मुस्लिम छात्र को थप्पड़ मारने की घटना: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- यूपी सरकार अपनी भूमिका में विफल रही

पिछले साल अगस्त में उत्तर प्रदेश मुज़फ़्फ़रनगर के एक निजी स्कूल की शिक्षक तृप्ता त्यागी ने कथित तौर पर होमवर्क नहीं करने पर एक मुस्लिम छात्र को उसके हिंदू सहपाठियों से कक्षा में बार-बार थप्पड़ लगवाए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सब इसलिए हुआ, क्योंकि सरकार ने वह नहीं किया, जो उससे करने की अपेक्षा की गई थी.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

पिछले साल अगस्त में उत्तर प्रदेश मुज़फ़्फ़रनगर के एक निजी स्कूल की शिक्षक तृप्ता त्यागी ने कथित तौर पर होमवर्क नहीं करने पर एक मुस्लिम छात्र को उसके हिंदू सहपाठियों से कक्षा में बार-बार थप्पड़ लगवाए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सब इसलिए हुआ, क्योंकि सरकार ने वह नहीं किया, जो उससे करने की अपेक्षा की गई थी.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते शुक्रवार (12 जनवरी) को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के एक निजी स्कूल में एक महिला शिक्षक द्वारा अपने छात्रों को उनके सात वर्षीय मुस्लिम सहपाठी को थप्पड़ मारने के लिए उकसाने की घटना के लिए सीधे तौर पर राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया.

पिछले साल अगस्त में मुजफ्फरनगर के खुब्बापुर गांव में एक निजी स्कूल की शिक्षक तृप्ता त्यागी ने कथित तौर पर होमवर्क नहीं करने पर एक मुस्लिम छात्र को उसके हिंदू सहपाठियों से कक्षा में बार-बार थप्पड़ लगवाए थे. घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद लोगों ने आक्रोश जताया था.

महिला शिक्षक को वीडियो में मुस्लिम बच्चे पर सांप्रदायिक टिप्पणी करते हुए दिखाया गया था. उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 323 (जान-बूझकर चोट पहुंचाना) और 504 (शांतिभंग करने के इरादे से जान-बूझकर अपमान करना) के तहत मामला दर्ज किया गया था.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायाधीश जस्टिस एएस ओका के नेतृत्व वाली पीठ ने उत्तर प्रदेश के वकील से कहा, ‘यह सब इसलिए हुआ क्योंकि सरकार ने वह नहीं किया जो उससे करने की अपेक्षा की गई थी. जिस तरह से यह घटना हुई, उसके बारे में सरकार को बहुत चिंतित होना चाहिए.’

सरकार की ओर से पेश वकील ने इसका विरोध जताते हुए कहा, ‘लेकिन यह एक निजी स्कूल था.’

अदालत ने नवंबर 2023 में टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) के विशेषज्ञों से हस्तक्षेप करने और बच्चे तथा उसके सहपाठियों की काउंसलिंग में मदद करने को कहा था.

शुक्रवार को पीठ ने एक्टिविस्ट तुषार गांधी की ओर से पेश वकील शादान फरासात से, जिन्होंने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, टिस की सिफारिशों का अध्ययन करने और अगर आवश्यक हो तो बच्चे के माता-पिता के परामर्श से और सुझाव देने को कहा. हालांकि फरासत ने कहा कि टिस की रिपोर्ट ‘अपर्याप्त’ है.

पिछली सुनवाई में अदालत ने इस घटना को ‘बहुत गंभीर’ बताया था और यह संविधान के अनुच्छेद 21ए (निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा बच्चे का मौलिक अधिकार है), शिक्षा का अधिकार अधिनियम और यहां तक कि उत्तर प्रदेश नियमों का भी सीधा उल्लंघन है, जो स्थानीय अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का काम देते हैं कि बच्चों को कक्षाओं में भेदभाव का सामना न करना पड़े.

पिछले साल 25 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना को लेकर एफआईआर दर्ज करने में देरी और सांप्रदायिक आरोपों को नजरअंदाज करने पर उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस को कड़ी फटकार लगाई थी. पीठ ने निर्देश दिया था कि मामले की जांच आईपीएस-रैंक के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी द्वारा की जाए.

अदालत ने कहा था कि हालांकि छात्र के पिता द्वारा संज्ञानात्मक अपराधों से संबंधित शिकायत दर्ज की गई थी, लेकिन तुरंत कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई. केवल एक गैर-संज्ञानात्मक रिपोर्ट शुरू में दायर की गई थी. शुरुआत में केवल गैर-संज्ञानात्मक अपराध में रिपोर्ट दर्ज की गई थी और घटना के लगभग दो सप्ताह बाद 6 सितंबर 2023 को ‘एक लंबी देरी के बाद’ एफआईआर दर्ज की गई थी.

अदालत ने उस समय उत्तर प्रदेश में धार्मिक भेदभाव और शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठाए थे. अदालत ने पाया था कि यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनिवार्य अनुपालन में प्रथमदृष्टया राज्य की विफलता है. यह अधिनियम छात्रों के शारीरिक एवं मानसिक उत्पीड़न और धर्म एवं जाति के आधार पर उनके साथ भेदभाव को रोकता है.

जस्टिस ओका ने कहा था, ‘जिस तरह से घटना घटी है, उससे राज्य की अंतरात्मा को झटका लगना चाहिए.’

जस्टिस ओका ने कहा था कि उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा ‘लंबी देरी’ के बाद दर्ज की गई एफआईआर में शिक्षक तृप्ति त्यागी द्वारा की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों के बारे में बच्चे के पिता के बयानों को नजरअंदाज कर दिया गया है.

बीते शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा कि बच्चा वर्तमान में जिस स्कूल में पढ़ रहा है, वह 28 किमी दूर है. उन्होंने बताया कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत एक बच्चे को घर के डेढ़ किमी के दायरे में स्थित स्कूल में नामांकित होना आवश्यक है.

फरासत ने इसका प्रतिवाद करते हुए कहा, ‘यह वह स्कूल है, जो इस दायरे में था जिसने बच्चे को नुकसान पहुंचाया.’

उन्होंने कहा कि मौजूदा स्कूल का पाठ्यक्रम अच्छा है और बच्चे के पिता अब खुद ही उसे रोजाना स्कूल ले जाते हैं.

एक्टिविस्ट तुषार गांधी ने शीर्ष अदालत से धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित छात्रों सहित बच्चों के खिलाफ होने वाली हिंसा के संबंध में स्कूल प्रणालियों के भीतर निवारक और उपचारात्मक उपायों के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का आग्रह किया है.

याचिका में कहा गया है, ‘भारतीय शिक्षा प्रणाली में शारीरिक दंड प्रचलित हो गया है. भयावह और वीभत्स प्रकरण से पहले हाशिये पर रहने वाले समुदायों के छात्रों के खिलाफ हिंसा की कई घटनाएं हुई हैं.’

याचिका में कहा गया है कि स्कूलों में हिंसा का उन छात्रों पर भी घातक प्रभाव पड़ा, जिन्होंने इसे देखा, जिससे भय, चिंता, असहिष्णुता और ध्रुवीकरण का माहौल पैदा हुआ.