छत्तीसगढ़: हसदेव अरण्य की तबाही में भाजपा-कांग्रेस सभी शामिल रहे हैं

छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में वनों की हालिया कटाई का विरोध हो रहा है, लेकिन इस विरोध का इतिहास लगभग एक दशक पुराना है. 

(फोटो साभार: फेसबुक/@Savehasdeoaranya)

छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में वनों की हालिया कटाई का विरोध हो रहा है, लेकिन इस विरोध का इतिहास लगभग एक दशक पुराना है.

(फोटो साभार: फेसबुक/@Savehasdeoaranya)

भारत का नक्शा उठाकर देखेंगे तो बिल्कुल बीचोंबीच में जो जंगल दिखाई देंगे. इन्हें हसदेव अरण्य कहा जाता है. जमीन के ऊपर सैकड़ों वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ घना जंगल और जंगलों के नीचे करोड़ों टन कोयले का भंडार. अब तक जंगल से हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं, जिसके खिलाफ स्थानीय लोग तकरीबन 10 साल से ज्यादा समय से विरोध करते आ आए हैं.

जमीन के नीचे से कोयला निकालने का काम कारोबारी गौतम अडानी की कंपनी कर रही है, जो कोयला ब्लॉक की मालिक भी है. साल 2010 से जब से हसदेव चर्चा में आया तब पहले भाजपा और फिर कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ सरकार की सत्ता संभाली. अब फिर छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार है.

छत्तीसगढ़ भाजपा ने अपने घोषणापत्र में हसदेव में कोयला खनन की अनुमति को ‘धोखा’ कहा था. लेकिन सरकार बनते ही अडानी की खदानों के लिए पेड़ों की कटाई शुरू हो गई. आदिवासी गांव के सरपंच और नौजवान नेताओं को तीन दिन नजरबंद रखकर तकरीबन 500 पुलिस वालों की तैनाती में 21 दिसंबर से लगातार तीन दिनों तक हसदेव के जंगलों में तकरीबन 30 हजार पेड़ काटे गए हैं.

हसदेव अरण्य क्षेत्र तकरीबन 1,876 वर्ग किलोमीटर का इलाका है यानी दिल्ली के क्षेत्रफल से भी बड़ा इलाका है. यह जंगल तीन राज्य में फैला हुआ है. कोयला मंत्रालय के मुताबिक, हसदेव अरण्य के पूरे इलाके में जमीन के नीचे 2032 मिलियन टन यानी 203 करोड़ टन कोयला होने का अनुमान लगाया गया है.

साल 2010 में पर्यावरण मंत्रालय के वन सलाहकार समिति ने सिफारिश की कि हसदेव अरण्य के इलाके में कोयला खनन का काम नहीं होना चाहिए. उस समय पर्यावरण मंत्रालय जयराम रमेश संभाल रहे थे. पर्यावरण मंत्रालय के वन सलाहकार समिति की कोयला खनन की मनाही के बावजूद जयराम रमेश ने हसदेव अरण्य में पड़ने वाले एक ब्लॉक परसा ईस्ट केते ब्लॉक से कोयला खनन की मंजूरी यह कहते हुए दी कि यह ब्लॉक हसदेव अरण्य के किनारे पर पड़ता है, हसदेव के मुख्य जंगलों में खनन की अनुमति कभी नहीं दी जाएगी.

दिसंबर 2011 में केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय और कोयला मंत्रालय के साझे अध्ययन से जुड़ी एक रिपोर्ट जारी हुई, जिसमें हसदेव अरण्य में पड़ने वाले 23 कोयला ब्लॉक नो गो जोन के तौर घोषित कर दिया गया था. नो गो को जोन का मतलब यह कि यह पूरा इलाका घने वनों, जैव विविधता, जल स्रोत यानी दुर्लभ वन प्रजातियों के लिहाज़ से भी बहुत महत्वपूर्ण है. इस इलाके को कोयला खनन की इजाजत नहीं होगी. यानी स्पष्ट तौर पर हसदेव की जमीन के भीतर सोये कोयला को निकालने के लिए जंगलों को नहीं काटा जा सकता था.

इस तरह की रिपोर्ट के बावजूद हसदेव अरण्य में पड़ने वाले परसा ईस्ट केते में खनन को मंजूरी दे दी गई. यह कोयला खदान राजस्थान सरकार का है. जब छत्तीसगढ़ का यह कोयला खदान राजस्थान को दिया गया था, उस समय राजस्थान और छत्तीसगढ़ दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार थी. माइन डेवलपर ऑपरेशन ठेकेदार के तौर पर इस खदान का मालिकाना हक अडानी एंटरप्राइजेज के पास है. यानी कोयला खनन के लिए भूमि अधिग्रहण से लेकर पर्यावरण स्वीकृति, वन स्वीकृति आदि की जिम्मेदारी कंपनी की होगी और फिर कंपनी कोयला निकालकर राजस्थान सरकार को सप्लाई करेगी.

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 मे कांग्रेस के दौर में जारी किए गए 204 कोयला ब्लॉक के आवंटन को रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ज्यादातर कोयला ब्लॉकों का आवंटन मनमाना और गैरकानूनी है. कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए इस तरह का गैरकानूनी रास्ता बन गया है कि पिछले दरवाजे से व्यावसायिक मकसद के लिए प्राइवेट कंपनियों को कोयला खनन की इजाजत मिल जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा कानून केंद्र सरकार की कंपनियों को कोयला ब्लॉक आवंटित करने की इजाजत देता है मगर राज्य सरकार के अधीन कंपनियों को नहीं.

