महाराष्ट्र: हाजी मलंग दरगाह के हिंदू ट्रस्टी बोले- राजनीतिक लाभ के लिए इसे मंदिर बताया जा रहा है

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि वह ठाणे ज़िले में स्थित हाजी मलंग दरगाह की मुक्ति के लिए प्रतिबद्ध हैं. बीते कुछ दशकों से हिंदू पक्ष इस दरगाह को मंदिर बताता आ रहा है. हालांकि, इस दरगाह का प्रबंधन संभालने वाले हिंदू ट्रस्टी सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के हवाले से कहते हैं कि दरगाह एक मिश्रित संरचना है, जिसे हिंदू या मुस्लिम क़ानून से शासित नहीं किया जा सकता है.

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ठाणे स्थित हाजी मलंग शाह दरगाह और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे. (फोटो साभार: फेसबुक)

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि वह ठाणे ज़िले में स्थित हाजी मलंग दरगाह की मुक्ति के लिए प्रतिबद्ध हैं. बीते कुछ दशकों से हिंदू पक्ष इस दरगाह को मंदिर बताता आ रहा है. हालांकि, इस दरगाह का प्रबंधन संभालने वाले हिंदू ट्रस्टी सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के हवाले से कहते हैं कि दरगाह एक मिश्रित संरचना है, जिसे हिंदू या मुस्लिम क़ानून से शासित नहीं किया जा सकता है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के यह कहने के एक दिन बाद कि वह सदियों पुरानी हाजी मलंग दरगाह – जिसके मंदिर होने का दक्षिणपंथी समूह दावा करते हैं – की ‘मुक्ति’ के लिए प्रतिबद्ध हैं, दरगाह के हिंदू ट्रस्टियों ने कहा है कि इस विवाद को तूल राजनीतिक लाभ उठाने के लिए दिया जा रहा है.

ठाणे जिले में माथेरान पहाड़ी श्रृंखला पर समुद्र तल से 3,000 फीट ऊपर एक पहाड़ी किले मलंगगढ़ के सबसे निचले पठार पर स्थित इस दरगाह में यमन के 12वीं शताब्दी के सूफी संत हाजी अब्द-उल-रहमान (जिन्हें हाजी मलंग बाबा के रूप में भी जाना जाता है) की मजार है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, दरगाह के तीन सदस्यीय ट्रस्ट के दो ट्रस्टियों में से एक चंद्रहास केतकर, जिनका परिवार पिछली 14 पीढ़ियों से दरगाह का प्रबंधन कर रहा है, ने कहा, ‘जो कोई भी दरगाह के मंदिर होने का दावा कर रहा है, वह ऐसा राजनीतिक लाभ के लिए कर रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘1954 में सुप्रीम कोर्ट ने केतकर परिवार के भीतर दरगाह के नियंत्रण से संबंधित एक मामले में टिप्पणी की थी कि दरगाह एक मिश्रित संरचना है, जिसे हिंदू या मुस्लिम कानून से शासित नहीं किया जा सकता है, बल्कि केवल इसके अपने विशेष रीति-रिवाजों या ट्रस्ट के सामान्य कानून द्वारा शासित कर सकते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘राजनेता अब इस विवाद को सिर्फ अपने वोट बैंक को आकर्षित करने और एक राजनीतिक मुद्दा खड़ा करने के लिए उछाल रहे हैं.’

ट्रस्टी परिवार से ही ताल्लुक रखने वाले अभिजीत केतकर के अनुसार, हर साल हजारों लोग अपनी मन्नत पूरी करने के लिए यहां आते हैं.

यह दरगाह, जिसे कई लोग महाराष्ट्र की समन्वयवादी संस्कृति का प्रतिनिधि मानते हैं, विवादों से अछूती नहीं रही है.

शिंदे के राजनीतिक गुरु आनंद दीघे 1980 में इस संबंध में आंदोलन करने वाले पहले व्यक्ति थे, जिनका दावा था कि इस इमारत की जगह पर योगियों के एक संप्रदाय नाथ पंथ से संबंधित एक पुराना हिंदू मंदिर ‘मछिंद्रनाथ मंदिर’  हुआ करता था.

साल 1996 में वह यहां पूजा करने के लिए 20,000 शिवसैनिकों को मंदिर में ले जाने पर अड़ गए थे. उस वर्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी के साथ-साथ शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे भी पूजा में शामिल हुए थे. तब से सेना और दक्षिणपंथी समूह इस इमारत को श्री मलंगगढ़ के नाम से पुकारते हैं.

