शिलॉन्ग के आर्कबिशप विक्टर लिंगदोह ने कहा कि 18 दिसंबर को पोप फ्रांसिस द्वारा समलैंगिक जोड़ों को आशीर्वाद देने की मंज़ूरी दिए जाने के बाद मेघालय में 5,196 वर्ग किमी भूमि में फैले 2.65 लाख से अधिक कैथोलिकों की सेवा करने वाले शिलॉन्ग के आर्चडायोसिस ने इसका पालन करने का फैसला किया है.
नई दिल्ली: कैथोलिक पादरी अब शिलॉन्ग आर्चडायोसिस के तहत मेघालय में समलैंगिक जोड़ों को आशीर्वाद दे सकते हैं.
हालांकि, आशीर्वाद चर्च के किसी भी प्रकार के अनुष्ठान के बिना होगा, जो विवाह संस्कार जैसा दिखता है, शिलॉन्ग के आर्कबिशप विक्टर लिंगदोह द्वारा जारी एक घोषणा में बीते शुक्रवार (22 दिसंबर) को यह कहा गया है.
द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘घोषणा आशीर्वाद के पेस्टोरल अर्थ पर जोर देती है. यह अनौपचारिक शब्दों में एक पादरी की सहज प्रार्थना है. इसे शादी के दौरान चर्च के आधिकारिक धार्मिक और अनुष्ठानिक आशीर्वाद के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.’
आर्कबिशप के इस पत्र में शिलॉन्ग के आर्चडायोसिस के पादरियों और वफादार लोगों को संबोधित किया गया है. पत्र में गया है, ‘इसलिए घोषणा विवाह के कैथोलिक सिद्धांत को नहीं बदलती है और आशीर्वाद यूनियन की मंजूरी का प्रतीक नहीं है.’
आर्कबिशप ने कहा कि 18 दिसंबर को पोप फ्रांसिस द्वारा समलैंगिक जोड़ों को आशीर्वाद देने की मंजूरी दिए जाने के बाद मेघालय में 5,196 वर्ग किमी भूमि में फैले 2.65 लाख से अधिक कैथोलिकों की सेवा करने वाले शिलॉन्ग के आर्चडायोसिस ने इसका पालन करने का फैसला किया है.
मालूम हो कि बीते 18 दिसंबर को पोप फ्रांसिस ने औपचारिक रूप से कैथोलिक पादरियों को समलैंगिक जोड़ों को आशीर्वाद देने की मंजूरी दे दी थी.
पोप द्वारा अनुमोदित वेटिकन दस्तावेज के अनुसार, आशीर्वाद तब दिया जा सकता है, जब वे नियमित चर्च अनुष्ठानों या धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा न हों, न ही नागरिक संघ के रूप में हों. इसके अलावा आशीर्वाद में निर्धारित अनुष्ठानों का उपयोग नहीं किया जा सकता है या यहां तक कि शादी में शामिल होने वाले कपड़े और हाव-भाव भी शामिल नहीं हो सकते हैं.
माना जा रहा है कि वेटिकन ने अपनी इस नीति के जरिये एक क्रांतिकारी बदलाव की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य समलैंगिक विवाह पर सख्त प्रतिबंध को बनाए रखते हुए चर्च को और अधिक समावेशी बनाना है.
इससे पहले भारत में सुप्रीम कोर्ट ने बीते 17 अक्टूबर को समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने से इनकार कर दिया था. अदालत इस बात पर सहमत रही थी कि कुल मिलाकर ऐसे अधिकार देने का फैसला संसद द्वारा किया जाना चाहिए और इसे अदालत नहीं ला सकती.
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा था कि सरकार को विवाह के बिना भी समलैंगिक रिश्तों को मान्यता देने के साथ उन्हें कानूनी सुरक्षा और हक देने चाहिए. जस्टिस संजय किशन कौल इससे सहमत हुए थे. हालांकि, पीठ में शामिल तीन अन्य जज जस्टिस रवींद्र भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा इस निर्देश से असहमत रहे थे.
सुनवाई के दौरान पीठ ने मामले को विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (एसएमए) तक सीमित रखा है और स्पष्ट किया है कि वह हिंदू विवाह अधिनियम या अन्य किसी पर्सनल लॉ से नहीं निपटेगी.