मणिपुर हिंसा: चार मेडिकल कॉलेजों के विस्थापित छात्रों को कक्षाओं में शामिल होने की अनुमति

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने निर्णय लिया है कि मणिपुर के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों के चार मेडिकल कॉलेजों के सभी विस्थापित छात्रों को चुराचांदपुर मेडिकल कॉलेज में ऑनलाइन कक्षाएं या हाइब्रिड मोड में कक्षाओं में शामिल होने की अनुमति दी जाएगी. एनएमसी ने कहा कि उपरोक्त अनुमति मणिपुर में असाधारण स्थिति को ध्यान में रखते हुए दी गई है.

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(प्रतीकात्मक फाइल फोटो साभार: ट्विटर/@ajay_meena143)

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने निर्णय लिया है कि मणिपुर के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों के चार मेडिकल कॉलेजों के सभी विस्थापित छात्रों को चुराचांदपुर मेडिकल कॉलेज में ऑनलाइन कक्षाएं या हाइब्रिड मोड में कक्षाओं में शामिल होने की अनुमति दी जाएगी. एनएमसी ने कहा कि उपरोक्त अनुमति मणिपुर में असाधारण स्थिति को ध्यान में रखते हुए दी गई है.

(फाइल फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: मणिपुर सरकार की अपील और उसके साथ चर्चा के बाद राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने निर्णय लिया है कि राज्य के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों के चार मेडिकल कॉलेजों के सभी विस्थापित छात्रों को चुराचांदपुर मेडिकल कॉलेज में ऑनलाइन कक्षाएं या हाइब्रिड मोड में कक्षाओं में शामिल होने की अनुमति दी जाएगी.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, एनएमसी ने मणिपुर में आयुक्त-सह-सचिव (स्वास्थ्य और परिवार कल्याण) को भेजे गए एक पत्र में कहा, ‘ऐसे सभी विस्थापित छात्रों के लिए परीक्षा भी केवल उसी मेडिकल कॉलेज में ही आयोजित की जाएगी, जबकि उपस्थिति और आंतरिक मूल्यांकन में कमी की व्यवस्था विशेष कक्षाओं के माध्यम से की जाएगी.’

राज्य सरकार ने तीन मई को मणिपुर में हिंसा फैलने के बाद से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और एनएमसी को चुराचांदपुर मेडिकल कॉलेज, जवाहरलाल नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (जेएनआईएमएस), रीजनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आरआईएमएस) और शिजा एकेडमी ऑफ हेल्थ साइंसेज के विस्थापित छात्रों के लिए कक्षाएं और परीक्षा आयोजित करने की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए लिखा था.

एनएमसी ने अपने पत्र में कहा कि संकट को हल करने के लिए वर्तमान व्यवस्था अस्थायी है और यह बिल्कुल भी स्थानांतरण/प्रवासन नहीं है, क्योंकि नियमों में स्थानांतरण/प्रवासन का कोई प्रावधान नहीं है.

एनएमसी ने कहा, ‘उपरोक्त अनुमति मणिपुर में असाधारण स्थिति को ध्यान में रखते हुए दी गई है और यह एक वर्ष की अवधि के लिए या स्थिति सामान्य होने तक, जो भी पहले हो, लागू होगी. इस प्रकार दी गई अनुमति एक विशिष्ट स्थिति के लिए विशिष्ट है और इसे किसी भी उदाहरण के रूप में नहीं लिया जा सकता है.’

मालूम हो कि बीते 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 200 से अधिक लोगों की जान चली गई है. यह हिंसा तब भड़की थी, जब बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था.

मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.