जम्मू कश्मीर: हाईकोर्ट ने पत्रकार सज्जाद गुल पर पीएसए कार्यवाही रद्द की, प्रशासन को फटकार

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कश्मीरी पत्रकार सज्जाद गुल के ख़िलाफ़ जन सुरक्षा अधिनियम के तहत लगाए गए आरोपों संबंधी सुनवाई में कहा कि सूबे के प्रशासन ने कार्यवाही को मंज़ूरी देते समय अपना दिमाग़ नहीं लगाया और ऐसा कुछ पेश नहीं किया जो साबित करता हो कि गुल राष्ट्रहित के ख़िलाफ़ काम कर रहे थे.

पत्रकार सज्जाद गुल. (फोटो साभारः ट्विटर)

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कश्मीरी पत्रकार सज्जाद गुल के ख़िलाफ़ जन सुरक्षा अधिनियम के तहत लगाए गए आरोपों संबंधी सुनवाई में कहा कि सूबे के प्रशासन ने कार्यवाही को मंज़ूरी देते समय अपना दिमाग़ नहीं लगाया और ऐसा कुछ पेश नहीं किया जो साबित करता हो कि गुल राष्ट्रहित के ख़िलाफ़ काम कर रहे थे.

पत्रकार सज्जाद गुल. (फोटो साभारः ट्विटर)

नई दिल्ली: सरकार के आलोचकों को मनमाने ढंग से जेल भेजने को ‘निवारक कानून का दुरुपयोग’ करार देते हुए मुख्य न्यायाधीश के. कोटिस्वर सिंह की अध्यक्षता वाली जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की पीठ ने कश्मीरी पत्रकार सज्जाद गुल के खिलाफ जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) की कार्यवाही को रद्द कर दिया है.

रिपोर्ट के अनुसार, गुल के खिलाफ पीएसए कार्यवाही को मंजूरी देते समय ‘अपना दिमाग न लगाने’ के लिए जम्मू कश्मीर प्रशासन को फटकार लगाते हुए अदालत ने कहा कि पीएसए डोजियर में ‘कोई विशेष आरोप’ नहीं था जो यह बताता कि गुल की गतिविधियां ‘राष्ट्र की सुरक्षा के लिए हानिकारक’ थीं.

अदालत ने प्रशासन को निर्देश दिया कि यदि किसी अन्य मामले में जरूरत न हो तो गुल को एहतियातन हिरासत से तुरंत रिहा किया जाए.

गुल पहले से ही जम्मू कश्मीर पुलिस द्वारा दर्ज तीन एफआईआर में कथित संलिप्तता के लिए पुलिस हिरासत में थे, जब बांदीपुरा के जिला मजिस्ट्रेट ने 14 जनवरी 2022 को पीएसए के तहत उनकी हिरासत को मंजूरी दे दी थी. इसके बाद  गुल को उनके घर से लगभग 350 किमी दूर जम्मू के केंद्रीय कारागार में भेज दिया गया था.

9 नवंबर को पीएसए की कार्यवाही को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि सरकारी तंत्र की नीतियों या कृत्यों/चूकों के आलोचकों को हिरासत में लेना, जैसा कि वर्तमान हिरासत में लिए गए पेशेवर मीडियाकर्मी के मामले में हुआ, निवारक कानून का दुरुपयोग है.

एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा ‘अराजक कानून’ बताए जाने वाले पीएसए के तहत, किसी संदिग्ध को बिना किसी आरोप के हिरासत में लिया जा सकता है और दो साल तक बिना मुकदमे के सलाखों के पीछे रखा जा सकता है.

पीठ ने फैसला सुनाया कि गुल की पीएसए डोजियर में हिरासत के आधार से यह संकेत नहीं मिलता है कि वह किसी गलत काम में शामिल थे. पीठ ने कहा, ‘यह कहीं नहीं बताया गया है कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति ने कथित शत्रुता पैदा करके सार्वजनिक व्यवस्था को कैसे बाधित किया था. साथ ही, उनके खिलाफ लगाए गए किसी भी आरोप में यह दिखाने के लिए कोई विशेष उदाहरण नहीं है कि वह राष्ट्रीय हितों के खिलाफ काम कर रहे थे.’

प्रशासन ने पीएसए डोजियर में किसी भी उदाहरण का हवाला दिए बिना गुल को एक ‘नकारात्मक आलोचक’ करार दिया था, जिसने कथित तौर पर अपने ट्वीट और समाचार सामग्री (न्यूज आइटम) के माध्यम से लोगों को सरकारी नीतियों के खिलाफ उकसाया था. इसे लेकर पीठ ने कहा कि मीडिया द्वारा तथ्यात्मक रिपोर्टिंग ऐसे मुद्दों पर रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई का कारण नहीं हो सकती है.

