यूजीसी ने पूरे महाराष्ट्र के विश्वविद्यालयों और संबद्ध कॉलेजों से छात्रों को संघ नेता और एबीवीपी के संस्थापक सदस्य दत्ताजी डिडोलकर के जन्मशती वर्ष पर होने वाले समारोहों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने को कहा है. शिवसेना (यूबीटी) की युवा शाखा ने यूजीसी के पत्र पर आपत्ति जताते हुए इसे वापस लेने का आग्रह किया है.
नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पूरे महाराष्ट्र के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से छात्रों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेता दत्ताजी डिडोलकर के जन्मशती वर्ष के उपलक्ष्य में होने वाले समारोहों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने का आग्रह किया है.
रिपोर्ट के अनुसार, बीते 21 नवंबर को लिखे एक पत्र में यूजीसी ने कहा, ‘स्वर्गीय दत्ताजी डिडोलकर भारत के हजारों छात्रों और युवाओं के लिए प्रेरणा हैं. वह कई सामाजिक और अन्य संगठनों के संस्थापक थे. यह वर्ष उनका जन्मशती वर्ष है. इस संबंध में बताया गया है कि 7 अगस्त 2023 से 7 अगस्त 2024 तक इसे मनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों की योजना बनाई गई है. महाराष्ट्र राज्य के उच्च शिक्षा संस्थानों से अनुरोध है कि वे युवाओं और छात्रों को कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें.’
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, शैक्षणिक संस्थानों के लिए यूजीसी का यह निर्देश केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी द्वारा केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को लिखे पत्र के बाद आया है, जिसमें कहा गया है कि डिडोलकर को याद करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के संस्थापक सदस्य भी थे.
गडकरी ने कहा कि एक स्मारिका पुस्तिका भी प्रकाशित होने वाली है.
शिवसेना (यूबीटी) की युवा शाखा ने यूजीसी के उक्त पत्र पर आपत्ति जताई है और इसे वापस लेने का आग्रह किया है.
युवा सेना के पूर्व मुंबई विश्वविद्यालय सीनेट सदस्य प्रदीप सावंत ने कहा, ‘हम जन्म शताब्दी मनाने के खिलाफ नहीं हैं. लेकिन यह काम राजनीतिक दल और आरएसएस को अपने फंड से करना चाहिए. इसे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों पर नहीं थोपा जाना चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘कार्यक्रम नागपुर में होने वाला है. फिर महाराष्ट्र के सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को पत्र क्यों जारी किए जाते हैं?’
उधर, एबीवीपी कोंकण क्षेत्र के प्रमुख अमित धोमसे ने कहा, ‘दत्ताजी डिडोलकर ने सामाजिक और शिक्षा क्षेत्र में महान योगदान दिया है. वह विवेकानंद स्मारक के निर्माण के संघर्ष में सबसे आगे थे. ऐसे सामाजिक कार्यकर्ताओं का जन्म शताब्दी वर्ष मनाना हमारी संस्कृति रही है. युवा सेना को राजनीति को बीच में लाए बिना डिडोलकर के शैक्षिक और सामाजिक योगदान का अध्ययन करना चाहिए.’