मणिपुर में कुकी-ज़ो लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने तेंगनौपाल, कांगपोकपी और चुराचांदपुर ज़िलों में ‘स्व-शासन’ की घोषणा की है. आईटीएलएफ के एक नेता ने कहा कि हमें ‘मेईतेई मणिपुर सरकार’ से कोई उम्मीद नहीं है और अगर केंद्र हमें मान्यता नहीं देता है तो हमें कोई परवाह नहीं है.
नई दिल्ली: मणिपुर में कुकी-जो आदिवासी लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने अपने समुदाय के प्रभुत्व वाले जिलों में ‘स्व-शासन’ की घोषणा की है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, आईटीएलएफ के एक नेता ने कहा कि आदिवासी समुदाय का एक अलग मुख्यमंत्री होगा और समुदाय के उन सरकारी अधिकारियों को जिम्मेदारियां दी जाएंगी, जिन्हें 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद राज्य की राजधानी इंफाल से बाहर कर दिया गया था.
आईटीएलएफ के महासचिव मुआन टॉम्बिंग ने बुधवार (15 नवंबर) को द हिंदू को बताया कि केंद्र सरकार के ‘चयनात्मक न्याय’ (Selective Justice) के मद्देनजर उन्हें यह कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
उन्होंने कहा, ‘अगर केंद्र हमें मान्यता नहीं देता है तो हमें कोई परवाह नहीं है. इस योजना पर पिछले एक महीने से चर्चा चल रही है. तेंगनौपाल, कांगपोकपी और चुराचांदपुर जिलों में कुकी-जो लोगों का स्वशासन होगा. हमें ‘मेईतेई मणिपुर सरकार’ से कोई उम्मीद नहीं है.’
इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
टॉम्बिंग ने कहा कि अगस्त में संसद में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा कुकी-जो लोगों को ‘बाहरी’ कहा गया था. उन्होंने भविष्य में शाह से मिलने से इनकार कर दिया.
आईटीएलएफ ने बीते 3 मई से गृह मंत्रालय (एमएचए) के अधिकारियों के साथ कई दौर की बातचीत की है. पिछले हफ्ते इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के अधिकारियों की एक टीम और गृह मंत्रालय के सलाहकार (पूर्वोत्तर) एके मिश्रा ने चुराचांदपुर में आईटीएलएफ नेताओं से मुलाकात की थी.
टॉम्बिंग ने कहा कि छात्र जातीय हिंसा के कारण पीड़ित हैं और केंद्र जान-बूझकर उनकी चिंताओं को नजरअंदाज कर रहा है.
उन्होंने कहा, ‘800 से अधिक छात्र हैं, जिनका भविष्य खतरे में है. लगभग 120 मेडिकल छात्र और 600 से अधिक नर्सिंग छात्र पिछले कई महीनों से अपनी शिक्षा जारी रखने में असमर्थ हैं, क्योंकि उन्हें घाटी स्थित कॉलेजों से बाहर निकाल दिया गया है.’
इससे पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित 10 कुकी-जो विधायकों ने अलग प्रशासन की मांग की थी.
मालूम हो कि बीते 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 180 से अधिक लोगों की जान चली गई है. यह हिंसा तब भड़की थी, जब बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था.
मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.
आईटीएलएफ ने बुधवार को चुराचांदपुर में विरोध मार्च निकाला. आदिवासी निकाय ने कुकी-जो लोगों से जुड़े कम से कम 20 मामलों की ‘निष्पक्ष’ जांच की मांग करते हुए सरकार को एक ज्ञापन सौंपा.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, आईटीएलएफ ने अलग प्रशासन की मांग को आगे बढ़ाने और कुकी जनजाति के 22 लोगों की कथित हत्या की सीबीआई या एनआईए से जांच कराने का अनुरोध करने के लिए बुधवार को चुराचांदपुर में विरोध प्रदर्शन का किया.
आईटीएलएफ के प्रवक्ता गिन्ज़ा वुएलज़ोंग ने कहा, ‘कुकी-जो समुदाय के सदस्यों की कई क्रूर हत्याएं हुई हैं, लेकिन सीबीआई या केंद्रीय एजेंसियों ने उन्हें जांच के लिए नहीं लिया है. यह रैली कुकी-जो लोगों के खिलाफ किए गए अत्याचारों के विरोध में है.’