जैविक खेती योजना के लिए मिले धन में से हरियाणा, गुजरात ने कुछ ख़र्च नहीं किया: सरकार

केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने हाल ही में संसद में बताया कि हरियाणा और गुजरात ने परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के तहत पिछले तीन वर्षों में जैविक खेती के लिए प्राप्त राशि में से एक भी पैसा ख़र्च नहीं किया. हरियाणा और गुजरात को क्रमशः 5.05 लाख रुपये और 10.10 लाख रुपये मिले थे.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: IWMI/Flickr CC BY-NC-ND 2.0)

केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने हाल ही में संसद में बताया कि हरियाणा और गुजरात ने परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के तहत पिछले तीन वर्षों में जैविक खेती के लिए प्राप्त राशि में से एक भी पैसा ख़र्च नहीं किया. हरियाणा और गुजरात को क्रमशः 5.05 लाख रुपये और 10.10 लाख रुपये मिले थे.

(फोटो साभार: IWMI/Flickr CC BY-NC-ND 2.0)

नई दिल्ली: केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने हाल ही में संसद में बताया कि हरियाणा और गुजरात ने परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के तहत पिछले तीन वर्षों में जैविक खेती के लिए प्राप्त कुल 15 लाख रुपये में से एक भी पैसा खर्च नहीं किया.

रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा कि पिछले तीन वर्षों में इस योजना के तहत हरियाणा और गुजरात को क्रमशः 5.05 लाख रुपये और 10.10 लाख रुपये मिले. इसी अवधि में गोवा को 0 रुपये और तेलंगाना को 15.15 लाख रुपये मिले, जबकि अन्य पात्र राज्यों को 4 करोड़ रुपये से अधिक मिले.

उत्तराखंड को सबसे अधिक राशि 180 करोड़ रुपये प्राप्त हुई और उसने 143 करोड़ रुपये का उपयोग किया.

जिन राज्यों ने पिछले तीन वर्षों में योजना के तहत प्राप्त धनराशि में से एक भी पैसा खर्च नहीं किया, वे कर्नाटक, मध्य प्रदेश, पंजाब और तेलंगाना हैं. मुंडा द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, इनमें से पंजाब को सबसे अधिक 18.03 करोड़ रुपये मिले.

मुंडा गुजरात से भाजपा सांसद राजेशभाई चूडास्मा और तेलंगाना से बीआरएस सांसद नामा नागेश्वर राव के एक सवाल का जवाब दे रहे थे कि सरकार जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए क्या कदम उठा रही है.

मुंडा के जवाब में कहा गया है कि पीकेवीवाई जैविक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार की दो योजनाओं में से एक है और इसे उत्तर-पूर्व के अलावा सभी राज्यों में लागू किया गया है. दूसरी योजना विशेष रूप से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को कवर करती है.

इनमें जैविक खाद सहित जैविक आदानों (organic inputs) का उपयोग करने के लिए किसानों को प्रत्यक्ष-लाभ हस्तांतरण शामिल है.

मुंडा ने कहा, ‘दोनों योजनाएं जैविक खेती में लगे किसानों को शुरू से अंत तक समर्थन पर जोर देती हैं, यानी उत्पादन से लेकर प्रसंस्करण, प्रमाणीकरण और विपणन और फसल के बाद के प्रबंधन तक.’ उन्होंने कहा कि उन्होंने प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित किया है.

उनके जवाब में यह भी कहा गया कि केंद्र सरकार पीकेवीवाई के भीतर एक ‘उप योजना‘ के तहत प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है – जो खरीदे गए कृषि आदानों से बचने में जैविक खेती से अलग है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, भारत ने छोटे किसानों को समर्थन देने और खेती को अधिक जलवायु-अनुकूल बनाने के प्रयास के तहत जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया है.

इस साल की शुरुआत में मुंडा के पूर्ववर्ती कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा प्रदान की गई एक संसदीय जवाब में कहा गया था कि हरियाणा को 2020 और 2022 के बीच पीकेवीवाई के तहत 20.5 लाख रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन अंततः उसे 5.05 लाख रुपये प्राप्त हुए.

इसी समयावधि में योजना के तहत गुजरात को 41.01 लाख रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन 10.10 लाख रुपये मिले. उसने यह राशि खर्च नहीं की.

तोमर की प्रतिक्रिया में 2019 और 2022 के बीच पीकेवीवाई से लाभान्वित होने वाले कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के किसानों की संख्या भी बताई गई. हालांकि, गुजरात इस सूची से गायब था.

उनके जवाब में कहा गया था, ‘कार्यान्वयन की धीमी प्रगति/धन के उपयोग न होने के कारण शेष राज्यों को धन जारी नहीं किया जा सका.’

इस महीने की शुरुआत में मुंडा के एक अलग जवाब में कहा गया था कि वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान गुजरात को इस योजना के तहत 1.87 करोड़ रुपये मिले.

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