गुजरात के द्वारका स्थित शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल न होने के पीछे विवादों और ‘धर्म विरोधी ताकतों’ के इससे जुड़े होने का हवाला दिया है. उन्होंने कहा कि चारों शंकराचार्यों को निमंत्रण मिला है, लेकिन कोई भी 22 जनवरी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए नहीं जा रहा है.
नई दिल्ली: गुजरात के द्वारका स्थित शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने कहा है कि वह विवादों और ‘धर्म विरोधी ताकतों’ के जुड़े होने के कारण अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होंगे.
इससे पहले पुरी के गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती और ज्योतिष्पीठ (उत्तराखंड) के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा था कि वे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे, क्योंकि एक अधूरे मंदिर के अभिषेक ने शास्त्रों का उल्लंघन किया है. निश्चलानंद ने कहा था कि चारों शंकराचार्य निमंत्रण अस्वीकार कर देंगे.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, स्वामी सदानंद सरस्वती ने बीते शुक्रवार (12 जनवरी) को गुजरात में अपने आश्रम में संवाददाताओं से कहा, ‘अगर कोई धार्मिक स्थल किसी विवाद में फंसा हो और उस पर धर्म विरोधी ताकतों का कब्जा हो तो वहां पूजा करना प्रतिबंधित है.’
स्वामी सदानंद सरस्वती ने कहा, ‘राम मंदिर आंदोलन पिछले 500 वर्षों से चल रहा है और हम चाहते थे कि इसे (विवादित भूमि) हिंदुओं को सौंप दिया जाए. हम वहां मौजूद आध्यात्मिक शक्ति के लिए अयोध्या जाते हैं, लेकिन जब गैर-धार्मिक तत्व ऐसे क्षेत्र पर कब्जा कर लेते हैं तो हम उस आध्यात्मिक शक्ति को पाने में असफल हो जाते हैं. हमारी संस्कृति के प्रतीक अपनी पवित्रता के लिए आध्यात्मिक लोगों के पास ही रहने चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘सभी चार शंकराचार्यों को निमंत्रण मिला है, लेकिन कोई भी 22 जनवरी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अयोध्या नहीं जा रहा है.’
उनके इस बयान से पहले भी चारों शंकराचार्यों के 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाले राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल न होने की खबरें आ चुकी है.
सदानंद सरस्वती ने यह भी कहा कि अभिषेक के संबंध में धर्मग्रंथों की अनदेखी की जा रही है. उन्होंने कहा, ‘पूजा वेदों में निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार की जानी चाहिए.’
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मंदिर ट्रस्ट के एक सदस्य की टिप्पणी पर पलटवार किया है, जिन्होंने शंकराचार्यों के रुख पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि यह मंदिर रामानंदी परंपरा का है, साधुओं या शैवों का नहीं.
बीते गुरुवार (11 जनवरी) को स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा था, ‘अगर ऐसा है, तो ट्रस्ट ने राम मंदिर निर्माण के लिए हमसे दान क्यों मांगा था और उन्होंने हमसे पैसे क्यों स्वीकार किए थे?’
उन्होंने कहा था, ‘हम सनातनी परंपरा से हैं. मैं ट्रस्ट के सदस्य से यह भी कहना चाहूंगा कि वह तुरंत पद छोड़ दें और अगर मंदिर उनकी परंपरा का है तो इसे रामानंदी संतों को सौंप दें.’
हालांकि श्रृंगेरी पीठ (कर्नाटक) के शंकराचार्य स्वामी भारती तीर्थ ने अब तक इस विषय पर कोई बयान नहीं दिया है.
शंकराचार्यों की परंपरा के अनुसार संसार मिथ्या है और ब्रह्म परम सत्य है. रामानंदियों का मानना है कि संसार सत्य है और उनके सभी कर्म पृथ्वी पर ही किए जाने हैं.
मालूम हो कि बीते 7 जनवरी को एक हिंदुत्व समर्थक पोर्टल ‘द स्ट्रगल फॉर हिंदू एक्ज़िस्टेंस’ ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि सनातन/हिंदू धर्म के शीर्ष आध्यात्मिक गुरु यानी चारों शंकराचार्य अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन समारोह का हिस्सा नहीं होंगे.
कार्यक्रम में ‘मुख्य अतिथि’ के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भागीदारी ने अयोध्या में 22 जनवरी को प्रस्तावित प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को लेकर वरिष्ठ संतों के बीच चिंताएं पैदा कर दी हैं.
पोर्टल की रिपोर्ट कहती है, ‘उन्हें लगता है कि ऐसा करने से वे आयोजन की मुख्य पृष्ठभूमि में आ जाएंगे, जो संभावित रूप से सनातन शास्त्रों द्वारा निर्धारित पारंपरिक अनुष्ठानों को कमजोर कर रहे हैं. राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के लिए जन उत्साह के बावजूद, शंकराचार्यों की अनुपस्थिति धर्मनिष्ठ हिंदुओं के बीच विवाद का विषय है.’
पोर्टल के मुताबिक, शंकराचार्यों ने मोदी सरकार पर दोहरा चरित्र अपनाने का आरोप लगाया है. उनका तर्क है कि सरकार, राम मंदिर के निर्माण को क्रियान्वित करने के बावजूद, ‘राजनीतिक लाभ के लिए हिंदू भावनाओं का शोषण कर रही है.’