बीते 21 जुलाई को वाराणसी की एक अदालत ने यह पता लगाने के लिए ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण का आदेश दिया था कि क्या मस्जिद का निर्माण पहले से मौजूद एक मंदिर की संरचना पर किया गया था. रिपोर्ट सौंपने के लिए एएसआई को आठ बार समय विस्तार दिया गया था.
नई दिल्ली: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वैज्ञानिक सर्वे की अपनी रिपोर्ट सोमवार (18 दिसंबर) को वाराणसी की एक अदालत को सौंप दी. अदालत ने एएसआई को आदेश दिया था कि वह यह पता लगाए कि क्या मस्जिद का निर्माण ‘हिंदू मंदिर की पहले से मौजूद संरचना पर किया गया था.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एएसआई का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता अमित श्रीवास्तव ने कहा, ‘हमने आज (18 दिसंबर) अदालत में एक सील कवर रिपोर्ट सौंप दी. रिपोर्ट पर विचार करने के लिए अदालत ने 21 दिसंबर की तारीख तय की है.’
12 दिसंबर को अंतिम सुनवाई के दौरान एएसआई ने रिपोर्ट सौंपने के लिए एक सप्ताह का अतिरिक्त समय मांगा था, जो उसे मिल गया था. अदालत ने एएसआई को रिपोर्ट सौंपने के लिए आठवीं बार समय विस्तार दिया था.
इससे पहले बीते 21 जुलाई को वाराणसी की अदालत ने यह पता लगाने के लिए परिसर के एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण का आदेश दिया था कि क्या मस्जिद का निर्माण ‘पहले से मौजूद एक मंदिर की संरचना पर किया गया था.’ जिला और सत्र न्यायाधीश एके विश्वेश ने एएसआई को विवादित संपत्ति की वैज्ञानिक जांच/सर्वेक्षण/खुदाई करने का निर्देश दिया था.
यह सर्वेक्षण वजूखाना, जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सील कर दिया गया था, क्षेत्र को छोड़कर पूरे परिसर में किया जाना था.
हालांकि, सर्वे पर रोक लगाने की मांग करते हुए मस्जिद समिति के इलाहाबाद हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद सर्वे रोक दिया गया था. दोनों अदालतों से मंजूरी मिलने के बाद सुरक्षा व्यवस्था के बीच 4 अगस्त को फिर से सर्वे शुरू हुआ था. निर्धारित समय समाप्त होने के बाद एएसआई ने सर्वेक्षण पूरा करने के लिए अदालत से अतिरिक्त समय मांगा था.
अपने आवेदन में अधिक समय की मांग करते हुए एएसआई ने कहा था, ‘जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट (हैदराबाद) के विशेषज्ञों की एक टीम एक जीपीआर (ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार) सर्वे भी कर रही है और उस डेटा का विश्लेषण और अध्ययन किया जा रहा है.’
इसमें हवाला दिया गया था कि मस्जिद के तहखाने में बहुत सारा ‘कचरा/मलबा’ पाया गया है, जिसने संरचना को ढंक लिया है. इसमें आगे कहा गया था, ‘मलबे को बहुत सावधानी से और व्यवस्थित रूप से हटाया जा रहा है, जो एक धीमी प्रक्रिया है और सर्वे के लिए तहखाने की जमीन को साफ करने से पहले कुछ और समय लेगी.’
अंजुमन इंतज़ामिया मस्जिद समिति, जिसने मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण को रोकने के लिए पहले एक याचिका दायर की थी, ने एएसआई को अतिरिक्त समय देने पर आपत्ति जताई थी.
मस्जिद के कार्यवाहक ने यह भी कहा था कि एएसआई ऊपरी अदालतों के आदेशों को धता बता रहा है और जमीन के नीचे मिट्टी को हटाकर इमारत के लिए खतरा पैदा कर रहा है और इसे मलबे की सफाई के बाद सर्वे करने के लिए अधिकृत नहीं किया गया है.
अपने जवाब में एएसआई ने कहा था वह हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन कर रहा है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि संरचना को कोई नुकसान न पहुंचे, सर्वेक्षण के दौरान सभी सावधानियां बरती जा रही हैं.
बीते अगस्त महीने में अगस्त में वाराणसी की अदालत ने एएसआई और अन्य हितधारकों को निर्देश दिया था कि वे किसी के साथ विशेष रूप से मीडिया, भी ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण के बारे में जानकारी साझा न करें. एएसआई के अलावा अन्य हितधारक मामले के दोनों पक्षकार, अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति और हिंदू याचिकाकर्ता, उनके प्रतिनिधि और सरकारी वकील हैं.
अदालत ने अपने आदेश में मीडिया द्वारा सर्वे के बारे में गलत रिपोर्ट पेश करने पर उनके खिलाफ कानून के मुताबिक कार्रवाई करने की बात कही थी. याचिकाकर्ता ने सर्वेक्षण पर ‘आधारहीन और झूठी रिपोर्टिंग’ को प्रकाशित करने या प्रसारित करने से सभी मीडिया को रोकने के लिए दिशा -निर्देश मांगे थे.
गौरतलब है कि विश्व वैदिक सनातन संघ के पदाधिकारी जितेंद्र सिंह विसेन के नेतृत्व में राखी सिंह समेत पांच हिंदू महिलाओं ने अगस्त 2021 में अदालत में एक वाद दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार के पास स्थित शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन और अन्य देवी-देवताओं की सुरक्षा की मांग की थी.
इसके साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित सभी मंदिरों और देवी-देवताओं के विग्रहों की वास्तविक स्थिति जानने के लिए अदालत से सर्वे कराने का अनुरोध किया था.
बीते जून महीने में जितेंद्र सिंह विसेन ने घोषणा की थी कि वे और उनका परिवार वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर से संबंधित सभी मामलों को वापस ले रहे हैं. उन्होंने इसके लिए ‘संसाधनों की कमी’ और विभिन्न तबकों द्वारा कथित ‘उत्पीड़न’ का हवाला दिया था.