऐसी स्थिति खड़ी हो गई है कि जब अयोध्या सरकारी दीपोत्सव की जगर-मगर से नहा रही होगी, वे इस चिंता से जूझ रहे होंगे कि उनके परिवारों के लोग दीपावली कैसे मनाएं.

वे बताते हैं कि इस कार्रवाई से तीर्थपुरोहित ही नहीं, दान-पुण्य व धर्म-कर्म के लिए घाट पर आने वाले तीर्थयात्री भी असुविधा में पड़ेंगे, क्योंकि तीर्थ पुरोहितों की अनुपस्थिति में उनके ये कार्य संभव ही नहीं हो पाएंगे.

बहरहाल, तीर्थपुरोहितों को यों उजाडे़ जाने का दूसरा पहलू यह है कि वे दशकों से सरयू के घाटों की जामिनदारी प्रथा से पीड़ित हैं. इस प्रथा के तहत उन्हें घाट पर अस्थायी झाोपड़ियां बनाने व तख्त वगैरह रखने और पूजापाठ कराने के लिए उन जामिनदारों को हर साल तयशुदा धनराशि देनी पड़ती है, जो घाट की भूमि को अपनी बताते हैं.

लेकिन इस अदायगी के बदले में उन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिलती. घाट पर उनकी जगह बदल जाए तो यजमानों के उन तक पहुंचने में बाधा पड़ती है, जबकि अपनी पुरानी जगह बनाये रखने के लिए उन्हें कभी पुलिस को झेलना पड़ता है और कभी नगर निगम (पहले नगरपालिका) को. इतना ही नहीं, जगह बदलने के अंदेशे से अपनी खास पहचान वाले झंडे भी रखने व लगाने पड़ते हैं. मिसाल के तौर पर, आपको किसी तीर्थपुरोहित के तख्ते पर किसी झंडे पर लिखा हुआ मिल सकता है: कड़ेबाज पंडा, पान फूल का झंडा.

उजाड़े जाने से पहले अयोध्या के एक घाट. (फोटो: करण प्रजापति)

जब राजनारायण ने दिया साथ

अस्सी के दशक में बनारसीलाल नाम के तत्कालीन समाजवादियों से जुड़े तीर्थ पुरोहित ने इस सबके विरुद्ध आवाज उठाई और धरने-प्रदर्शन व आंदोलन पर उतरा तो वरिष्ठ समाजवादी नेता राजनारायण ने उसके समर्थन में अयोध्या आकर ऐलान किया था कि धर्म के नाम पर यह अधर्म किसी भी हालत में नहीं चलने दिया जाएगा. लेकिन बाद में विभिन्न कारणों से वह आंदोलन अपनी मंजिल नहीं पा सका.

उसके दशकों बाद हिंदुत्ववादियों का जोर बढ़ा तो इन तीर्थ पुरोहितों का एक हिस्सा अपनी समस्याओं के समाधान के लिए भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिंदू परिषद से लौ लगा बैठा और उनके राम मंदिर आंदोलन को आशाभरी निगाह से देखते हुए उनका प्रचारक बन गया.

लेकिन उनकी सरकारों के दौर में भी, जब भव्य राम मंदिर का निर्माण जोरों पर है, उनके समुदाय को निराशा ही हाथ आई है. अब, जब सरकारी दावा है कि अयोध्या में 32 हजार करोड़ रुपयों की सरकारी योजनाएं संचालित की जा रही हैं, तब भी इन पुरोहितों की समस्याएं या तो जस की तस बनी हुई हैं या पहले से ज्यादा जटिल हो गई हैं.

समाजवादी विचार मंच के प्रदेश संयोजक अशोक ने दीपावली से पहले तीर्थ पुरोहितों की झोपड़ियां व तख्त हटाने की यह कहकर निंदा की है कि अयोध्या में दीपावली पर एक दीप उस घूर गड्ढे को भी दान किया जाता है, जिसमें यों साल भर घर गृहस्थी के उच्छिष्टों और ढोरों के गोबर आदि को सड़ाया जाता रहता है. ऐसे में बेहतर होता कि दीपोत्सव में इन पुरोहितों की झोपड़ियों व तख्तों को हटाने के बजाय उन पर भी दीपदान किया जाता.

दीपावली किसी को भी अंधेरे में न रहने देने के सिद्धांत के चलते खेत खलिहानों, कोठारों, हलों-जुआठों के साथ गायों-बैलों के बांधे जाने की जगहों, खूंटों, सानी-पानी की नांदों और चरनियों पर भी दीपदान किए जाते हैं.

दीपोत्सव का दायरा बढ़ा

इस बीच स्थानीय डाॅ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय (जो ‘परंपरा’ के अनुसार दीपोत्सव के समन्वयन में केंद्रीय भूमिका निभाता रहा है.) की कुलपति प्रो. प्रतिभा गोयल ने राम की पैड़ी पर दीपोत्सव की सफलता के लिए मुख्य यजमान के रूप में पूजा अर्चना की तो दीपोत्सव को अपने कर्तव्य से जोड़ा और कहा कि यह कर्तवय निभाकर उन्हें खुशी मिलेगी. इस सिलसिले में उन्होंने कई बड़े दावे भी किए और कहा कि इसके लिए विश्वविद्यालय द्वारा बनाई गई समन्वयकों की टीम पूरी तन्मयता से काम कर रही है.

एक अन्य जानकारी के अनुसार, इस बार दीपोत्सव की परिधि का विस्तार किया गया है और राम की पैड़ी व चौधरी चरण सिंह घाट सहित सभी घाटों पर कुल इक्कीस लाख दीप जलाए जाएंगे. ताकि गिनीज बुुक का नया रिकॉर्ड बनाया जा सके. इस काम में कोई 25 हजार वॉलंटियर लगेंगे और विश्वविद्यालय को इस हेतु दो करोड़ रुपये दिए गए हैं. घाटों पर दीपों को बिछाने का कार्य शुरू कर दिया गया है और 10 नवंबर तक पूरा कर लिया जाएगा ताकि सुगमता से उनकी गिनती की जा सके.

भ्रष्टाचार की भी शिकायतें

दूसरे पहलू पर जाएं, तो उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने विश्वविद्यालय के पूर्ववर्ती कुलपति प्रोफेसर रविशंकर सिंह के विरुद्ध गोपनीय जांच के बाद गत वर्ष एक जून को उनसे अचानक इस्तीफा मांग लिया तो कहा जाता है कि उनके विरुद्ध विश्वविद्यालय में विभिन्न पदों पर की गई एक सौ से ज्यादा नियुक्तियों में भ्रष्टाचार के साथ ही दीपोत्सव में भी घपले की शिकायतें थीं और उनके कुलपतिकाल में विश्वविद्यालय में चार ही काम हुआ करते थे- प्रवेश, परीक्षा, नियुक्तियां और दीपोत्सव.

हालांकि, प्रो. सिंह ने तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की बहुप्रचारित अयोध्या यात्रा से पहले अगस्त, 2021 में राष्ट्रपति भवन जाकर उनको राम मंदिर का भव्य माॅडल भेंटकर के भरपूर चर्चाएं बटोरी थीं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)