कोटा में छात्र आत्महत्याओं के लिए कोचिंग संस्थानों को निशाना नहीं बना सकते: सुप्रीम कोर्ट

राजस्थान के कोटा शहर में छात्रों के बीच बढ़ती आत्महत्याओं के लिए कोचिंग संस्थानों को जवाबदेह ठहराने की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि कोचिंग संस्थानों के कारण आत्महत्याएं नहीं हो रही हैं. आत्महत्याएं होती हैं, क्योंकि माता-पिता बच्चों से अधिक अपेक्षाएं रखते हैं, जिन्हें वह पूरा नहीं कर पाते.

(फोटो: द वायर)

राजस्थान के कोटा शहर में छात्रों के बीच बढ़ती आत्महत्याओं के लिए कोचिंग संस्थानों को जवाबदेह ठहराने की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि कोचिंग संस्थानों के कारण आत्महत्याएं नहीं हो रही हैं. आत्महत्याएं होती हैं, क्योंकि माता-पिता बच्चों से अधिक अपेक्षाएं रखते हैं, जिन्हें वह पूरा नहीं कर पाते.

(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते सोमवार (20 नवंबर) को कहा कि कोटा में छात्रों के बीच बढ़ती आत्महत्याओं के लिए कोचिंग संस्थानों के पनपने को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं है, क्योंकि प्रतिस्पर्धी माहौल में माता-पिता की ऊंची उम्मीदें ही बच्चों को अपना जीवन समाप्त करने के लिए प्रेरित कर रही हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने निजी कोचिंग संस्थानों के नियमन और उनके न्यूनतम मानकों को निर्धारित करने के लिए कानून बनाने की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा, ‘समस्या अभिभावकों की है, कोचिंग संस्थानों की नहीं.’

इस वर्ष राजस्थान के कोटा जिले, जहां स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए इंजीनियरिंग और मेडिकल कोचिंग संस्थानों की संख्या में वृद्धि हुई है, में लगभग 26 आत्महत्याओं की सूचना मिली है. इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, ‘कोचिंग संस्थानों के कारण आत्महत्याएं नहीं हो रही हैं. आत्महत्याएं होती हैं, क्योंकि बच्चे अपने माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाते. मौतों की संख्या बहुत अधिक हो सकती है.’

पीठ में जस्टिस एसवीएन भट्टी भी शामिल थे.

अदालत मुंबई के डॉ. अनिरुद्ध नारायण मालपानी द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें स्वार्थवश लाभ कमाने के लिए बच्चों को ‘वस्तु’ के रूप में इस्तेमाल करके छात्रों को मौत के मुंह में धकेलने के लिए कोचिंग संस्थानों को दोषी ठहराया गया था.

याचिका पर अपना पक्ष रखते हुए अधिवक्ता मोहिनी प्रिया ने कहा कि जहां आत्महत्याओं ने सुर्खियां बटोरी हैं, वहीं यह घटना कई निजी कोचिंग संस्थानों के लिए आम है और ऐसा कोई कानून या विनियमन नहीं है, जो उन्हें जवाबदेह ठहराता हो.

पीठ ने कहा, ‘हममें से ज्यादातर लोग कोचिंग संस्थान नहीं रखना चाहेंगे, लेकिन आजकल परीक्षाएं बहुत प्रतिस्पर्धी हो गई हैं और माता-पिता की ओर से बहुत अधिक अपेक्षाएं हैं. प्रतियोगी परीक्षाओं में छात्र आधे अंक या एक अंक से चूक जाते हैं.’

अदालत ने याचिकाकर्ता को सुझाव दिया कि या तो वह राजस्थान हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएं, क्योंकि याचिका में उद्धृत आत्महत्या की घटनाएं काफी हद तक कोटा से संबंधित हैं, या केंद्र सरकार को एक अभ्यावेदन दें. अदालत ने कहा, ‘हम इस मुद्दे पर कानून बनाने का कैसे निर्देश दे सकते हैं?’

इसके बाद वकील मोहिनी प्रिया ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, यह संकेत देते हुए कि याचिकाकर्ता अभ्यावेदन पेश करना पसंद करेंगे, जिसे अदालत ने अनुमति दे दी.

याचिका में तर्क दिया गया था कि छात्रों की आत्महत्या एक गंभीर मानवाधिकार चिंता है और ‘आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या के बावजूद कानून बनाने में केंद्र का लापरवाह रवैया हमारे देश का भविष्य युवा प्रतिभाओं की रक्षा करने के प्रति सरकार की उदासीनता को स्पष्ट दिखाता है.’

इसमें कहा गया कि सम्मान के साथ जीना उनका संवैधानिक अधिकार है, जिसकी गारंटी अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा) देता है.

राजस्थान सरकार ने हाल ही में निजी कोचिंग संस्थानों के कामकाज को नियंत्रित और विनियमित करने के कदम के रूप में राजस्थान कोचिंग संस्थान (नियंत्रण और विनियमन) विधेयक- 2023 और राजस्थान निजी शैक्षणिक संस्थान नियामक प्राधिकरण विधेयक- 2023 पेश किए हैं. दोनों विधेयकों का अभी कानून बनना बाकी है.

उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ महीनों में कोचिंग हब कहे जाने वाले कोटा शहर में आत्महत्या के मामलों में चिंताजनक वृद्धि हुई है.