बहरहाल, यह इमारत अभी भी एक दरगाह है, लेकिन पूर्णिमा के दिन हिंदू इसके परिसर में आते हैं और आरती करते हैं.

वहीं, 1990 के दशक में सत्ता में आने पर इस मुद्दे को शिवसेना ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था, लेकिन अब शिंदे ने इस मुद्दे को फिर से हवा देने का फैसला किया है.

इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में दरगाह के इतिहास पर भी प्रकाश डाला है और बताया है कि इसका उल्लेख विभिन्न ऐतिहासिक अभिलेखों में मिलता है, जिसमें 1882 में प्रकाशित बॉम्बे प्रेसीडेंसी का गजट भी शामिल है.

इसमें कहा गया है कि दरगाह अरब मिशनरी हाजी अब्द-उल-रहमान, जो हाजी मलंग के नाम से लोकप्रिय थे, के सम्मान में बनाई गई थी. कहा जाता है कि स्थानीय शासक नल राजा के शासनकाल के दौरान सूफी संत यमन से कई अनुयायियों के साथ आए थे और पहाड़ी के निचले पठार पर बस गए थे.

दरगाह का बाकी इतिहास पौराणिक कथाओं से ओत-प्रोत है और स्थानीय स्तर पर दावा किया जाता है कि नल राजा ने अपनी बेटी की शादी सूफी संत से की थी. दरगाह परिसर के अंदर हाजी मलंग और मां फातिमा दोनों की कब्रें स्थित हैं.

बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गजट में कहा गया है कि इमारत और कब्रें 12वीं शताब्दी से अस्तित्व में हैं और पवित्र मानी जाती हैं.

गजट में इसका भी उल्लेख है कि 18वीं शताब्दी में मराठा संघ ने भी ब्राह्मण काशीनाथ पंत केतकर से दरगाह में प्रसाद भेजा था. वहीं, काशीनाथ पंत ने इसकी मरम्मत कराई थी और इमारत का प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया था.

दरगाह पर पहला विवाद 18वीं शताब्दी में शुरू हुआ, जब स्थानीय मुसलमानों ने इसका प्रबंधन एक ब्राह्मण द्वारा किए जाने पर आपत्ति जताई थी. बाद में तत्कालीन स्थानीय प्रशासक ने 1817 में ‘लॉटरी निकालकर’ इस विवाद का निपटारा किया. गजट में कहा गया है कि लॉटरी काशीनाथ पंत के पक्ष में निकली और वे संरक्षक घोषित किए गए थे.

तब से केतकर हाजी मलंग दरगाह ट्रस्ट के वंशानुगत ट्रस्टी हैं और दरगाह के रखरखाव में उनकी भूमिका रही है. ऐसा कहा जाता है कि ट्रस्ट में हिंदू और मुस्लिम दोनों सदस्य हैं, जो सौहार्द्रपूर्ण तरीके से काम करते हैं.

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में वर्तमान ट्रस्टी चंद्रहास केतकर ने कहा, ‘हमारे ट्रस्ट बोर्ड में पारसी, मुस्लिम और हिंदू समुदायों के साथ-साथ स्थानीय कृषि समुदाय के सदस्य भी थे. हालांकि 2008 के बाद से ट्रस्ट में कोई नई नियुक्ति नहीं हुई है.’

दरगाह पर शोध (थीसिस) लिखने वाले रमा श्याम ने कहा, ‘दरगाह का प्रबंधन एक स्थानीय ब्राह्मण परिवार करता है. यह एक सर्वधर्म का तीर्थस्थल है और ऐतिहासिक रूप से धर्म और आस्था से परे वे लोग यहां आते रहे हैं, जो परेशानियों में घिरे हैं और हाशिये पर पड़े हैं.’

प्रभात सुगवेकर का परिवार पीढ़ियों से दरगाह तक जाने वाली पहाड़ी पर एक छोटी सी चाय और नाश्ते की दुकान चला रहा है.

उन्होंने बताया, ‘ज्यादातर मुस्लिम श्रद्धालु दरगाह को हाजी मलंग बाबा के नाम से जानते हैं, जबकि आनंद दीघे के यहां आने के बाद से हिंदू इस स्थान को श्री मलंगगढ़ के नाम से जानते हैं. मेरे लिए, बाबा और श्री मलंग दोनों एक ही हैं.’

संयोग से शिंदे ने फरवरी 2023 में दरगाह का दौरा किया था. तब उन्होंने आरती की थी और दरगाह के अंदर भगवा चादर चढ़ाई थी. 11 महीने बाद उन्होंने इस मुद्दे पर आक्रामकता बढ़ा दी है.

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