जब गुल को पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया तो वह द कश्मीर वाला (अब बंद हो चुका मीडिया संस्थान) में एक ट्रेनी रिपोर्टर के रूप में काम कर रहे थे. पीठ ने कहा, ‘(पीएसए डोजियर में) इसका कोई विशेष उदाहरण नहीं है कि (गुल के) कौन से और किस तारीख के ऐसे पोस्ट/लेख ऐसे हैं जो (सरकार के खिलाफ दुश्मनी पैदा करने का) ऐसा काम कर रहे हैं.’

इससे पहले, गुल के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता नजीर अहमद रोंगा और तूबा मंज़ूर ने अदालत को बताया कि गुल उनकी हिरासत के खिलाफ कोई सार्थक प्रतिनिधित्व नहीं कर सके क्योंकि उन्हें पीएसए डोजियर, एफआईआर, गवाहों के बयान और अन्य दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए थे जिनके आधार पर अधिकारियों ने उन पर पीएसए लगाया था.

सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि गुल को दस्तावेज़ देने से इनकार करना और उनकी निरंतर हिरासत ‘अवैध माने जाएंगे और हिरासत के आदेश को केवल इसी आधार पर रद्द किया जाना चाहिए.’

अदालत ने फैसला सुनाया, ‘संपूर्ण दस्तावेजी रिकॉर्ड उपलब्ध कराने के अभाव में हिरासत में लिए गए व्यक्ति को उनकी हिरासत के खिलाफ प्रभावी और सार्थक प्रतिनिधित्व करने में सक्षम नहीं माना जा सकता है, जो उसका वैधानिक और संवैधानिक अधिकार है.’

उल्लेखनीय है कि इससे पहले 1 दिसंबर 2022 को हाईकोर्ट की एकल पीठ ने पीएसए हिरासत आदेश के खिलाफ गुल द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया था.

एक अतिक्रमण विरोधी अभियान के बाद जम्मू कश्मीर पुलिस ने गुल पर धारा 147 (दंगों के लिए सजा), 336 (मानव जीवन को खतरे में डालना), 447 (आपराधिक अतिक्रमण के लिए सजा) और 353 (लोकसेवक पर हमला) के तहत भी मामला दर्ज किया था.

9 फरवरी 2019 को गुल ने बताया था कि एक स्थानीय तहसीलदार अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाते समय स्थानीय लोगों को परेशान कर रहा और धमकी दे रहा था. अगले दिन, तहसीलदार ने कथित तौर पर बिना कोई नोटिस दिए गुल और उसके पैतृक गांव शाहगुंड में उसके रिश्तेदारों के घरों को निशाना बनाया. इससे क्षेत्र में स्थानीय लोगों और अधिकारियों के बीच विरोध प्रदर्शन और हल्की झड़पें शुरू हो गईं, जिसे लेकर एक मामला हाजिन थाने में दर्ज किया गया था.

बांदीपोरा के गुंड जहांगीर गांव में एक स्थानीय आतंकवादी की हत्या पर गुल की रिपोर्ट के बाद उनके खिलाफ हाजिन पुलिस थाने ने दूसरा मामला 16 अक्टूबर 2021 को आईपीसी की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), 153 बी (राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिकूल आरोप/दावे) और 505 (सार्वजनिक शरारत) के तहत दर्ज किया था.

पुलिस ने उन पर उग्रवाद विरोधी अभियान के बारे में ‘झूठी और फर्जी कहानी फैलाने’ का आरोप लगाया था. हालांकि, एक अदालत से उन्हें इस मामले में जमानत दे दी गई थी.

गुल के खिलाफ तीसरा मामला आईपीसी की धारा 147, 148 (ऐसे हथियार से लैस होना, जिससे मौत हो सकती है), 336, 307 (हत्या का प्रयास) और 153 बी (राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिकूल आरोप/दावे) के तहत दर्ज किया गया था.

यह मामला गुल द्वारा सोशल मीडिया पर एक वीडियो क्लिप पोस्ट करने के बाद दर्ज किया गया था, जिसमें कुछ अज्ञात महिलाओं को एक मुठभेड़ में सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए लश्कर-ए-तैयबा के शीर्ष कमांडर सलीम पार्रे के घर पर ‘देश-विरोधी नारे’ लगाते हुए दिखाया गया था.

गुल के खिलाफ पीएसए कार्यवाही रद्द करने का फैसला द कश्मीर वाला के संपादक फहद शाह को जमानत देने के उच्च न्यायालय के फैसले से पहले आया था. शाह फरवरी 2022 से जेल में बंद थे.