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ईडी ने नौकरी के बदले जमीन मामले में हो रही मनी लॉन्ड्रिंग जांच में पहली बार बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव को तलब किया है. इंडियन एक्सप्रेस ने अधिकारियों के हवाले से बताया है कि 75 वर्षीय लालू को पीएमएलए के तहत बयान दर्ज कराने के लिए 27 दिसंबर को उपस्थित होने के लिए कहा गया है. इसके साथ ही एजेंसी ने उनके बेटे और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को भी 22 दिसंबर को नई दिल्ली में ईडी कार्यालय में पेश होने के लिए भी कहा है. इससे पहले ईडी ने इस मामले में 11 अप्रैल को तेजस्वी से करीब आठ घंटे तक पूछताछ की थी. इस साल ईडी ने इस केस में तेजस्वी की मां, बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और उनकी बहनों, राजद की राज्यसभा सांसद मीसा भारती, चंदा यादव और रागिनी यादव से भी पूछताछ की है. ईडी ने परिवार के एक कथित करीबी सहयोगी अमित कत्याल से पूछताछ के बाद उन्हें तलब किया है. ईडी ने कत्याल को नवंबर में गिरफ्तार किया था. ईडी का केस सीबीआई द्वारा जांचे जा रहे उन आरोपों से जुड़ा है जहां दावा किया गया है कि लालू यादव के रेल मंत्री रहने के दौरान लोगों को रेलवे में रोजगार देने के बदले में उनके (लालू के) परिवार और सहयोगियों को सस्ती दरों पर जमीन बेची या तोहफे में दी गई थी.
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान निलंबित हुए सांसदों की कुल संख्या अब 143 तक पहुंच गई है, जहां बुधवार को विपक्ष के दो और सांसदों को सस्पेंड कर दिया गया. एनडीटीवी के अनुसार, कदाचार के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी द्वारा पेश एक प्रस्ताव को सदन द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद केरल कांग्रेस (मणि) के थॉमस चाजिकादान और सीपीआई (एम) के एएम आरिफ को शेष सत्र के लिए निलंबित कर दिया. लोकसभा में 142 विपक्षी सांसदों में से अब 97 यानी 68 प्रतिशत से अधिक निलंबित हैं. इससे पहले मंगलवार को 49 विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया गया. इससे एक दिन पहले ही दोनों सदनों से 78 विपक्षी सांसद निलंबित किए गए थे. विपक्ष संसद की सुरक्षा में हुई चूक को लेकर गृह मंत्री अमित शाह के बयान की मांग कर रहा है.
केरल में कोरोना वायरस के सब-वेरिएंट जेएन.1 का पहला मामला सामने आने के बाद देश के कुछ राज्यों में कोविड मामलों में वृद्धि हुई है. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, केंद्र सरकार के लैब फोरम इंसाकॉग को JN.1 के 19 सीक्वेंस- एक महाराष्ट्र और 18 गोवा से, हैं. इस बीच कोविड के दैनिक मामलों में भी उछाल देखा गया है, जहां बुधवार सुबह आठ बजे के आंकड़ों के अनुसार, बीते 24 घंटों में देशभर में संक्रमण के 614 नए मामले दर्ज किए गए थे. यह आंकड़ा 21 मई के बाद से सर्वाधिक है. इस समय देश में कोविड के सक्रिय मामलों की संख्या 2,311 है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार, केरल में 24 घंटे में 292 नए कोविड संक्रमण और तीन मौतों की सूचना मिली है.
लोकसभा ने 97 निलंबित सांसदों की गैर-मौजूदगी में तीन आपराधिक कानून संशोधन विधेयक पारित कर दिए. आपराधिक कानूनों में सुधार के लिए तीन विधेयक पहली बार 11 अगस्त को संसद के मानसून सत्र के दौरान भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 के रूप में लोकसभा में पेश किए गए थे. न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, तीनों विधेयक लोकसभा में ध्वनि मत से पारित हो गए. लोकसभा के बाकी सदस्यों को संबोधित करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि आईपीसी की जगह लेने वाली भारतीय न्याय संहिता सजा के बजाय न्याय पर केंद्रित है. बीते सप्ताह जब ये विधेयक दोबारा पेश किये गए थे तब लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने सरकार से तीनों बिलों को एक संयुक्त चयन समिति को भेजने के लिए कहा था, हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने इससे इनकार कर दिया था.
संसद से विपक्षी सांसदों के लगातार निलंबन के बाद कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि मोदी सरकार ने लोकतंत्र का गला घोंट’ दिया है और प्रधानमंत्री ने संसद के प्रति ‘अनादर’ दिखाया है. द हिंदू के अनुसार, सोनिया गांधी ने बुधवार को पुराने संसद भवन के सेंट्रल हॉल में संसद के दोनों सदनों के अपने पार्टी सहयोगियों को संबोधित करते हुए ये टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि पहले कभी इतने सारे सांसदों को इस ‘वैध मांग’ कि गृह मंत्री को लोकसभा में सुरक्षा उल्लंघन पर बयान देना चाहिए, के लिए निलंबित नहीं किया गया था. उन्होंने जोड़ा कि प्रधानमंत्री को इस मुद्दे पर बोलने में चार दिन लग गए और वो भी संसद के बाहर बोले. उन्होंने आगे कहा कि ऐसा करते हुए उन्होंने (मोदी) स्पष्ट रूप से सदन की गरिमा और देश के लोगों के प्रति अपनी उपेक्षा दिखाई है.
असम में बनाए गए डिटेंशन सेंटर में मानवाधिकारों का हनन किए जाने की बात सामने आई है. सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक्स स्टडीज़ की आज़ाद आवाज़ टीम द्वारा ऐसे केंद्रों में बंद लोगों के साक्षात्कारों पर आधारित और द वायर पर प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि संदिग्ध नागरिकता को लेकर इन केंद्रों में रखे लोगों को अपराधियों के साथ सेल साझा करना पड़ा है. ज्ञात हो कि असम के छह जिलों में बने ऐसे डिटेंशन सेंटर वहां की जेलों में बने हैं. रिपोर्ट के अनुसार, इस तथ्य के बावजूद कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के दिशानिर्देश कहते हैं कि सरकारी जेलों का इस्तेमाल हिरासत के लिए नहीं किया जाना चाहिए, असम के डिटेंशन सेंटर सामान्य जेलों का हिस्सा हैं और इसी के चलते ‘घोषित ‘विदेशियों’ को अक्सर दोषी कैदियों के साथ एक ही सेल में रखा जाता है.