इसके बाद साल 2014 में भाजपा चुनाव जीतकर आई. नरेंद्र मोदी कोयला घोटाले के लिए नया कानून भी लेकर आए. मगर उसमें इस तरह के नियम-कायदे बनाए गए कि अडानी या निजी कंपनियों का छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में मिला खनन का अधिकार खारिज न हो. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक हसदेव अरण्य में अडानी को मिला कोयला खनन का अधिकार भी खत्म हो जाना चाहिए था. इस तरह से कांग्रेस के जयराम रमेश ने वन सलाहकार समिति की सिफारिश को खारिज करते हुए हसदेव अरण्य के किनारे पर कोयला खनन का अधिकार दिया. भाजपा की वसुंधरा राजे की सरकार ने इस कोयला खनन के अधिकार को कंपनी बनाकर अडानी लिमिटेड को बेच दिया.

साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अडानी समूह की कंपनी के खनन अधिकार को खत्म कर देना चाहिए था मगर ऐसा नहीं हुआ.

हसदेव अरण्य का इलाका संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत आता है. संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत अनुसूचित जनजातियों के लिए अनुसूचित क्षेत्र घोषित किए गए इलाकों को संभालने के लिए प्रशासनिक अधिकार मिले हुए हैं. इसके मुताबिक, जब तक ग्राम सभा सहमति नहीं देगी तब तक खनन के लिए भूमि अधिग्रहित नहीं की जा सकती है. इसी अधिकार का इस्तेमाल करके हसदेव अरण्य की 20 ग्राम सभाओं ने यह प्रस्ताव पारित किया कि वन अधिकार कानून के तहत इस इलाके को कोयला खनन के लिए आवंटित नहीं किया जाना चाहिए.

साल 2016 में छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी. भाजपा की सरकार ने आदिवासियों के सौंप गए वन अधिकार को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह खनन की गतिविधियों में अड़चन डालकर गैरकानूनी कृत्य कर रहे हैं. जबकि आदिवासियों को मिले वन अधिकार को खारिज नहीं किया जा सकता है.

हसदेव बचाओ आंदोलन के सदस्य आलोक शुक्ला का कहना है, ‘2015 के बाद तीन-तीन बार ग्राम सभाओं ने यह प्रस्ताव जारी किया कि वह खनन का अधिकार नहीं देंगे, इजाजत नहीं देंगे. मगर साल 2018 में फर्जी सहमति ली गई. 2018 में कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार सत्ता में आई. इसने भी इस फर्जी सहमति पर कोई जांच नहीं करवाई. जबकि 2015 में राहुल गांधी ने आदिवासियों के संघर्ष में खड़ा होकर कहा था कि हम आपके संघर्ष के साथ खड़े हैं और बिना आपकी सहमति से कोयला नहीं निकाला जाना जाना चाहिए.’

उन्होंने आगे कहा, ‘फर्जी ग्राम सभा की जांच और उस पर कार्रवाई के लिए 75 दिनों तक लोगों ने धरना दिया मगर प्रशासन का कोई भी व्यक्ति सुनते नहीं आया और फर्जी ग्राम सभा के आधार पर ही वन स्वीकृत की प्रक्रिया आगे बढ़ती रही. अंततः जब ग्राम सभा की बात नहीं सुनी गई तब 2 अक्टूबर 2021 के दिन आदिवासियों ने 300 किलोमीटर पैदल यात्रा की और 14 अक्टूबर 2021 को रायपुर में पहुंचकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मुलाकात की. मुख्यमंत्री और राज्यपाल दोनों ने कहा कि आपके साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा जब तक ग्राम सभा की सहमति नहीं मिलेगी तब तक कार्रवाई आगे नहीं बढ़ेगी. यह सब केवल सरकारी शासन आश्वासन था. झूठा दिलासा था. आज तक फर्जी ग्राम सभा पर जांच नहीं हुई है.’

अब नियम कानून सबको अलग रखकर हसदेव अरण्य के परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक के दूसरे चरण के खनन और परसा कोल ब्लॉक के खनन के लिए वनों की कटाई की जा रही है. इसमें तकरीबन 4.5 लाख के आसपास वन काटे जाएंगे.

आलोक शुक्ला का कहना है कि बीते 21 दिसंबर को परसा ईस्ट केते बासन के दूसरे चरण के कोयला खनन के लिए 91 हेक्टेयर जमीन पर वनों की कटाई शुरू हुई. बिना ग्राम सभा की सहमति के. 500 पुलिस वालों की तैनाती में 500 इलेक्ट्रिक आरा मशीन ने तकरीबन 30 हजार पेड़ काट दिए. जबकि आधिकारिक आंकड़ा 15 हजार का बताया जा रहा है.

छत्तीसगढ़ में मौजूद भाजपा सरकार कह रही है कि वनों की कटाई की अनुमति पिछली राज्य सरकार यानी कांग्रेस ने दी थी. कांग्रेस तब कहा करती थी, कोयला खनन की इजाजत केंद्र सरकार से मिली हुई है, केंद्र सरकार को रोकना चाहिए. जबकि आलोक शुक्ला बताते हैं कि नियम यह कहता है कि जब तक राज्य सरकार का फाइनल आदेश नहीं आएगा तब तक केवल केंद्र सरकार की अनुमति से कोयला खनन के लिए वनों की कटाई नहीं की जा सकती है.

इन सभी तकनीकी बातों के इतर एक पहलू यह भी है कि पर्यावरण मंत्रालय, इसकी वन सलाहकार समिति की तरफ से हसदेव अरण्य में कोयला खनन की मनाही की गई थी. उसके बावजूद कांग्रेस और भाजपा की सरकारों ने ऐसा होने दिया.

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