स्टेशनों पर मोदी सेल्फी पॉइंट की लागत के खुलासे के बाद रेलवे ने आरटीआई नियम सख़्त किए

सूचना के अधिकार से मांगी गई जानकारी में खुलासा हुआ है कि रेलवे स्टेशनों पर लगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो वाले प्रत्येक स्थायी सेल्फी बूथ की लागत 6.25 लाख रुपये है, जबकि प्रत्येक अस्थायी सेल्फी बूथ की लागत 1.25 लाख रुपये है. मध्य रेलवे द्वारा यह सूचना दी गई थी, जिसके बाद बिना नोटिस दिए इसके एक अधिकारी का तबादला कर दिया गया.

एक रेलवे स्टेशन पर लगा मोदी सेल्फी पॉइंट. (फोटो साभार: एक्स/@Cryptic_Miind)

सूचना के अधिकार से मांगी गई जानकारी में खुलासा हुआ है कि रेलवे स्टेशनों पर लगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो वाले प्रत्येक स्थायी सेल्फी बूथ की लागत 6.25 लाख रुपये है, जबकि प्रत्येक अस्थायी सेल्फी बूथ की लागत 1.25 लाख रुपये है. मध्य रेलवे द्वारा यह सूचना दी गई थी, जिसके बाद बिना नोटिस दिए इसके एक अधिकारी का तबादला कर दिया गया.

एक रेलवे स्टेशन पर बना सेल्फी पॉइंट. (फोटो साभार: ट्विटर/@Ashutoshjha100)

नई दिल्ली: रेलवे स्टेशनों पर स्थापित सेल्फी पॉइंट की लागत पर विवाद के बाद भारतीय रेलवे ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत जानकारी देने के लिए जोनल रेलवे के लिए मानदंड कड़े कर दिए हैं.

नए नियमों के तहत, सभी जवाबों को जोनल रेलवे के महाप्रबंधकों या मंडल रेलवे प्रबंधकों द्वारा मंजूरी दिया जाना जरूरी होना चाहिए.

बता दें कि हाल ही में एक आरटीआई से खुलासा हुआ था रेलवे स्टेशनों पर लगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो वाले प्रत्येक स्थायी सेल्फी बूथ की लागत 6.25 लाख रुपये है, जबकि प्रत्येक अस्थायी सेल्फी बूथ की लागत 1.25 लाख रुपये है, जो सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधीन केंद्रीय संचार ब्यूरो द्वारा अनुमोदित लागत है. यह जानकारी आरटीआई याचिका के जवाब में मध्य रेलवे द्वारा प्रदान की गई थी.

द हिंदू के मुताबिक, 28 दिसंबर 2023 को सभी जोनल रेलवे के महाप्रबंधकों को भेजी गई एक सलाह में रेलवे बोर्ड ने कहा कि यह हाल ही में देखा गया है कि ‘जोनल रेलवे और अन्य फील्ड इकाइयों के पास आए आरटीआई आवेदनों के जवाब देने की गुणवत्ता खराब हो गई है.’

इसमें कहा गया है, ‘कई मामलों में आरटीआई आवेदनों के निपटान की समयसीमा गुजर चुकी है, जिसके परिणामस्वरूप प्रथम अपीलीय अधिकारी या केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष बड़ी संख्या में अपीलें दायर की गई हैं, जिससे न केवल काम का बोझ बढ़ रहा है बल्कि संगठन की भी छवि खराब हो रही है.’

एडवाइजरी में कहा गया है कि समस्या के समाधान के लिए यह निर्णय लिया गया था कि अधिनियम में निर्धारित याचिका के निपटान की समयसीमा का सफल पालन किया जाना चाहिए. गुणवत्ता बनाए रखने के लिए अब से सभी आरटीआई आवेदनों के जवाबों को क्रमशः जोनल रेलवे में महाप्रबंधक (जीएम) और डिवीजन में मंडल रेल प्रबंधकों (डीआरएम) के स्तर पर अनुमोदित किया जाएगा.

आगे कहा गया है, ‘इसी तरह आरटीआई अधिनियम के तहत प्राप्त प्रथम अपीलों के जवाब संबंधित जीएम और डीआरएम को दिखाए जाने चाहिए.’

रेलवे ने याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगी गई जानकारी प्रदान करने के लिए आरटीआई अधिनियम-2005 के प्रावधानों के तहत एक लोक सूचना अधिकारी और मुख्य लोक सूचना अधिकारी को नामित किया था. दक्षिण रेलवे के सूत्रों ने कहा कि अधिनियम के अनुसार महाप्रबंधकों या मंडल रेल प्रबंधकों की अपीलीय या सक्षम प्राधिकारी के रूप में कोई भूमिका नहीं है.

विवाद के केंद्र में जो जानकारी है वह मध्य रेलवे के उप-महाप्रबंधक अभय मिश्रा ने पूर्व रेलवे अधिकारी अजय बोस द्वारा दायर आरटीआई के जवाब में उन्हें उपलब्ध कराई थी.
मिश्रा द्वारा जानकारी साझा करने के बाद उनके वरिष्ठ अधिकारी मध्य रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी शिवाजी मानसपुरे का तबादला कर दिया गया था, जबकि उन्हें इस पद पर महज सात महीने ही हुए थे. आमतौर पर पद दो साल की अवधि के लिए होता है.
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